बीकानेर।(मुक्ता तैलंग) लोकतंत्र के आकाश में मताधिकारों का प्रकाश मिलकर देदीप्यमान सूर्य के समान सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होता है और अपनी सहस्र राशियों से संपूर्ण मानव समाज को आलोकित करता हुआ देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करता हुआ गौरान्वित होता है। अपना मत, अपने विचार, अपना प्रतिनिधि चुनने का एक अलग ही आकर्षण है।
वोट देकर गौरव की अनुभूति होती है कि- हमने भी लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपने मत रूपी समिधा की आहुति देकर सकारात्मक वर प्राप्ति की आकांक्षा से इसे सफल बनाने का भरपूर प्रयास किया। हर बार बड़े शौक से वोट देने जाते थे । दिमाग में पिक्चर जैसे क्लियर होती थी कि- किसे वोट देना है ? किसे अपना नेता चुनना है ?इसकी कोई टेंशन नहीं रहती थी।
लेकिन इस बार बड़ी कशमकश रही । किसे वोट दें? किसे ना दें ? जनप्रतिनिधि वोटर का निशाना बन रहे थे आखिर 5 साल में एक बार ही तो उसे मौका मिलता है कुछ कहने का अपने अंदर की वेदना को अभिव्यक्त करने का उसका मन भी कह रहा था.
दूसरों की हवा जो तूने शौक से गटकी है।
तेरी भी हर सांस मेरे वोट में अटकी है।।”
सत्ता के गलियारों का शोर रह-रहकर कानों में गूंज रहा था। एक के बाद एक आवाजें परेशान कर रही थी ।
किसी का वायरल वीडियो, किसी का इंटरव्यू, किसी का लाइव टेलीकास्ट *और किसी का अखबार में छपा विज्ञापन, बहुत सारी बातें एक साथ दिमाग में आ-जा रही थी। लोगों की तरह विचार भी जैसे आपस में ही उलझने लगे थे।
*कोई जाति के नाम पर बांट रहा था । *कोई विकास के नाम पर वोट मांग रहा था। *पार्टियां एक दूसरे पर आक्षेप कर रही थीं । *खुद को सही और विपक्षी पार्टी को गलत बताने में अनेकों उदाहरण दिए जा रहे थे।
ऐसी स्थिति को देखकर एक शेर याद आया ……
“शतरंज की बिसातों का दौर मस्त है ।
हर कोई चुनावी तिकड़म में व्यस्त है ।।
यादें हैं, वादे हैं, बुनियाद-ए- एतबार।
कोई है सच्चा, कोई फिरका परस्त है।”
ऐसी स्थिति को देखते हुए बचपन में विद्यालय में होने वाली वाद- विवाद प्रतियोगिता की याद आ गई । जहां पर कहा जाता था कि आप यदि पक्ष में है तो अपनी बात को सिद्ध करने के लिए अनेक सकारात्मक उदाहरण देने हैं । अगर विपक्ष में है तो विपक्ष को मजबूत करने के लिए सारे विपरीत उदाहरण आप को देने हैं और अपनी बात को सही सिद्ध करना है ।
शायद राजनीतिक पार्टियां भी यही कर रही थी और जनता के दिमाग पर हावी होने का प्रयास भी ।
*कुछ लोग तो लकीर के फकीर थे *कोई लहर के साथ बहा चला जा रहा था। जिन्हें वोट देते समय कुछ सोचने की आवश्यकता ही नहीं थी बस पार्टी का निशान याद था और कौन सा बटन दबाना है ? यह पता था । *कुछ लोगों ने ज्यादा विचार-विमर्श नहीं किया
*कुछ विचारशील से गंभीर व्यक्तित्व तय ही नहीं कर पाए कि आखिर क्या करें ? और अपने आप से ही उलझते रहे। चलो देखते हैं उस समय जो भी विचार बन जाए। मोबाइल की वीडियो गैलरी खुलने लगी व्हाट्सएप ग्रुप्स के मैसेज देखे जाने लगे कुछ मनोरंजन तो जरूर हुआ ।
यक्ष प्रश्न अभी भी वहीं का वहीं था। नेताओं के भाषण और वीडियो को देखकर लग रहा था…..
“वो समझ सके कभी ना अशफ़ाक -ए-करीना, आजमाइशे अक्लाक हम भी देखते रहे। कुछ तय ही नहीं हो पा रहा था राज्य के कैंडिडेट का भविष्य केंद्र की सरकार से जुड़ा था और केंद्र में सरकार के सूत्र राज्य के कैंडिडेट की विजय पर निर्भर करते थे ।
*सरकार आती है तो कैंडिडेट को भी 5 साल झेलना पड़ेगा। अब दोनों का सही होना कोई जरूरी तो नहीं ।अपने-अपने विचार से किसी को कैंडिडेट सही लग रहा था तो किसी को आलाकमान सही लग रहे थे । इसी कशमकश में कुछ लोगों ने दोपहर बाद मतदान किया और कुछ मतदान के बाद भी आश्वस्त से दिखाई नहीं दे रहे थे। सभी के चेहरे पर फर्ज पूरा हो जाने जैसी झलक थी। जैसे बेटी के विदा होने पर दिखाई देती है ।चलो बेटी आपके घर री हुई । जो भी हो मतदान पूर्ण होने के साथ चुनावी तिकड़मों का दौर खत्म हुआ और और सब अपने अपने काम पर लग गए शायद अब किसी के पास कोई मुद्दा नहीं था और होता भी तो उसका कोई फायदा नहीं था। जो होना था हो गया । सांप निकल गया अब भले ही लाठी पीटते रहो ।
सत्ताधारी पार्टियों की सांसे ईवीएम में बंद हो गई। कीमती ऑक्सीजन सिलेंडर की तरह ईवीएम मशीनों को कड़ी सुरक्षा में रखवा दिया गया।
मतदान दलों ने राहत की सांस ली । चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से निपट गए ।
अब लोगों को इंतजार है परिणाम का क्योंकि ऊंट किस करवट बैठेगा और चुनाव का परिणाम क्या निकले ? कहा नहीं जा सकता ।
परिणाम आने तक *राजनेताओं को अपनी सफलता -असफलता की चिंता है । थके हुए प्रचारकों को अपने कर्म फल की प्रतीक्षा है । *विचारशील से दिखने वाले लोगों को देश के भविष्य की चिंता है। *किसी को जीएसटी सता रहा है *किसी को व्यवसाय का डर खाए जा रहा है। *सटोरियों को मिट्टी से सोना और सोने से मिट्टी बन जाने की चिंता है । परिणाम आने तक आपसी झींटमझींट अभी बाकी है। किसका वोट फालतू चला गया?