-राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर में बिना कोई अनुमति के एक एनजीओ शुरू कर रहा
-पहले थी वहां कैंटीन, अब कर दी खत्म

जयपुर (हरीश गुप्ता)। राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर के कोऑपरेटिव स्टोर के पास वर्षों पुरानी कैंटीन को गुपचुप तरीके से खत्म कर दिया गया है।अब वहां एक एनजीओ इंदिरा रसोई शुरू करने जा रहा है।
सूत्रों ने बताया जो एनजीओ इंदिरा रसोई शुरू करने जा रहा है, उसके पास प्रशासन की ओर से कोई परमिशन नहीं है। हम और आम छात्र इंदिरा रसोई के विरोध में नहीं है, लेकिन कार्य सिस्टम से होना चाहिए। अभी तक यह भी तय नहीं कि एनजीओ उस स्थान का विश्वविद्यालय को कितना किराया देगा? नियम से पहले एक सभी शर्तें तय होनी चाहिए थी और सब कुछ तय होने के बाद मामला विश्वविद्यालय की सर्वोच्च बॉडी सिंडिकेट के पास जाना चाहिए था। उसके बाद सभी शर्तों पर सहमति के बाद सिंडिकेट से पास होना चाहिए था।
सूत्रों ने बताया कि जिस स्थान पर इंदिरा रसोई शुरू होने जा रही है, वहां पहले से कैंटीन है, जो वर्षों पुरानी है। वहां दिनभर छात्रों का आवागमन रहता है। इस तरह से किसी को कोई व्यवसायिक कार्य करना है तो विश्वविद्यालय परिसर में तो अभी भी काफी जगह खाली है। कोई भी कुछ भी निर्माण कार्य करवा कर व्यापार शुरू कर लेगा? आखिर धड़ल्ले से निर्माण कार्य चल रहा है विश्वविद्यालय प्रशासन क्या कर रहा है?
सूत्रों ने बताया कि पूर्व में भी एक एनजीओ के संचालक ने इसी परिसर में अपने पिता की याद में भवन निर्माण का कार्य करवाया और विश्वविद्यालय को सौंप दिया। आज उसी भवन में संस्कृत विभाग चल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि उस एनजीओ का विभाग में कोई हस्तक्षेप नहीं है। सवाल खड़ा होता है इंदिरा रसोई शुरू करने वाला एनजीओ आखिर किसका है, जो विश्वविद्यालय प्रशासन को ताक पर रख रहा है? विश्वविद्यालय प्रशासन उस एनजीओ या उसके संचालक से क्यों डरा व सहमा बैठा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि विश्वविद्यालय में ही कोई घर का भेदी है, जिसकी शह पर सब कुछ हो रहा है? वरना ऐसे तो किसी की हिम्मत नहीं हो सकती? अब यह तो विश्वविद्यालय प्रशासन को ही पता है कि दाल में काला है या दाल ही काली है? वरना ऐसा कौन करेगा कि संपत्ति भी खुद की और आर्थिक नुकसान भी खुद का। ऐसा तो कोई ‘सूरदास‘ ही कर सकता है