बाड़मेर 17 नवम्बर। परम् पूज्य जैनाचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वर जी म.सा. की 21 दिवसीय सूरिमंत्र की मौन साधना की पूर्णाहुति के होने पर सूरिमंत्र की साधना के अनुमोदनार्थ साध्वी सौम्यगुणा श्री जी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में आराधना भवन में श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ चातुर्मास समिति, बाड़मेर के तत्वाधान में सामूहिक सामायिक का कार्यक्रम दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक आयोजित किया गया जिसमें गुरूभक्तों आचार्य श्री की साधना के अनुमोदनार्थ इस कार्यक्रम में भाग लिया।
साध्वी सौम्यगुणा श्री ने आचार्य भगवंत के जीवन से प्रेरणा लेने का उपदेश देते हुए कहा कि आचार्य जिनपीयूषसागर सूरिश्वरजी म.सा. गुणों की खान है उनके जीवन में माधुर्य, वाणी में मृदुता व नम्रता एवं चेहेरे पर हर समय मुस्कान छाई रहती है। आचार्य भगवंत ने यह सूरिमंत्र की साधना सकल विश्व के कल्याण की मंगल कामना के लिए की है। सूरिमंत्र की साधना से प्राप्त होने वाली लब्धियों के बारे में साध्वीवर्या ने जानकारी दी। साध्वी श्री ने कहा कि संयम जीवन का प्रथम सोपान ही मौन रहना होता है जो साधक मौन रहता है वो मुनि है उसकी तरह आचार्य श्री हर समय मौन रहते है और मितभाषी है उनके जीवन से हमें बहुत कुछ शिक्षाएं प्राप्त होती है जिसे हमें अपने जीवन में उतारना होगा। प्रत्येक आचार्य भगवंत को अपने जीवनकाल में सूरिमंत्र की पांच पीठिका की साधना करनी होती है और इस साधना से प्राप्त ऊर्जा व लब्धियों से जिनशासन की प्रभावना करते है। साध्वीवर्या ने अहमदाबाद में आचार्य भगवंत के साथ हुए चातुर्मास के संस्मरण सुनाये।

