– शताब्दी पुराना है अकाली दल का इतिहास, टूटकर बने कई दल,
अमृतसर। एक शताब्दी पुराने इतिहास में शिरोमणि अकाली दल कई बार टूटा। सौ वर्ष के सफर में दल की लीडरशिप में कई ऐसे टकराव हुए, जिस कारण प्रदेश में गठित शिअद को सरकार से भी हाथ धोना पड़ा। अकाली गुटों को एकजुट करने के लिए श्री अकाल तख्त के जत्थेदारों ने भी दखलअंदाजी की। इन गुटों को एक मंच पर लाने के लिए तत्कालीन जत्थेदार श्री अकाल तख्त प्रोफेसर रागी दर्शन सिंह के आदेश पर शिअद (अमृतसर) की स्थापना की गई। अकाली दल के संचालन के लिए श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों ने कमेटियों का भी गठन किया। इसके बावजूद अकाली लीडरशिप ने अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए जत्थेदारों के आदेश स्वीकार नहीं किए। बेशक इसके लिए उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब से धार्मिक सजा सुनाई गई।

अकाली लीडरशिप ने इस धार्मिक सजा को पूरा भी किया।बीते तीन दशक से पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का सिख राजनीति पर दबदबा है। इन दशकों में बादल ने पंद्रह वर्ष तक प्रदेश में राज किया। उनके बेटे सुखबीर बादल व बहू हरसिमरत कौर बादल ने केंद्र में भी मंत्री पद की जिम्मेदारी निभाई। इस दौरान बादल की कार्यप्रणाली के विरोध में अकाली दल कई बार टूटा। 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब विधानसभा के पूर्व स्पीकर रवि इंदर सिंह ने भी शिअद (1920) का गठन किया था। विधानसभा चुनाव में रवि इंदर सिंह का दल न केवल पिट गया, बल्कि उनका समर्थन कर रहे उग्र विचारधारा के समर्थक भी चुनाव में बुरी तरह विफल हो गए। 2014 में दमदमी टकसाल से जुड़े भाई मोहकम सिंह ने पंजाबी व सिख उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ‘यूनाइटेड अकाली दल’ के नाम से एक नए अकाली दल का गठन किया था। लेकिन संगत ने इस दल को भी नकार दिया। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बादल के साथी रहे जत्थेदार रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने सुखबीर बादल की कार्यप्रणाली को लेकर विद्रोह कर दिया। ब्रह्मपुरा ने पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां, पूर्व सांसद डॉ. रतन सिंह अजनाला व पूर्व मंत्री अमरपाल सिंह बोनी सहित कुछ बादल विरोधी अकालियों को साथ लेकर शिअद (टकसाली) का गठन किया। ब्रह्मपुरा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बादल विरोधी दलों के साथ समझौता कर अपने उम्मीदवार खड़े किए लेकिन कोई भी नहीं जीत सका। ब्रह्मपुरा के बाद बादल के एक और साथी सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा व उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींढसा ने भी बादल परिवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। ढींढसा परिवार ने ब्रह्मपुरा का साथ दे रहे अकाली लीडरों को तोड़कर अपने पाले में कर एक नए अकाली दल शिअद (लोकतांत्रिक) का गठन किया। ढींढसा ने बादल परिवार को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी व एसजीपीसी चुनाव में पराजित करने के लिए दिल्ली के पंथक संगठनों को एकजुट करने की मुहिम शुरू की है। ढींढसा की ओर से अलग अकाली दल की स्थापना किए जाने का जत्थेदार रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने विरोध भी जताया था। ब्रह्मपुरा ने ढींढसा को शिअद (टकसाली) के अध्यक्ष पद का भी ऑफर दिया।

जिसे उन्होंने ने अस्वीकार कर दिया था। ब्रह्मपुरा का साथ देने वाले अमरपाल बोनी एक बार सुखबीर बादल की शरण में चले गए। इसके बाद ब्रह्मपुरा का साथ छोड़कर वह शिअद (बादल) में शामिल हो गए। बीते 30 वर्षों में जितने भी अकाली दलों का गठन हुआ, वह बादल का मुकाबला करने में असमर्थ रहे। इसका मुख्य कारण बादल के पास अब भी अकाली दल का मजबूत कैडर हैं।