

भारतीय आबादी कई जातियों का समूह है और सभी साथ साथ रहते हैं कभी कभी कभार जातिगत कई बातें उठती है पर वह ज्यादा दिन टिकती नहीं, हां यह बात अलग है कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय जातिवाद को ज्यादा महत्व और बढ़ावा देते है जिससे आपस में मन का मेलमिलाप हो ही नहीं पाता। वोटों की गणना को जातिगत आधार पर देखते हैं और उसी प्रकार उम्मीदवार खड़ा करने की चेष्टा रखते हैं। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक बनाकर इतनी बड़ी दीवार खड़ी हो गई कि हम चाहकर भी एक नहीं हो पाते। आडी जाती, खड़ी जाती, छोटी जाति, बड़ी जाती, आदिवासी, जनजाती इतने सारे हमारे नाम है कि बस कोई ऐसा रिजुलेशन हिंदुस्तान में पास नहीं होता कि हम सब हिंदुस्तानी कहलाए। सरकार भी मानती है कि कई जातियां पढ़ाई के मामले में पीछे हैं जिसमें मुस्लिम समाज जनसंख्या ज्यादा होने पर भी शिक्षा क्षेत्र में पीछे हैं वहां जाति और परिवार की क्या मान्यता यह तो नहीं पता लेकिन यह जरूर पता है कि शिक्षा स्वास्थ्य सफाई का पाठ उनके लिए बहुत आवश्यक है। यह बात अलग है कि वह लोग मेहनती है हर बच्चा स्वयं अपने हुनर का काम करता है। सरकार ने जो शिक्षा के लिए आरक्षण व्यवस्था रखी है वह हायरसेकन्डरी तक तो ठीक है लेकिन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह गलत होगा क्योंकि कुछ प्रोफेशन जैसे मेडिकल इंजीनियरिंग इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी आईएस आईपीएस के लिये मेरिट आधार ही होना चाहिये। हर व्यक्ति को शिक्षित बनाएं, हर व्यक्ति शिक्षित स्वयं बने और सम्मान के साथ जीये।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
