अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
रात को कोई गाड़ी वाला है मेरे घर की सर्विस केबल तोड़ गये। सुबह विद्युत मंडल में सुचना की 1 घंटे बाद वहां से कर्मचारी आए जरूर, पर हालात देखीये लाइनमैन के पास हाथ में पहनने के मोजे नहीं, वोल्टमीटर नहीं, तार जोड़ने के बाद उस पर कोई प्रोटेक्शन लगाने का नहीं, सीढी या खंभे पर चढ़ने के लिए हार्लिक तक नहीं, हेलमेट भी नहीं, उनके पास बरसाती एवं गम बूट भी नहीं यदि कोई झाड़ बीच में आता है तो उसकी छटाई के साधन भी नहीं,वह बंदे अपनी जान पर खेलकर यह काम करते हैं। पता नही उनका इंश्योरेंस है भी या नहीं। इंसुरेंस हो तो भी बिना साधन एवं सुरक्षा के यदि किसी कर्मचारी की करंट लगने से मृत्यु होती है तो उसको बीमा नहीं मिलेगा।

यहां हमारे उच्च अधिकारी और राजनेता इन लाइनमैन ऊपर कब अपनी दया बरसाएगे और इन्हें विधिवत सब औजार, उपकरण और सुरक्षा के साधन मिलेंगे। कितनी महंगी दर पर बिजली सप्लाई करते हैं और हालात यह है कि आप यदि कनेक्शन लेते हैं तो केबल से लेकर कील तक आपको लाकर देना पड़ती है। यदि कहीं आप खेत में विद्युत कनेक्शन ले रहे हैं तो जितने भी दूर से खंबे आएंगे उनका, बिजली के तार और ट्रांसफार्मर आपको अपने खर्च से लगाना है। उसके ऊपर उनका सुपरविजन चार्ज। सरकार कहती है कि गांव-गांव बिजली, घर घर बिजली पर हालत यह है कि इंदौर के आसपास के गांव में भी 24 घंटे वाली बिजली नहीं पहुंच पा रही है।