– अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तुविद्)
अभी तक तो कई साधु संत कई नेता राजनेता कई समाज के ठेकेदार से सुनते आए की सदाचारी बनो अच्छे विचार दिमाग में रखो। बात बराबर है हमें सदाचारी होना ही चाहिए और अच्छे विचार दिमाग में रखना चाहिए पर सवाल यह है कि क्या सिर्फ हमें ही सदाचारी बनना है अच्छे विचार रखना है या जो लोग प्रमुख लोगों की गिनती में है जो हमें ऐसा कहते हैं उन्हें भी अच्छे विचार रखना चाहिए। जो जिम्मेदार हैं जिन पर जनसेवा का प्रभार है उन्हें भी सद्गुण सदाचारी और सुंदर विचारों का होना चाहिए। कई अच्छे है अभी भी, पर बहुत सारे बुरे लोग हैं। वे लोग कहते कुछ हैं करते कुछ हैं। हमारे यहां का सिस्टम कुछ ऐसा बना हुआ है कि यहां हर अदना कर्मचारी अपने सुपीरियर की चाटुगिरी करेगा और सुपीरियर अपने से ऊपर वालों की चाटूगिरी करेगा। और यह क्रम सर्वोच्च तक जाता है। जबकि हर कर्मचारी अधिकारी और नेता के अपने अपने अधिकार है। उन्हें किसी चाटुगिरी की जरूरत नहीं है। पर सिस्टम कुछ ऐसा हो गया कि सब एक दूसरे में गूंथा गए। अच्छे राजनीतिक आते हैं प्रधान प्रमुख हो जाते हैं उनके विचार अच्छे होते हैं पर धीरे-धीरे उनके विचारों पर कोई गोर नहीं करता और वही पुराना आलम कायम हो जाता है। काश सब मे सद्गुण आ जाएं और सदाचार का व्यवहार रखने लगे। यह एक सपना जरूर लगता है पर उम्मीदें कभी तो सच होगी।