– विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप प्रत्यारोप के बीच गरमाई राजस्थान की राजनीति, कांग्रेस ने लगाया खरीद फरोख्त का आरोप भाजपा ने सिरे से नकारा
● तिलक माथुर केकड़ी -राजस्थान
राजस्थान में 19 जून को होने जा रहे राज्यसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक घटनाक्रम तेज हो गया है। चुनाव के दौरान विधायकों की खरीद फरोख्त की आशंका के चलते राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राज्यसभा चुनाव पर्यवेक्षक रणजीत सुरजेवाला ने अपनी पार्टी सहित निर्दलीय विधायकों से चुनावी रणनीति पर बातचीत की है। अधिकांश विधायकों की बाड़ेबंदी की गई है ताकि विरोधी गुट के नेता उनसे संपर्क नहीं कर सके। राजनीति में कब क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता, जैसा कि पिछले दिनों हम कर्नाटक, मध्यप्रदेश में चले राजनीतिक घटनाक्रम को हम देख ही चुके हैं, हाल ही में गुजरात में भी कांग्रेस के कई विधायक इस्तीफे दे चुके हैं ऐसे में राजस्थान में भी कांग्रेस उसकी सरकार को अस्थिर किये जाने को लेकर आशंकित है लेकिन सतर्क भी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले दिनों से लगातार सतर्कता बरते हुए हैं, वे राजनीति के जादूगर समझे जाते हैं ऐसे में राजस्थान में उलटफेर इतना आसान नहीं है। फिर भी कुछ कह पाना संभव नहीं क्योंकि राजनीति में सब जायज है, कब ऊंट किस करवट बैठ जाये कहा नहीं जा सकता। राज्यसभा चुनावों के दौरान जोड़ तोड़ की राजनीति कोई आज नई नहीं है ये तो परम्परागत रूप से चली आ रही है। राजस्थान में भी जोड़तोड़ की राजनीति की परंपरा पुरानी है। चुनावों के बाद सरकार बनाने के लिए जोड़ तोड़ तो हम देखते आ रहे हैं लेकिन सरकारों को अस्थिर करने की राजनीति का प्रचलन किस प्रकार बढ़ा है वो हम पिछले दिनों कर्नाटक, मध्यप्रदेश में देख चुके हैं।
मध्यप्रदेश में फेरबदल के समय से राजस्थान में भी फेरबदल की अटकलों का दौर जारी है। अब तो मुख्यमंत्री गहलोत खुद ही विपक्ष पर उनकी सरकार को अस्थिर करने व विधायकों की खरीद फरोख्त जैसे गम्भीर आरोप लगा चुके हैं। इस मामले में कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जाेशी ने एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के डीजी को पत्र लिखकर शिकायत की है कि कर्नाटक, गुजरात और मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान में भी चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए विधायकों को 25 करोड़ रु. तक ऑफर किए जा रहे हैं। उन्होंने कानूनी कार्रवाई की मांग की है। आरोप प्रत्यारोप के बीच विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने बाड़ाबंदी को ग्रेट पॉलिटिकल ड्रामा बताया। उन्होंने कहा कि बसपा के 6 विधायकों को तोड़ने वाली कांग्रेस अब हाॅर्स ट्रेडिंग का राग अलाप रही है। कांग्रेस को अपने ही विधायकों के संभावित विद्रोह, आंतरिक गुटबंदी से मजबूर होकर यह कदम उठाना पड़ा। नेतृत्व का मनोबल कमजोर है,असुरक्षा की भावना है। वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने प्रलोभन के आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि हमने किसी भी एमएलए से संपर्क नहीं किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपने विधायकों पर ही भरोसा नहीं है। उल्लेखनीय है कि राज्य में तीन सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस ने वेणुगोपाल के साथ ही नीरज डांगी को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने राजेंद्र गहलोत के साथ ही ओंकार सिह लखावत को प्रत्याशी बनाया है। 200 सदस्यीय विधानसभा के गणित के हिसाब से कांग्रेस के 107 विधायक हैं, वहीं कांग्रेस को सभी 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। उधर भाजपा के 72 विधायक हैं उसे 3 आरएलपी के विधायकों का समर्थन है। इस को देखते हुए कांग्रेस को दो सीट और भाजपा को एक सीट मिलना तय माना जा रहा है।
लेकिन भाजपा ने दूसरा प्रत्याशी मैदान में उतारकर जोड़तोड़ की संभावनाओं ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। राजस्थान में भाजपा के पास जितने विधायक हैं, उसके हिसाब से वह एक सीट ही जीत सकती है, लेकिन प्रत्याशी दो खड़े किए हैं। कांग्रेस को डर है कि दूसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए भाजपा तोड़फोड़ करेगी। गौरतलब है कि यहां राज्यसभा के हर उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 51 वोट चाहिए। कांग्रेस को दोनों उम्मीदवारों को जितने के लिए 102 वोटों की जरूरत है जो आसानी से मिलते दिख रहे हैं। कांग्रेस के साथ 13 निर्दलीय, लेफ्ट के 2, बीटीपी के 2 और 1 आरएलडी विधायक का समर्थन है। भाजपा के पास खुद के 72 विधायकों के अलावा 3 वोट आरएलपी के विधायकों का समर्थन है।