बिहार(सुपौल)प्रशांत कुमार(ओम एक्सप्रेस ब्यूरों)- समाजवादियों का गढ़ और खादी के पुजारियों के लिए चर्चित धरती पर लगे सैकड़ों चरखा में अब दीमक लग गया है। यहां स्थापित चरखा घर बंद हो गया है। इसके चलते यहां से जुड़े लोग अब बेरोजगार हो गए हैं। जबकि इस केंद्र के चलते रहने से यहां के तैयार सूत से मधुबनी में खादी का कपड़ा तैयार होता था। जिसको गांधी विचारधारा के लोगों का मुख्य पहनावा था। इसके चलते यहां पर खादी कपड़े का न केवल विशेष महत्व था बल्कि समाज में इसे पूजनीय समझा जाता था।

समाजवादियों का गढ़ रहा त्रिवेणीगंज

जब महात्मा गांधी ने भारत में स्वावलंबन की चिंता करते हुए चरखे और खादी को अपनी नीति और कार्यक्रम का हिस्सा बनाया, तभी यहां खादी को नई पहचान मिली थी। भारत में खादी और चरखा की महत्ता बढ़ते ही यहां के लोगों के बीच सूत कातना और कपड़ा बुनना एक प्रचलन हो गया था। उसके बाद त्रिवेणीगंज का इलाका समाजवादियों का गढ़ बन गया था। बताते चलें कि यहां स्वर्गीय अनूपलाल यादव, स्वर्गीय जगदीश मंडल सरीखे कई समाजवादी नेता हुए तो उसी विचारधारा के बड़े नाम बलराम ¨सह यादव, कुंभनारायण सरदार आदि आज भी इस विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। लिहाजा खादी के पुजारी भी काफी हुए। इसे देखते हुए केंद्र द्वारा आर्थिक मदद से ग्रामोद्योग विभाग द्वारा चरखा केंद्र जिले के दो स्थानों पर 90 के दशक में त्रिवेणीगंज और छातापुर में स्थापित किया गया था। रोजगार के साथ-साथ इलाके में कुटीर उद्योग की स्थापना से लोगों में खुशी का माहौल स्थापित हुआ। नतीजा हुआ कि यहां चरखा केंद्र पूरी उर्जा से चलने लगा लेकिन आर्थिक मदद के अभाव में केंद्र बंद हो गया।

कहते हैं लोग

जितेंद कुमार अरविंद जिनकी उम्र अब अस्सी साल के आसपास है। उनका कहना है कि खादी के प्रति अभी भी उनका मोह बरकरार है। मगर स्तरीय खादी नहीं मिलने का उन्हें अब बहुत मलाल रहता है। लक्ष्मीनिया निवासी और चरखा केंद्र की स्थापना में महती भूमिका निभाने वाले रघुवीर दास का कहना है कि कुटीर उद्योग नहीं होने से इलाका पूरी तरह कृषि पर केंद्रित हो गया है। आज अपने कस्बे और शहर में खादी की हालत देख कर सोचता हूं कि चरखा क्या बंद हुआ शायद खादी ही बंद हो गई। लोगों ने चरखा केंद्र को पुन: चालू करने की मांग की है।