जयपुर 25 दिसम्‍बर । श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन को माध्‍यम बनाकर ईश्‍वर ने दुनिया को सन्‍देश दिया हैं । यही कारण है कि गीता धर्म, पं‍थ, वर्ग, देश और काल की सीमा से परे है और वैश्विक ग्रन्‍थ के रूप में मान्‍य एवं अनुकरणीय है। गीता ‘ज्ञान’, ‘भक्ति’ एवं कर्म की त्रिवेणी है, जो अनन्‍त काल से मानव जाति के अनसुलझे प्रश्‍नों को सहजता से सुलझा रही है। यह बात कला एवं संस्‍कृति मन्‍त्री डॉ. बी.डी.कल्‍ला ने ‘गीता जयन्‍ती’ पर आज कला एवं संस्‍कृति विभाग एवं राजस्‍थान संस्‍कृत अकादमी, जयपुर द्वारा आयोजित गीता मेरी गुरू विषयक टॉक शो में कही। राजस्‍थान संस्‍कृत अकादमी के निदेशक संजय झाला ने विस्‍तार से जानकारी देते हुए बताया कि ‘गीता मेरी गुरू’ विषयक टॉक शो में अपने उद्गार व्‍यक्‍त करते हुए डॉ. कल्‍ला ने कहा कि गॉधी ने गीता को पूर्णत:आत्‍मसात् किया । उन्‍होने निष्‍काम, सकाम कर्म के साथ योग को कर्म, कुशलता के साथ भी जोडने और सुख-दु:ख में समभाव रहने का आह्वान किया।

राजस्‍थान संस्‍कृत अकादमी के प्रशासक डॉ. समित शर्मा ने स्‍वागताध्‍यक्ष के रूप में विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि प्रत्‍येक व्‍यक्ति को ठीक उसी प्रकार से कर्म संपादित करने चाहिए जिस प्रकार सूर्य, चन्‍द्रमा और पृथ्‍वी कर रही है । सूर्य सतत उष्‍मा और प्रकाश देने, चन्‍द्रमा शीलता प्रदान करने और पृथ्‍वी धारण करने का कार्य बिना किसी इच्‍छा और कामना के कर रही है । ठीक इसी प्रकार व्‍यक्ति को प्रकृति के अनुसार ही अपना जीवन, अपने कार्य सम्‍पादित करने चाहिए ।
टॉक शो की अध्‍यक्षता करते हुए कला एवं संस्‍कृति विभाग की शासन सचिव श्रीमती मुग्‍धा सिन्‍हा ने कहा गीता का वास्‍तविक अर्थ है, ‘डायलॉग’ और ‘संवाद’ । उन्‍होने गीता को परिभाषित करते हुए कहा कि विषयों का नीरस हो जाना ही मोक्ष है। गीता प्राणी मात्र को जीवन के विभिन्‍न युद्धों के लिए प्रेरित एवं परिपक्‍व करती है। उन्‍होंने अपने कथन की पुष्टि में पार्वती गीता, अनन्‍त गीता, यथार्थ गीता, पिंगल गीता, अवधूत गीता और राम गीता का भी उल्‍लेख किया।
गीता मेरी गुरू टॉक शो में विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ. के.के. पाठक, शासन सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग ने अपने उद्गार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि ज्ञान, भक्ति और कर्म ये मोक्ष प्राप्ति के त्रिविध मार्ग हैं। उन्‍होने कहा कि कर्म में सर्वथा भाव की शुद्धि आवश्‍यक है। कर्म के भीतर यदि ‘कामना’ है तो वह दूषित हो जाता है। उन्‍होने 49 प्रकार की गीताओं का भी उल्‍लेख किया । उन्‍होने कहा कि गीता भारतीय दर्शन की चूडामणि की तरह है । उसके चूडान्‍त निर्देशन की तरह रही है। इसीलिए यह ‘गुरू ग्रन्‍थ’ भी है और गौरव ग्रन्‍थ भी है।

टॉक-शो के वार्ताकार एवं गीताविज्ञ पंकज ओझा ने कहा कि गोखले, तिलक और गॉधी के साथ आइंस्‍टीन जैसे विद्वानों ने भी गीता को अपना गुरू स्‍वीकार किया। आइंस्‍टीन कहते थे कि मैं गीता को पढकर अन्‍य लोक में चला जाता हॅू । उन्‍होने कहा कि गीता हार्वर्ड, चीन की पीकिंग यूनिवर्सिटी, न्‍यूजर्सी की स्‍टेट ग्रान्‍ट यूनिवर्सिटी, कोलम्‍बिया सहित विश्‍व के अनेक विश्‍वविद्यालयों में पाठ्यक्रम का विषय है। श्री ओझा ने अपने उद्गार में अपने प्रत्‍येक स्थिति में समभाव-समता में रहने का आह्वान किया।