क्या है जिंदगी, क्या है जीवन और क्या है उनकी पहचान और परिभाषा। यह एक ऐसा विषय है जिसमें युगो युगो लग गए लेकिन कभी समझ में आया और कभी समझ से परे होता रहा। हम कभी तय नहीं कर पाये कि आखिर में हमें करना क्या है, क्या है हमारी जिंदगी का मकसद। पारिस्थिति मे कितने जिवन की बेहतरी के साधन है और हम कितना उसके विपरीत जा रहे हैं। प्रकृति में इंसान का शरीर एक ऐसा मैकेनिज्म है जिसका मेंटेनेंस समय-समय पर बहुत आवश्यक है। हम शारीरिक मेहनत कम करते हैं जबकि शरीर खूब मेहनत करने से मजबूत होता है। हम ग्लैमर पसंद होने से आलसी हो गए, साधारण भाषा में कहो तो मट्ठे हो गए। दोस्तों अपने शरीर से खूब प्यार रखो यही वास्तविकता में जिंदगी है वरन भौतिकवाद का जिवन कोई जीवन नहीं बल्की उसे धकेलना है। सामाजिक जीवन के लिए प्यार, मैत्री, संवेदना, सेवा, सहायता और त्याग इन सब की समझ बहुत जरूरी है। धर्म के रास्ते हम यही सीख पाते हैं पर आजकल धर्म की बाते हम सिर्फ धर्मस्थान तक ही रखते हैं धर्म स्थान से निकलने के बाद हम फिर वही ढाल के दो पात। कभी आराम से सोचे हम पढाई क्यों करते हैं, क्यों हम पैसा कमाते हैं किस बात के लिए हम यह सब मशक्कत करते हैं और जब हम यह सब पा लेते है तब हम किस शारीरिक स्थिति होते है। अच्छी जिंदगी के लिए अच्छी सेहत की आवश्यकता है ताजी हवा, शुद्ध खानपान, शुद्ध पानी, मेहनत और शरीर को स्वस्थ रखना, हम इन बातों पर कितना ध्यान देते हैं यह चिंतनीय है। मस्तिष्क में प्रसन्नता होगी तो ही हम बेहतर जीवन जी पाएंगे।
अशोक मेहता, इंदौर ( लेखक, पत्रकार , पर्यावरणविद्)

