क्या मै एक साधु संत या इंसान हूं, मैं क्या हूं मैं क्या कर सकता हूं, मुझे कैसा रहना चाहिए, प्रकृति मुझसे क्या चाहती है और मेरा प्रकृति मैं क्या स्थान है। मैं अधिक पढ़ाई क्यों करूं और करता हूं तू किसके लिए कर रहा हु। मैं अधिक पैसा क्यों कमा रहा हूं और किसके लिए कमा रहा हु। समाज में और अपने आप में मेरी क्या पहचान है। यह सब ऐसे प्रश्न है जिनके बारे में आप सोचने लगेंगे तो आपको अपने जीने की राह अपने आप समझ में आएगी। आपको यह भी समझ में आएगा कि किस वस्तु स्थिति में आपका जन्म हुआ है और क्यों हुआ है। आपको अपना जीवन कैसे बिताना है। आप जानले आपका जन्म आसान है लेकिन आप को मारने के लिए प्रकृति में कई माध्यम हैं, एक मच्छर, वायरस आपको मार सकते है और आप स्वयं को भी मार सकते है, आपको कोई दुसरा भी मार सकता है। मरने के लिये कई तरीके हैं और कारण भी हैं, लेकिन जीने का सिर्फ वही तरीका हो सकता है जो आप सोचते हैं, जैसा आप करते हैं। इसलिए बहुत ही गंभीरता से यह सोचने का कष्ट करें कि मुझे अपना जीवन कैसे निकालना है। प्रकृति के अनुरूप अपने जीवन बिताये बिना वजह अपने आप को बड़ा छोटा ना समझे, बिना वजह बहुत ही भौतिकवाद की ओर न दौड़े। अपने शरीर को एक मशीन की तरह उसका आईल पानी बराबर करें उसका मेंटेनेंस और रखरखाव बराबर रखेगे तो आपकी यह मशीन अपने निर्धारित अवधि तक बराबर चलेगी।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)