तरक्की, लग्जरी और वैज्ञानिकता के चरम दौर को देखने के बाद अचानक एक ऐसा दौर आ गया कि अब हमें लगने लगा कि हमरी हेसीयत कुछ नहीं है कोई वजूद नहीं बचता यदि आपको वायरस लग जाए। आप कहीं के नहीं रह पाते पूरी दुनिया की दिनचर्या, जीवन शैली, सभ्यता सब कुछ बदल गया। जिस अस्थिरता की स्थिति में हम जीवन जी रहे हैं, कब क्या हो जाए बड़ी असमंजस की स्थिति है। और कोई इसका निराकरण निश्चित रूप से साइंटिस्ट, वैज्ञानिक नहीं ढूंढ पा रहे हैं। प्रयोग निरंतर हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमे कैसी जीवन शैली चाहिए हमें पुनर्विचार करना होगा। हमें जितना हो सके प्रकृति के करीब रहना है। ठेठ जंगल में रहने वाले आदिवासी जनजाति से समझना होगा कि हमारी ही रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़े। जितना हो सके शुद्ध खाना खाना है, नियमीत बचत और कम से कम वस्तुओं के साथ जीवन जीना सीखना होगा। मन कठ्ठा रखें और कर्ज लेकर कोई भी वस्तु ना खरीदें, आवश्यकता से अधिक सामग्री ना रखें हां खाद्य सामग्री जरूर रखे। हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीन जीवन शैली को देखें और उसी अनुरूप अपना जीवन जीने का लक्ष्य रखें। वक्त का कोई भरोसा नहीं। धर्म ग्रंथों अनुसार पारिस्थिति और पर्यावरण बनाए रखना होगा। हमारा पहला लक्ष्य हमारे शरीर को रोग प्रतिरोधक बनाना और मजबूत रखना होगा। संयमित और अनुशासित जीवन शैली में रहना होगा। हमारे दिमाग में स्थिरता की आवश्यकता रहेगी।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद)