

बीकानेर। व्यक्ति को जीवन में पांच बातों से डरना चाहिए। पहला पाप से, दूसरा परमात्मा से, तीसरा दुव्र्यसन से, चौथा बड़ों से और पांचवा जन्म-मरण से डरना चाहिए। जो इन पांचों से डरता है, वो जीवन में पाप कर्म नहीं करता और उसे साता की प्राप्ति होती है। श्री शान्त- क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने यह सद्विचार रविवार को सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे नित्य प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। महाराज साहब ने नित्य प्रवचन में दृष्टि और दृष्टिकोण, बुद्धी तथा शुद्धी और दया तथा संयम के ज्ञान से श्रावकों को अवगत कराया।
महाराज साहब ने कहा कि जो चाह आप रखते हैं। वही चाह मैं भी रखता हूं, लेकिन आप की और मेरी राह में फर्क है। मैं संयम की राह पर चल रहा हूं। यह मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है।
महाराज साहब ने कहा कि केवल इस जन्म के कर्मबंध से व्यक्ति नहीं बंधा है। पिछले जन्मों का प्रभाव भी जीवन में आता है। इसलिए असाता वेदनीय से दुखी मत होइये, बल्कि हंसते-हंसते सहन कीजिए , इससे पापकर्म के बंधन का भार आप पर नहीं पड़ेगा। लेकिन साधक यह सोचता है कि चलो, अच्छा है। मैं पाप के कर्म से हल्का हो रहा हूं। महापुरुषों ने कहा भी है ‘पाप का परिणाम अस्पताल में और पुण्य का फल पाताल में’ अस्पताल में देखते हैं, व्यक्ति कितनी पीड़ाओं को भोग रहा होता है। असहाय वेदना को सहन करता हुआ , बिस्तर पर लेटा दुखों के सागर में डूबा रहता है। और जो साता कर्म करते हैं उन्हें पाताल में भी सुख मिलता है।
महाराज साहब ने कहा कि आप सब विराजित पुण्यशाली हैं जो आपको मनुष्य जीवन मिला है। आप भाग्यशाली इसलिए हैं कि आपको जिन शासन मिला है और आप परम सौभाग्यशाली हैं कि आपको जिनवाणी श्रवण करने का अवसर मिला है।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि संसार रूपी कुए में मत कूदो, आप अपनी तरफ देखो, दुनिया की तरफ नहीं, आप यह सोचो कि मुझे अपने लिए जीना है, यह सोचकर रहो। क्योंकि कर्म को दया नहीं आती, जो करेगा वही भरेगा, यह कर्म का सिद्धान्त है। हम एक दूसरे का कर्ज तो उतार सकते हैं, लेकिन कर्मों का फल स्वयं को ही भोगना पड़ता है।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि भगवान को ना आपने देखा है और ना ही मैंने देखा है। लेकिन संत और सती चलते-फिरते भगवान हैं। यह जिन शासन की जान है और यही जिन शासन की शान है। इसलिए इनकी बात माननी चाहिए। महाराज साहब ने एक प्रसंग के माध्यम से बताया कि किसी ने एक विद्वान से पूछा कि समाज को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए..?, इस पर उस विद्वान ने उत्तर दिया कि लोगों को टांगे छोडक़र हाथ पकडऩे चाहिए। हाथ से हाथ मिलाकर आगे बढऩा चाहिए। ठीक इसी प्रकार धर्म शासन को आगे बढ़ाने के लिए हाथ से हाथ मिलाने का प्रयत्न करें।
महाराज साहब ने कहा कि जितने भी संत महात्मा हुए हैं। सब एक ही बात कहते हैं नेकी कर, नेकी कर, हम यह सुनते हैं लेकिन करते नहीं हैं। बस यही हमारे दुख का कारण बनता है। संसारी की आदत होती है, वह दूसरों को अच्छा करते देख मन छोटा करता है। महाराज साहब ने कहा इससे बड़ी बदनसीबी नहीं है और आप दूसरों को अच्छा करते देखो और खुश होते हैं, यह खुशनसीबी है। इसलिए बुद्धी की शुद्धी रखनी चाहिए। हमारी दृष्टि ही साता और असाता का कारण बनती है। आचार्य श्री ने दृष्टि और दृष्टिकोण का भेद बताते हुए कहा कि दृष्टि सबके पास है लेकिन दृष्टिकोण एक जैसा नहीं मिला है। इसलिए दृष्टिकोण को सम्यक बनाओ, सम्यक दृष्टिकोण को लेकर संसार में रहते हैं तो संसार सुखमय बन जाता है और अगर आपका दृष्टिकोण असम्यक है तो आप चाहे जहां पर रह लें, आप सुखी नहीं रह सकते हैं। महाराज साहब ने सभी श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि मन से धार्मिक हो तो आप धार्मिक हैं। धर्म के प्रति अपने मन में अपनत्व का भाव पैदा करो, अपने बड़े-बुढ्ढे माता-पिता की सेवा करें, उन्हें आदर भाव देना चाहिए। क्योंकि जो पुत्र सुपुत्र होता है वही सुशिष्य होता है और जो सुशिष्य होता है वही भगवान को पाते हैं।
दया दिवस का हुआ आयोजन
श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक युवा संघ के प्रचार मंत्री विकास सुखाणी ने बताया कि सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य श्री के दीक्षा के स्वर्णीम पचासवें वर्ष के उपलक्ष में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। रविवार को सामूहिक दया दिवस का आयोजन किया गया। जहां बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं तथा बच्चों ने दया का भाव रखते हुए दया का व्रत किया। साथ ही प्रतिक्रमण (क्षमा याचना) के साथ व्रत का समापन हुआ। दया व्रत में नागौर, रत्नागिरी, बैंगलुरु, जोधपुर, मैसूर, कुकनुर, रतलाम, विजयनगर(अजमेर) दिल्ली पश्चिम विहार सहित अनेक स्थलों से बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया।
,प्रश्नमंच कार्यक्रम आयोजित हुआ
श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजय कुमार लोढ़ा ने बताया कि ढढ्ढा कोटड़ी में ही भगवान महावीर की जीवनी, जिनवाणी और धार्मिक प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें महिलाओं व पुरुषों सहित बालक-बालिकाओं की सहभागिता रही। इसके अलावा आचार्य श्री का सानिध्य, दर्शन व आशीर्वाद पाने के लिए सामूहिक परिवार का लाभ बोथरा परिवार ने लिया।
भजनों की रस सरिता बही
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने भजन ‘मनवा उल्टी तेरी रीत, किन्ही परदेशी से प्रीत, क्षण भंगूर काया तेरी, पल में बिखर जाएगी सारी’ और साता किजो जी , शांतिनाथ भगवान साता दिजो जी, तथा धरती चलती, तारे चलते, चांद रात भर चलता है, किरणों का उपहार बांटने सूरज रोज निकलता है। सुनाकर जीवन को सही दिशा में लगाने, प्रभु के ध्यान में डुबाने और सत्कर्म में ले जाने की बात कही। नवदीक्षित विशाल मुनि जी म.सा. ने सभा में पधारे हो, पाट पे विराजे हो,भगवन शोभा बढ़ाते हो, गुरु चरणों में श्रद्धा अर्पित की। अंत में मंगलवाणी के साथ णमोकार महामंत्र का जाप हुआ।