रिपोर्ट – रेखा
आयुक्त संस्कृत शिक्षा को हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण
मुख्यमंत्री से पुन: आयुक्त पद पर लगाने की मांग
जैपभारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉ. समित शर्मा को आयुक्त संस्कृत शिक्षा से हटाकर राजसीको प्रबंधक निदेशक अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। अपने काम को लेकर चर्चा में रहने वाले डॉ. समित शर्मा के तबादले का संस्कृत शिक्षा से जुड़े शिक्षक विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि संस्कृत शिक्षा निदेशालय की स्थापना के बाद ही शायद यह पहला अवसर था कि विभाग की डगमगाती नैया के खेवनहार के रूप में एक आशा की किरण लेकर आयुक्त शर्मा ने पदार्पण किया और आते ही निदेशालय की स्थापना के मूलभावों व उद्देश्यों की पूर्ति के साथ ही विभाग का कायाकल्प करने का प्रयास किया। उन्होंने सकारात्मक एवं ठोस कदम उठाकर अल्पसमय में ही संस्कृत शिक्षा के कार्मिकों में एक नई ऊर्जा का संचार किया था लेकिन उन्हें यहां से हटा दिया गया।
– आते ही दशा दिशा सुधारने का प्रयास
आपको बता दें कि डॉ.समित शर्मा ने बतौर आयुक्त कार्यभार संभालते ही संस्कृत शिक्षा विभाग की दशा और दिशा को सुधारने का प्रयास किया था। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रदेश के संस्कृत शिक्षा के संस्था प्रधानों की समीक्षा बैठक लेना शुरू किया। विभाग से जुड़े अधिकारियों और शिक्षकों का कहना है कि विभाग की स्थापना के बाद पहली बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की गई। पहली बार संस्था प्रधानों, शिक्षकों को अपनी समस्या खुलकर कहने का मौका मिला था।
– क्या कह रहे शिक्षक
शिक्षक एवं कर्मचारी नेता अशोक तिवाड़ी मऊ ने कहा कि संस्कृत शिक्षा विभाग राजस्थान के आयुक्त पद से आईएएस डॉक्टर समित शर्मा को हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सोमवार को आदेश जारी कर आयुक्त संस्कृत शिक्षा राजस्थान के पद से उन्हें हटाकर राजसीको प्रबन्ध निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है। आयुक्त पद से हटाए जाने को लेकर संस्कृत शिक्षा विभाग के कार्मिकों में भारी रोष व मायूसी व्याप्त है। तिवाड़ी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग की है कि डॉ. शर्मा को अविलम्ब पुन: आयुक्त पद पर पदस्थापित किया जाए। इसी प्रकार राजस्थान शिक्षक संघ सियाराम के प्रदेश प्रवक्ता जगेश्वर शर्मा ने भी उनका तबादला निरस्त किए जाने की मांग की है।
जनता उतरी थी सड़कों पर
आपको बता दें कि यह वहीं डॉ.समित शर्मा हैं जिनके तबादले का विरोध करने के लिए नागौर की पूरी जनता सड़क पर उतर आई थी। नागौर के जिला कलेक्टर के रूप में उन्होंने इतना कुछ कर दिखाया कि वह राजनेताओं की आंख की किरकिरी लेकिन जनता के पंसदीदा अधिकारी बन गए। इसी प्रकार चित्तौड़ से जब उनका तबादला किया गया तब भी जनता विरोध में उतर आई थी।
उन्होंने पदभार संभालते ही अकेले अचानक निरीक्षण का कार्य शुरू किया। वह जिला कलेक्टर के रूप में कभी देर रात निकल जाते तो कभी सुबह सवेरे। कभी अस्पताल में मरीज बन कर पहुंच जाते थे। हर दफ्तर, हर कार्य का निरीक्षण होने लगा। इतना करते ही तमाम गड़बडिय़ां सामने आने लगी। गड़बड़ करने वालों को छोड़ा नहीं जाता। देखते देखते नागौर जिले के दफ्तरों, अस्पतालों, स्कूलों का नक्शा बदल गया। कर्मचारी काम पर आने लगे और जनता को राहत मिलने लगी। कुछ ऐसा ही उन्होंने चित्तौड़ में किया था।
बतौर एनएचएम निदेशक के पद पर रहते हुए उन्होंने विश्व की एकमात्र मुफ्त दवा और फ्री जांच योजना शुरू कर अपना और प्रदेश का एक अलग मुकाम बनाया था। उन्होंने 2011 में राज्य सरकारी अस्पतालों में 450 से ज्यादा प्रकार की दवाइयां और तकरीबन सभी तरह की फ्री जांचें करने की स्कीम शुरू कर इतिहास रचा था। वह खुद एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट रह चुके हैं। स्वयं डॉक्टर होने के नाते उनको मरीजों की समस्याओं को समझने का अनुभव था। साथ ही वह रोगियों और उनके परिजनों पर उपचार कराने के कारण पडऩे वाले आर्थिक बोझ के भारी संकट को भी जानते थे।