दु:ख से डरे संसारी, डरे दोष से साधक – विजयराज जी महाराज साहब

बीकानेर। महापुरुषों ने फरमाया है कि दु:ख और दोष दोनों एक ही राशि के होते हैं। दु:ख हर किसी के जीवन में आते हैं लेकिन क्यों आते हैं इसका समाधान हमें खोजना पड़ता है। दु:ख और दोष तथा इनके निवारणों को लेकर आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने मंगलवार को अपने दैनिक प्रवचन में यह बात कही। महाराज साहब चातुर्मास के लिए बागड़ी मोहल्ला स्थित सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में विराज रहे हैं। जहां नित्य प्रवचन में उन्होंने कहा कि ‘दु:ख  से डरे संसारी , डरे दोष से साधक’ संसार में जितने भी साधक हैं, उन्हें दु:ख से कभी डर नहीं लगता है वे दोषों से बहुत डरते हैं।  कहीं कोई दोष ना हो जाए। लेकिन सांसारिक लोग दोषों से नहीं डरते, उन्हें तो दु:ख से डर लगता है। परन्तु वह यह नहीं जान पाते हैं कि दु:ख का मूल कारण ही दोष है। दोष हैं तो दु:ख तो आएंगे ही क्योंकि यह दु:ख को आमंत्रित करते हैं। इसलिए दोषों से डरो, दु:ख से नहीं डरना चाहिए। महाराज साहब ने कहा कि बंधक दु:खों से भागने वाला भोगी होता है और दु:खों से जागने वाला जोगी हो जाता है।
संकल्प की शक्ति की महिमा बताते हुए महाराज साहब ने भगवान महावीर और ग्वाले की कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान महावीर हमारे आदर्श और अराध्य पुरुष हैं, वह हमारे आधार है। राजकुमार अवस्था में जब वह थे, उन्हें किसी प्रकार का कोई दु:ख नहीं था। लेकिन जिस दिन उन्होंने मुनि बनने का निश्चय किया, उसी रात उन पर दु:खों के पहाड़ टूट पड़े। लेकिन वे दु:खों से घबराए नहीं, डरे नहीं, भागे नहीं, क्योंकि वे जानते थे कि मेरे दु:ख का कारण क्या है..?, इसलिए उन्होंने दु:खों को समभाव से सहन किया। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि यह जो दु:ख आ रहे हैं वह मेरे पूर्व के दोषों के कारण आ रहे हैं।
भगवान महावीर के जीवन चरित्र को पढऩे पर ज्ञात होता है कि जब ग्वाले ने उनके कान में कील ठोक दी थी। उस वक्त ना वे चीखे और ना ही चिल्लाए थे। लेकिन उन्होंने इस पर विचार करते हुए स्वयं से कहा कि यह कितना भला और उपकारी है। जिसने मेरे इतने बड़े अपराध की मुझे बस इतनी सी सजा दी। मुझे याद है जब शैय्यापालक ने मेरे आज्ञा की अवहेलना की थी तब मैंने अभिमान में आकर, उसके लाख मिन्नतें मांगने पर भी उसे क्षमा ना करते हुए उसके कानों में गर्म शीशा उड़लवा दिया था। उस पीड़ा के आगे तो यह कुछ भी नहीं है। महाराज साहब ने कहा कि यह सब पूर्व भव में भगवान महावीर के आत्मा की अत्यधिक अभिमान और उससे पीडि़त हुए शैय्यापालक के संकल्प का परिणाम था, जो बाद में उन्हें अपने अंतिम भव में भोगना पड़ा। आचार्य श्री ने कहा कि जिस प्रकार बगैर आटे के रोटी और मिट्टी के बगैर घड़े नहीं बनते, ठीक  उसी प्रकार बगैर किसी कारण के कोई कार्य नहीं होता है। इसलिए बंधुओं कारण खोजो, दु:ख आते हैं तो दु:ख से भागना नहीं, कारण पर ध्यान दो और यह मान कर चलो कि किसी कारण की वजह से ही मुझे दु:ख पहुंचा है, या हो रहा है।
महाराज साहब ने कहा कि जब तक जीवन में साता वेदनीय  कर्म का उदय नहीं होता है ना डॉक्टर काम आता है और ना दवा काम आती है। हमें अपने दोषों का निवारण स्वयं करना चाहिए। इसलिए दोषों का चिंतन करो, ऐसा करने से समभाव आते हैं। महापुरुष दु:ख को कभी दोष नहीं देते हैं। वह अपने कर्मों को दोष देते हैं। उन्हें पता होता है कि दु:ख में ज्यादा दम नहीं होता है। अगर हम सो रहे हैं तो दु:ख हावी होता है। लेकिन जब हम जागकर खड़े हो जाते हैं, दु:ख भागने लगता है। इसलिए दोष से डरो, इस पर चिन्तन किजीए। काल को साधो, समय को साधो, समय को साधने वाला ही साधक होता है।

_त्रिवेणी संघ का चातुर्मास
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि बीकानेर में चातुर्मास हो रहा है। यह त्रिवेणी संघ का चातुर्मास है।महाराज साहब ने गंगाशहर, भीनासर और बीकानेर के सह श्रावक-श्राविकाओं को त्रिवेणी संघ कहा है। इसलिए सभी इसका लाभ लेना चाहिए।
श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के  अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि प्रवचन के विराम से पूर्व आचार्य श्री विजयराज ही महाराज साहब के मार्गदर्शन में भजन सरिता बही जिसमें ‘उम्र हमको थोड़ी सी मिली थी मगर, वो भी घटने लगी देखते-देखते, ये करुं, वो करुं, कुछ ना कर सका, सांस थकने लगी देखते-देखते’ प्रेरक और भावपूर्ण  तथा नवदीक्षित विशालप्रिय जी म.सा. ने ‘गुरु के चरणों में है वंदन, सहनशील गुरु पृथ्वी सम है’ गुरु भक्ति का भावभरा भजन प्रस्तुत किया। महिला मंडल ने समूह में स्वागत गीत सुनाया। सामूहिक गीत ‘मन सुमरे प्रभु को, पल-पल में, जीवन तेरो बीत रेयो है, बीते बताशा ज्यों जल में, गोरी काया जल जाएगी, राख उड़ेगी जंगल में ’ चेतावनी भजन गाकर सभी से कर्म से बचने की बात कही। आचार्य श्री ने श्रावक -श्राविकाओं को चातुर्मास तक शील व्रत की प्रत्यख्यान करने, एकासना, आयम्बिल, उपवास, धर्मचक्र शुरू करने से पहले आज के उपवास, बेले का पच्चक्खान करने वालों को मंगलपाठ व आशीर्वाद प्रदान किया। सभा को विराम गुरुभक्ति के सामूहिक गीत एवं मंगलपाठ से दिया गया।