

भोपाल में भी मजदूरों से भरी ट्रेन आ गई, और राज्यों में भी ऐसी ट्रेन और मजदूरों की आवाजाही हो रही है | अब देश में कोरोना और उससे से उत्पन्न एक बड़ी समस्या ४० करोड़ करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका है। इस दुष्काल में जिस तरह से लोगों की आमदनी खत्म हुई है, उससे कई परिवारों के फिर से गरीबी रेखा के नीचे खिसकने का खतरा बढ़ गया है। देश आज एक भयावह स्थिति का सामना कर रहा है | हमारे देश में अन्य देशों की भांति यूनिवर्सल बेसिक इनकम (न्यूनतम मासिक आय) या बेरोजगारी लाभ जैसी व्यवस्था नहीं है, इसलिए कमजोर आर्थिक स्थिति वाली आबादी की आमदनी जल्द सुनिश्चित करनी होगी, और इसके लिए अर्थव्यवस्था को फिर से गति देना बहुत आवश्यक है।यह चुनौती छोटी नहीं है |


भारत के लिए एकमात्र व्यावहारिक रास्ता यह कि लॉकडाउन को व्यापक पैमाने पर खोला जाए, लेकिन तमाम सुरक्षा उपायों में किसी तरह की कोताही न बरती जाए। चूंकि बच्चे और बुजुर्ग इस वायरस के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं, इसलिए इन आयु-समूहों को घरों में रखने का विकल्प भी हो सकता है जिसका उपयोग सरकार ने किया है । भौगोलिक रूप से इसका निर्धारण करना सही तरीका हो सकता है। हॉटस्पॉट इलाकों की पहचान के साथ यह काम पहले से शुरू भी हो चुका है। इसी तरह, यदि कहीं कोविड-१९ का संक्रमित मरीज पाया जाता है, तो बडे़ पैमाने पर आम लोगों की जांच करने के साथ-साथ संक्रमित मरीज के संपर्क में आए लोगों की पहचान अब और भी आवश्यक है।


हालांकि लॉकडाउन से भारत का बाहर निकलना तभी सार्थक होगा, जब सरकार और रिजर्व बैंक असाधारण और गैर-परंपरागत नीतियों के साथ आगे बढेंगे।
ऐसे में भारत को राजकोषीय घाटे की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि कृषि और उद्योग में संरचनात्मक सुधार को तेज करना चाहिए। जैसे, कृषि-क्षेत्र के तहत बाजार को खोलना और वायदा कारोबार को बढ़ाना, जबकि उद्योग जगत के लिहाज से भूमि अधिग्रहण को आसान बनाना, नियुक्ति को प्रोत्साहित करना, कर-प्रणाली को आसान बनाना आदि।


एक और बात रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति में राहत देने के बावजूद बैंक कर्ज देने में सक्षम नहीं होंगे, क्योंकि एनपीए यानी डूबत कर्ज काफी ज्यादा है। इस मामले में हमें अमेरिका के फेडरल रिजर्व से सीखना चाहिए, और जिस तरह वह जोखिम वाले कॉरपोरेट बॉन्ड खरीद रहा है, आरबीआई को भी सरकार के साथ मिलकर एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई बनानी चाहिए, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को उनके कुछ शेयर लेकर अपने कर्ज कम करने के लिए पूंजी दे। सख्त राजकोषीय व मौद्रिक नीतियों पर आगे बढ़ने से भारत इस महामारी के दुष्प्रभाव को टाल सकता है। मुमकिन है कि इस उपाय से हमारी अर्थव्यवस्था इस साल के अंत तक सुधार की राह पर चल पड़े ।
