भाजपा ने अपने परवान पर पहुंचते ही कहना शुरू कर दिया कि अब कांग्रेस मुक्त भारत होगा। मध्यप्रदेश की चुनी सरकार गिरी तो ये जुमला कुछ ऊंचे स्वर में कहा जाने लगा। बड़े तो बड़े छोटे नेता भी बात बात में इस जुमले को दोहराने लगे। कांग्रेस का हाल भी कुछ ऐसा ही था, वो हर चुनाव हार रही थी। केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही उसकी सरकार रह गई थी। हालांकि उस वक़्त भी लगभग सभी राज्यों में उसके जन प्रतिनिधि थे, संगठन था। मगर हार से सब हताश थे। कांग्रेस ने परिवारवाद के आरोप से बचने के लिए मास्टर स्ट्रोक लगाया और पिछड़े वर्ग के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। उसे कांग्रेस विरोधियों ने हल्के में लिया, मगर अब उनकी चिंता बढ़ गई है। भाजपा ने उत्तर भारत, पूर्वोत्तर पर फतह के बाद जोड़ तोड़ से कर्नाटक की सरकार हथियाई। उसके जरिये दक्षिण भारत में विस्तार की योजना थी। मगर कर्नाटक की जनता ने भाजपा के रथ को रोक दिया और दक्षिण भारत को भाजपा मुक्त कर दिया। अब खड़गे का असर भाजपा को महसूस हुआ है।
कांग्रेस ने हिमाचल जीतने के बाद कब कर्नाटक बहुमत से जीता है, ये असर राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व तेलंगाना पर भी पड़ेगा। असर दिखने भी लगा है। एक दशक की परंपरा के विपरीत अब भाजपा छोड़कर नेता कांग्रेस में जाने लगे है। कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं में जोश आना स्वाभाविक भी है। जीत का एक टॉनिक कांग्रेस की पूरी रणनीति को बदलने में सहायक हो गया है। जिसका असर राजस्थान में सबसे पहले दिखा है। सचिन पायलट की जन संघर्ष पद यात्रा को लेकर जहां आलाकमान व प्रभारी रंधावा नाराज थे वहीं अब नरम पड़ गये हैं। कर्नाटक में जिस तरह से डी के शिवकुमार व सिद्धारमैया को साथ लाकर उन्होंने भाजपा को पटखनी दी, उसी कहानी को यहां दोहराने की योजना में लग गये हैं। उसकी स्क्रिप्ट भी खड़गे, राहुल व रंधावा ने लिख ली है और उस पर पायलट की यात्रा खत्म होते ही काम शुरू हो जायेगा। कांग्रेस के उत्साहित होने का एक दूसरा भी कारण है, वो है राजस्थान में चुनावी चेहरे का। कर्नाटक की तरह यहां भी भाजपा ने पीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर रखी है। इस घोषणा के सामने कांग्रेस सामूहिक नेतृत्त्व को उतारने का निर्णय कर चुका है।
कर्नाटक में पीएम ने रोड शो, सभाओं, रैली के जरिये जितने विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार किया, उसमें भाजपा को केवल 44 फीसदी सफलता मिली। ये जादू इस बार ज्यादा असर डालने वाला नहीं रहा। इसके विपरीत भारत जोड़ो यात्रा में 7 दिन राहुल जिन विधानसभा क्षेत्रों से निकले उनमें कांग्रेस की सफलता का प्रतिशत 66 से अधिक था। उन जिलों में कांग्रेस की सीटें पिछले चुनाव से दुगुनी हो गई। भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान और मध्यप्रदेश से निकली थी। उसका असर रहेगा, ये विरोधियों को अहसास हो गया है। भाजपा नेताओं को लगने लग गया कि उनका भारत जोड़ो यात्रा को लेकर किया गया आंकलन गलत था।
कांग्रेस को राजस्थान में केवल पायलट व गहलोत को साथ लाना है, फिर कर्नाटक फार्मूला लागू करने में आसानी रहेगी। हालांकि इन दोनों को साथ लाना अभी टेढ़ी खीर लग रहा है, मगर ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। मध्यप्रदेश में इस तरह की समस्या कांग्रेस के सामने नहीं है। वहां सिंधिया के जाने के बाद कमलनाथ के पास कमान है और दिग्गी राजा उनके साथ है। जबकि भाजपा से नेता कांग्रेस में जा रहे हैं तो सिंधिया गुट व मूल भाजपा में असंतोष व टकराहट चरम पर है। यदि भाजपा ने राजस्थान व मध्यप्रदेश में अपनी नीति को कर्नाटक परिणाम के बाद नहीं बदला तो परिणामों पर यहां भी असर पड़ेगा। अब वसुंधरा गुट को नजरअंदाज करना भाजपा को हिमाचल व कर्नाटक की तरह भारी पड़ेगा।
कर्नाटक में भाजपा का रथ रुकते ही विपक्ष ज्यादा सक्रिय हो गया है। शरद पंवार ने महाराष्ट्र में महाअगाडी गठबंधन की बैठक कर आम चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। नीतीश भी सक्रिय हो गये हैं और ममता दीदी के सुर भी बदल गये हैं। कर्नाटक के चुनाव परिणामों का अब असर हर चुनावी राज्य में निश्चित रूप से पड़ेगा।
- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार