

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को विपक्ष ने आरंभिक दौर में बहुत हल्के में लिया था, मगर बाद में जब जनता हर राज्य में जुड़ी तो उससे विरोध करने वाले अचम्भित भी हुए। सोशल मीडिया पर नेगेटिव प्रचार ने यात्रा को ज्यादा पॉपुलर किया। राहुल की छवि में भी बड़ा बदलाव आने लगा। उसके कारण ही अमित शाह ने भी इस साल होने वाले 10 राज्यों के चुनाव का दौरा शुरू किया है। भाजपा को दूसरी चिंता विपक्षी दलों के निकट आने की आहट से हुआ। यात्रा के कारण विपक्ष राहुल को लेकर नरम हुआ, ये सत्ता के लिए चिंता का कारण था।
शरद पंवार, शिव सेना उद्धव, डीएमके, नीतीश, फारुख अब्दुल्लाह आदि के बयान और अखिलेश, जयंत चौधरी, मायावती, राकेश टिकेत आदि की शुभकामनाओं ने स्पष्ट किया कि वे राहुल को लेकर नरम हुए हैं। ये भी भारत जोड़ो यात्रा का ही असर था।
राहुल और कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा को राजनीतिक नहीं बता रहे, मगर अपरोक्ष रूप से यात्रा ने कांग्रेस को भी जोड़ने का काम किया है। बिखरते संगठन को भी पर्दे के पीछे संभालने का काम राहुल ने किया है। हार से हताश कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं में भी यात्रा से ऊर्जा आयी है, ये तो साफ दिखने लग गया है। हर राज्य के कांग्रेस संगठन पर इसका प्रभाव पड़ा है।
तमिलनाडु में द्रमुक व कांग्रेस का गठबंधन मजबूत हुआ। केरल में कांग्रेस व सहयोगी दल जो पिछला विधानसभा चुनाव हार गये थे, वे ऊर्जा में आये। तेलंगाना में चंद्रशेखर को भी राहुल के प्रति नरम होना पड़ा। आंध्र में लगातार हार से हताश नेता व कार्यकर्ता उठ खड़े हुए और जगन रेड्डी का रुख भी सख्त नहीं रहा।
कर्नाटक में कांग्रेस को दलबदल के कारण जीता चुनाव एक तरह से हारना पड़ा। यहां शिवकुमार व सिद्धारमैया के बीच की दूरियों को यात्रा के जरिये राहुल ने कम किया, इस साल यहां चुनाव होना है। ये संगठन के स्तर पर बड़ी सर्जरी है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, एनसीपी के साथ का गठबंधन सरकार जाने के बाद से थोड़ा कमजोर हुआ था, उसे भी यात्रा से मजबूती मिली। महाअगाडी के सभी दल भारत जोड़ो यात्रा में साथ चले। जिसका असर अगले आम चुनाव पर भी पड़ेगा। भाजपा के लिए राह महाराष्ट्र में अब पिछले आम चुनाव की तरह आसान नहीं रहेगी।
राजस्थान तो कांग्रेस के लिए यात्रा आने से पहले बड़ी समस्या था। अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच तलवारें मयान से बाहर आई हुई थी। यात्रा की छांव में तलवारें वापस म्यान में गयी और दोनों गुट भी नरम पड़े। जिसका असर इस साल इस राज्य में होने वाले चुनाव पर भी पड़ेगा। यहां भाजपा में भी हिमाचल की तरह भीतरी असंतोष गहराया हुआ है।
यूपी व हरियाणा में भी यात्रा ने संगठन को खड़ा ही नहीं किया है अपितु मजबूत किया है। यात्रा की समाप्ति कश्मीर में होनी है तो वहां बड़ी सर्जरी कांग्रेस ने की।
कश्मीर में फारुख अब्दुल्लाह व मुफ़्ती ने साथ रहने का बयान दिया तो गुलाम नबी की पार्टी के नेताओं पर भी असर हुआ। दो महीने पहले ही कांग्रेस को तोड़ गुलाम नबी ने नई पार्टी बनाई थी। भाजपा इसीलिए वहां अपने लिए राहत महसूस कर रही थी। मगर यात्रा की छांव में सबसे बड़ा असर गुलाम नबी की पार्टी पर हुआ। दो महीने पहले पार्टी छोड़कर गये कांग्रेस नेताओ में से अधिकतर कल वापस कांग्रेस में आ गये। गुलाम नबी की पार्टी लगभग खाली हो गयी। एकबारगी तो आजाद अब कश्मीर में पूरी तरह बेअसर हो गए हैं। उससे भी बड़ी बात कांग्रेस ने ये कहकर कर दी कि अब गुलाम नबी का डीएनए अलग हो गया, इसलिए उनके लिए कांग्रेस के दरवाजे बंद है। राहुल की यात्रा कहने को भले ही गैरराजनीतिक हो, मगर असर पूरा का पूरा राजनीतिक हो रहा है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार

