

अगले आम चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की हुई बैठक में भले ही आप का कुछ मनमुटाव रहा हो मगर शेष सभी दल एक होकर चुनाव लड़ने पर पूरी तरह सहमत हो गये। विपक्ष अपने बाकी निर्णय अगले महीने शिमला में होने वाली बैठक में करेगा। मगर 15 दलों के एकजुट होने निर्णय ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। नींद उड़ना भी स्वाभाविक है कि क्योंकि इन दलों का 12 राज्यों की 328 सीटों पर प्रभाव है। इनमें से बड़ा हिस्सा अभी भाजपा के पास है क्योंकि पिछला चुनाव इन दलों ने एक होकर नहीं लड़ा था।
इन राज्यों में बंगाल, यूपी, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि बड़े राज्य भी शामिल है। इन 12 राज्यों की कुल 328 सीट में से अभी विपक्ष के पास मात्र 128 सीट है और अकेले भाजपा के पास 165 सीट है। जो बहुत अधिक है। 90 सीट अन्य दलों के पास है जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। यदि विपक्ष इन सीट पर भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारता है तो भाजपा गहरे संकट में फंस जायेगी। विपक्ष का वोट बंटेगा नहीं और नुकसान भाजपा का हो जायेगा।
इन 328 सीटों में से 185 सीट ऐसी है जिन पर भाजपा व कांग्रेस तीसरे या चौथे नम्बर पर है। उन सीट को जीतने की तो फिर भाजपा को कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वहां पहले व दूसरे स्थान पर क्षेत्रीय दल ही है जिनमें से कई विपक्ष की एकता में शामिल हो रहे हैं। भले ही वो पीडीपी हो या नेशनल कांफ्रेंस, जेडीयू हो या आरजेडी। इसलिए नीतीश कुमार बहुत सोच समझकर विपक्ष को एक करने का फार्मूला लाये हैं। इस फार्मूले के असर को भाजपा पहचान रही है और इसी वजह से ज्यादा चिंतित है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि जो नेता व दल पटना बैठक का उपहास उड़ा रहे थे अब उनको भी सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है। तभी तो अब शिमला बैठक को लेकर भाजपा व उसके सहयोगी गम्भीर हो गये है। पटना बैठक की सफलता के कारण ही मायावती को ट्वीट कर बैठक में न बुलाये जाने पर नाराजगी जतानी पड़ी। उम्मीद है कि जो लोग एकता और कांग्रेस के अस्पष्ट रुख को देखकर पटना की बैठक से दूर रहे थे वे भी अब विपक्ष की एकता के प्रयास में साथ आने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे व राहुल गांधी ने पटना बैठक की समाप्ति के बाद पीसी में साफ साफ कह दिया कि हम सभी मिलकर चुनाव लड़ने की बात पर सहमत हैं और इस प्रयास के लिए उन्होंने नीतीश कुमार का आभार भी जताया।
जानकारों के अनुसार शिमला बैठक में सीटों के बंटवारे को लेकर रणनीति तय होगी। क्षेत्रीय दल यही चाहते हैं कि उन्हें उनके राज्य में पर्याप्त सीट मिले। उनकी राह में केवल कांग्रेस थी, जो अब साथ लड़ने की बात पर सहमत है। शिमला बैठक से राजनीति में बड़े बदलाव की बयार निकलेगी। वहीं दूसरी तरफ भाजपा को भी इन 328 सीट के लिए कोई नई रणनीति ही तैयार करनी पड़ेगी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार