

अगले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय व नागालैंड विधानसभा चुनाव होंगे। इन 9 राज्यों के चुनाव डेढ़ साल बाद होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे हैं, इसी कारण कांग्रेस, भाजपा व नई बनी राष्ट्रीय पार्टी आम आदमी पार्टी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। क्योंकि इन राज्यों के परिणामों का आम चुनाव पर गहरा असर पड़ेगा।
सबसे पहले बात पूर्वोत्तर राज्यों की। भाजपा ने इन राज्यों पर बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से अपना वर्चस्व बनाया है, जबकि पहले इन राज्यों में उसकी उपस्थिति नगण्य थी। अलग अलग दलों से लोगों को भाजपा में शामिल कर सत्ता तक पहुंचने का काम पार्टी ने किया। त्रिपुरा में तो माकपा का लंबे अर्से तक शासन रहा, उसे भाजपा ने शिकस्त दी। इसके लिए कांग्रेस नेताओं का उसे सहारा मिला, बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल हुए। असम के सीएम हेमंत बिस्वा अब पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की कमान संभाले हुए हैं। पहले वे कांग्रेस के कद्दावर नेता थे मगर अब कांग्रेस पर पूर्वोत्तर में वे सबसे बड़े हमलावर नेता है। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट के समय बागी शिव सेना नेताओं को उन्होंने असम में ही पनाह दी थी। जिसके बाद महाराष्ट्र में तख्ता पलट हुआ और भाजपा ने शिंदे गुट के साथ सरकार बनाई।
उसके बाद से बिस्वा का कद भाजपा में बढ़ा। पूर्वोत्तर राज्यों में गृह मंत्री अमित शाह भी लगातार दौरे करते रहते हैं। वहीं अब संघ भी यहां काफी सक्रिय है। बिस्वा अब असम व पूर्वोत्तर के अलावा राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय हैं। महाराष्ट्र के बाद भाजपा ने उनका गुजरात चुनाव में भी उपयोग किया। बिस्वा अभी से पूर्वोत्तर राज्यों में निर्दलीय, कांग्रेस, तृणमूल व दूसरे क्षेत्रीय दलों के विधायकों को दलबदल करा भाजपा में लाने का काम आरम्भ कर चुके है। मेघालय, मिजोरम इसके उदाहरण है। भाजपा जितनी तेजी से यहां अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी कर रही है, उतना ध्यान अन्य दल नहीं दे रहे। कांग्रेस, तृणमूल, माकपा आदि को तो इन राज्यों में अभी तक संभलने तक का अवसर नहीं मिला है।
हां, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ के लिए भाजपा को चुनोती देने की तैयारी कांग्रेस ने अवश्य की है। कर्नाटक – महाराष्ट्र के मध्य का सीमा विवाद मूल रूप से चुनावी मसला ही है। मगर कांग्रेस यहां भारत जोड़ो यात्रा के जरिये अपने संगठन को सक्रिय कर चुकी है। नेताओं की बीच की दूरियां भी पाटने की कोशिश राहुल गांधी ने की है। कर्नाटक में सिद्धारमैया व शिवकुमार गुट के बीच राहुल ने मध्यस्थता कर अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश की है। कर्नाटक कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय है क्यूंकि अब कांग्रेस की कमान यहीं के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के पास है। उन्होंने ने कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं को बुला चुनावी चर्चा कर ली है। वे इस राज्य के चुनाव को लेकर गम्भीर भी है। इसलिए कर्नाटक में चुनाव कड़ी टक्कर वाले होंगे। भाजपा ने भी सहयोगियों की तलाश आरम्भ कर दी है। कर्नाटक में चुनाव की बिसात पूरी तरह बिछ चुकी है।
मध्यप्रदेश में भी इस बार कांटे की लड़ाई होगी। पिछली बार भी यहां सत्ता तक कांग्रेस ही पहुंची थी मगर सिंधिया गुट के दलबदल से कांग्रेस सरकार गिरी और भाजपा काबिज हुई। अब कमलनाथ व दिग्विजय सिंह एक होकर चुनावी बिसात बिछा रहे हैं। जिनको भारत जोड़ों यात्रा से भी काफी बल मिला है। इस राज्य में भाजपा की राह आसान नहीं रहेगी।
छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस गुटबाजी है मगर सीएम भूपेश बघेल के नेतृत्त्व को कोई बड़ी चुनोती नहीं है। उनको यहां की भाजपा की विपक्षी की सुस्त भूमिका का फायदा मिल रहा है। अब जाकर भाजपा ने अपने संगठन को यहां सक्रिय किया है। इस छोटे राज्य में मुख्य मुकाबला इन दोनों दलों के ही बीच होगा।
तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर तो एक साल पहले ही चुनावों की तैयारी में लग गये थे। यहां कमजोर स्थित में पहुंची कांग्रेस का फायदा भाजपा उठाना चाहती है। इसीलिए पीएम की सभाएं भी पार्टी ने यहां कराई है। मगर राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को यहां भारी जन समर्थन मिला उससे कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता उत्साहित हुए हैं। अब कांग्रेस भी यहां चुनावी मोड़ पर आ चुकी है। कांग्रेस व भाजपा से ज्यादा यहां चंद्रशेखर अधिक आक्रामक व सक्रिय है।
राहुल की यात्रा इस समय राजस्थान में है और कांग्रेस के लिए पिछले काफी समय से यही राज्य बड़ी समस्या है। गहलोत व पायलट गुट का झगड़ा जगजाहिर है जिस पर भारत जोड़ों यात्रा ने एक बारगी लगाम लगाई है, मगर ये झगड़ा शांत कैसे होगा, कुछ भी तय नहीं। राहुल संकेत दे चुके हैं कि राजस्थान में यात्रा पूरी होने के बाद यहां को लेकर पार्टी आलाकमान ठोस निर्णय लेगा। कांग्रेस से अधिक गुटबाजी की शिकार यहां भाजपा है, जिस पर भी अभी तक लगाम नहीं लगी है। हिमाचल के बाद यहां भी असंतुष्टों से खतरे का डर भाजपा को सता रहा है। यदि भाजपा की गुटबाजी पर जल्दी लगाम नहीं लगी तो कांग्रेस को कुछ राहत रहेगी।
कुल मिलाकर अगला साल पूरी तरह से चुनावी है और 9 राज्यों के चुनाव परिणाम ये तय कर देंगे कि डेढ़ साल बाद होने वाले आम चुनाव किसकी तरफ जायेंगे।
- मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार
