– चंडीगढ़ – राजेंद्र सोनी
“”पंजाब की राजनीति में डेरों का खासा प्रभाव है। डेरों के समर्थकों की बढ़ती तादाद एक बड़े वोट बैंक में तब्दील हो गई है। डेरे सूबे की कई सीटों पर जीत-हार तय करने की ताकत रखते हैं। पंजाब में सामाजिक व आर्थिक स्तर पर भेदभाव और डेरों में जाति, धर्म का बंधन न होने की वजह से लोग डेरों से जुड़े और बड़ी संख्या में लोगों ने इनसे जुड़ने के बाद नशा भी छोड़ा। यही वजह है कि डेरों की ताकत बढ़ती जा रही है।””
पंजाब की राजनीति में धार्मिक डेरों का अच्छा खासा प्रभाव है और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी तमाम राजनीतिक दल इन धार्मिक डेरों पर डोरे डालने में लगे हैं। डेरों की स्थिति यह है कि एक पार्टी के नेता ही माथा टेककर आशीर्वाद लेकर निकल रहे हैं तो दूसरी पार्टी के नेता भी दौड़ते डेरों में पहुंच रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर डेरों के धर्म गुरुओं ने अपने अनुयायियों की लाखों की तादाद को एक इशारा भी कर दिया तो राजनीतिक दलों को इन डेरों से अच्छा खासा वोट हासिल हो सकता है। पंजाब के अलग-अलग जिलों में इन डेरों का अच्छा खासा राजनीतिक प्रभाव है और दलों को लगता है कि चुनाव के वक्त अगर इन डेरों का समर्थन मिला तो अनुयायियों का बड़ा वोट बैंक हासिल हो सकता है। डेरों का राजनीति में कितना दखल है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल से लेकर पंजाब के सीएम चन्नी और सुखबीर बादल डेरों पर लगातार नतमस्तक हो रहे हैं।
चुनाव में डेरों के धर्म गुरु खुलकर कुछ नहीं बोलते हैं लेकिन हर चुनाव से पहले अंदरखाते अपने अनुयायियों को इशारा कर देते हैं। तमाम डेरों ने अपने राजनीतिक विंग का गठन कर रखा है। पंजाब में करीब 300 डेरे हैं लेकिन इनमें से 12 डेरों के समर्थकों की संख्या लाखों में है। पंजाब की सियासत में डेरों का प्रभाव नया नहीं है। शुरुआत में ही मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह की अगुवाई में अकाली नेतृत्व एसजीपीसी और विभिन्न गुरुद्वारों से जुड़े थे।
राधास्वामी ब्यास, सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डेरा संत भनियारावाला, डेरा सचखंड बल्लां, डेरा बेगोवाल, बाबा कश्मीरा सिंह का डेरा शामिल हैं। सभी जिलों में इनकी शाखाएं और जमीनें हैं। कई डेरे तो देश के विभिन्न हिस्सों और विदेश में भी जड़ें जमा चुके हैं।
प्रसिद्ध लेखक सतनाम सिंह माणक के मुताबिक डेरों के समाज भलाई कार्यों से भी इनका प्रभाव बढ़ा। पंजाब नशे की समस्या से जूझ रहा है। डेरों में शराब व अन्य नशे के खिलाफ फरमान जारी किया जाता है। बड़ी संख्या में लोगों ने नाम लेने के बाद नशा छोड़ दिया। डेरों ने अपने शिक्षण व सेहत संस्थान स्थापित किए। गरीब और दलित वर्गों के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया।
शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी धर्म प्रसार व सामाजिक कार्य करने में काफी कमजोर हुई है, जिसका फायदा डेरों को मिला है। डेरों ने पूरे साल का कैलेंडर तैयार कर रखा है। लोगों को घर बनाकर देने से लेकर रक्तदान, स्कूलों की फीस, अस्पतालों का संचालन तक कर रहे हैं। यही वजह है कि लोग डेरों की तरफ रुख करते हैं। डेरों की तरफ से वातावरण व प्रदूषण को लेकर भी मिशन चलाए जाते हैं। डेरों में जब श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में हो जाती है तो नेताओं का आना-जाना शुरू हो जाता है। पंजाब में ईसाई डेरे प्रफुल्लित हो रहे हैं। यहां शिक्षा व अस्पतालों में इलाज मुफ्त किया जाता है।

बहुत से डेरों का विवादों से भी नाता रहा है। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की वेशभूषा में अपने समर्थकों को जाम-ए-इंसां पिलाने के बाद काफी विवाद हुआ था। संत प्यारा सिंह भनियारा वाले को धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वहीं, डेरा सचखंड, बल्लां के प्रमुख संत निरंजन दास पर विएना में हमला हुआ, जिसमें उनके सहयोगी संत रामानंद दास ज्योति जोत समा गए। इसके बाद दोआबा में ऐसी आग भड़की कि दो दिन तक तांडव चलता रहा।
सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की तादाद करीब चार करोड़ मानी जाती है। इस डेरे के अनुयायी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में हैं। गुरमीत पर कई संगीन मामलों की सुनवाई अदालत में चल रही है। हत्याकांड व यौनशोषण मामलों में दोषी पाए जाने के बाद सजा भी हुई लेकिन आज भी उनके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में है। आज भी नाम चर्चा होती है और उनका राजनीतिक विंग काम कर रहा है। इस डेरे का पंजाब की सियासत के गढ़ मालवा की 35 सीटों पर प्रभाव है। 2007 में डेरे ने कांग्रेस को समर्थन दिया, जिसके बूते पार्टी ने मालवा में शानदार जीत दर्ज की थी।
ब्यास स्थित राधास्वामी डेरे का पूरे पंजाब में मजबूत आधार है। पंजाब ही नहीं, कई राज्यों से लेकर विदेश तक में डेरे के समर्थक फैले हैं। पंजाब ही नहीं, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में सभी जिलों में इनके सत्संग घर बने हैं। बाबा जैमल सिंह जी ने 1891 में डेरे की स्थापना की थी। यह डेरा हमेशा से सियासत से दूर रहा। समर्थकों की बड़ी तादाद के बावजूद डेरा चुनावों पर हमेशा मौन रहा। इस डेरे का राजनीतिक विंग काफी मजबूत है। खुले तौर पर किसी की मदद की घोषणा नहीं की जाती लेकिन डेरे का जमीनी स्तर पर संगठन है, वहां तक संदेशा पहुंचता है कि किस उम्मीदवार की मदद करनी है। कांग्रेस के पूर्व प्रधान मोहिंदर सिंह केपी भी इस डेरे के समर्थक हैं। सीएम चन्नी पदभार लेने के बाद दो बार डेरे पर जाकर आशीर्वाद ले चुके हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया का भी डेरे में प्रभाव है।
जालंधर के पास बल्लां स्थित डेरा सचखंड रविदास बिरदारी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। बिरादरी के सभी फैसले यहीं से होते हैं। डेरे ने वाराणसी में गुरु रविदास जी के जन्मस्थान पर धार्मिक स्थल का निर्माण कराया है। हर साल रविदास जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं को वाराणसी ले जाया जाता है। डेरे का दोआबा में खासा प्रभाव है। रविदासिया समाज ही दोआबा में जीत-हार का फैसला करता है। यहां हाल ही में सुखबीर बादल माथा टेककर गए। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी भी नतमस्तक हो चुके हैं। चन्नी रविदासिया समाज से हैं, इसलिए डेरे के प्रति उनकी आपार श्रद्धा है।
जालंधर के पास नूरमहल स्थित संस्थान का प्रभाव पंजाब ही नहीं, देश के कई हिस्सों में है। विदेश में भी इसकी शाखाएं हैं। संस्थान समाजसेवा के कार्य करता है। जेलों में कैदियों के लिए भी संस्थान की ओर से प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। कई सामाजिक कार्य नूरमहल संस्थान द्वारा किये जा रहे हैं। यह संस्थान और इसके प्रमुख आशुतोष महाराज हमेशा से कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। आशुतोष महाराज गहन समाधि में हैं लेकिन संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तमाम नेतागण हाजिरी लगाते हैं। अंकुर नरूला, रंजीत सिंह खोजेवाल की ओपन चर्च जालंधर व कपूरथला में चलती है, जहां पर रविवार को लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस चर्च में बीमारियों को ठीक करने के लिए समागम किये जाते हैं। पंजाब के बड़े-बड़े नेता इस चर्च में हाजिरी लगाने लगे हैं।पंजाब की सियासत में डेरों का खासा प्रभाव, नेता लगाने लगे हाजिरी!
“”पंजाब की राजनीति में डेरों का खासा प्रभाव है। डेरों के समर्थकों की बढ़ती तादाद एक बड़े वोट बैंक में तब्दील हो गई है। डेरे सूबे की कई सीटों पर जीत-हार तय करने की ताकत रखते हैं। पंजाब में सामाजिक व आर्थिक स्तर पर भेदभाव और डेरों में जाति, धर्म का बंधन न होने की वजह से लोग डेरों से जुड़े और बड़ी संख्या में लोगों ने इनसे जुड़ने के बाद नशा भी छोड़ा। यही वजह है कि डेरों की ताकत बढ़ती जा रही है।””
पंजाब की राजनीति में धार्मिक डेरों का अच्छा खासा प्रभाव है और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी तमाम राजनीतिक दल इन धार्मिक डेरों पर डोरे डालने में लगे हैं। डेरों की स्थिति यह है कि एक पार्टी के नेता ही माथा टेककर आशीर्वाद लेकर निकल रहे हैं तो दूसरी पार्टी के नेता भी दौड़ते डेरों में पहुंच रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर डेरों के धर्म गुरुओं ने अपने अनुयायियों की लाखों की तादाद को एक इशारा भी कर दिया तो राजनीतिक दलों को इन डेरों से अच्छा खासा वोट हासिल हो सकता है। पंजाब के अलग-अलग जिलों में इन डेरों का अच्छा खासा राजनीतिक प्रभाव है और दलों को लगता है कि चुनाव के वक्त अगर इन डेरों का समर्थन मिला तो अनुयायियों का बड़ा वोट बैंक हासिल हो सकता है। डेरों का राजनीति में कितना दखल है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल से लेकर पंजाब के सीएम चन्नी और सुखबीर बादल डेरों पर लगातार नतमस्तक हो रहे हैं।
चुनाव में डेरों के धर्म गुरु खुलकर कुछ नहीं बोलते हैं लेकिन हर चुनाव से पहले अंदरखाते अपने अनुयायियों को इशारा कर देते हैं। तमाम डेरों ने अपने राजनीतिक विंग का गठन कर रखा है। पंजाब में करीब 300 डेरे हैं लेकिन इनमें से 12 डेरों के समर्थकों की संख्या लाखों में है। पंजाब की सियासत में डेरों का प्रभाव नया नहीं है। शुरुआत में ही मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह की अगुवाई में अकाली नेतृत्व एसजीपीसी और विभिन्न गुरुद्वारों से जुड़े थे।
राधास्वामी ब्यास, सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डेरा संत भनियारावाला, डेरा सचखंड बल्लां, डेरा बेगोवाल, बाबा कश्मीरा सिंह का डेरा शामिल हैं। सभी जिलों में इनकी शाखाएं और जमीनें हैं। कई डेरे तो देश के विभिन्न हिस्सों और विदेश में भी जड़ें जमा चुके हैं।
प्रसिद्ध लेखक सतनाम सिंह माणक के मुताबिक डेरों के समाज भलाई कार्यों से भी इनका प्रभाव बढ़ा। पंजाब नशे की समस्या से जूझ रहा है। डेरों में शराब व अन्य नशे के खिलाफ फरमान जारी किया जाता है। बड़ी संख्या में लोगों ने नाम लेने के बाद नशा छोड़ दिया। डेरों ने अपने शिक्षण व सेहत संस्थान स्थापित किए। गरीब और दलित वर्गों के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया।
शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी धर्म प्रसार व सामाजिक कार्य करने में काफी कमजोर हुई है, जिसका फायदा डेरों को मिला है। डेरों ने पूरे साल का कैलेंडर तैयार कर रखा है। लोगों को घर बनाकर देने से लेकर रक्तदान, स्कूलों की फीस, अस्पतालों का संचालन तक कर रहे हैं। यही वजह है कि लोग डेरों की तरफ रुख करते हैं। डेरों की तरफ से वातावरण व प्रदूषण को लेकर भी मिशन चलाए जाते हैं। डेरों में जब श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में हो जाती है तो नेताओं का आना-जाना शुरू हो जाता है। पंजाब में ईसाई डेरे प्रफुल्लित हो रहे हैं। यहां शिक्षा व अस्पतालों में इलाज मुफ्त किया जाता है।
बहुत से डेरों का विवादों से भी नाता रहा है। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की वेशभूषा में अपने समर्थकों को जाम-ए-इंसां पिलाने के बाद काफी विवाद हुआ था। संत प्यारा सिंह भनियारा वाले को धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वहीं, डेरा सचखंड, बल्लां के प्रमुख संत निरंजन दास पर विएना में हमला हुआ, जिसमें उनके सहयोगी संत रामानंद दास ज्योति जोत समा गए। इसके बाद दोआबा में ऐसी आग भड़की कि दो दिन तक तांडव चलता रहा।
सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की तादाद करीब चार करोड़ मानी जाती है। इस डेरे के अनुयायी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में हैं। गुरमीत पर कई संगीन मामलों की सुनवाई अदालत में चल रही है। हत्याकांड व यौनशोषण मामलों में दोषी पाए जाने के बाद सजा भी हुई लेकिन आज भी उनके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में है। आज भी नाम चर्चा होती है और उनका राजनीतिक विंग काम कर रहा है। इस डेरे का पंजाब की सियासत के गढ़ मालवा की 35 सीटों पर प्रभाव है। 2007 में डेरे ने कांग्रेस को समर्थन दिया, जिसके बूते पार्टी ने मालवा में शानदार जीत दर्ज की थी।
ब्यास स्थित राधास्वामी डेरे का पूरे पंजाब में मजबूत आधार है। पंजाब ही नहीं, कई राज्यों से लेकर विदेश तक में डेरे के समर्थक फैले हैं। पंजाब ही नहीं, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में सभी जिलों में इनके सत्संग घर बने हैं। बाबा जैमल सिंह जी ने 1891 में डेरे की स्थापना की थी। यह डेरा हमेशा से सियासत से दूर रहा। समर्थकों की बड़ी तादाद के बावजूद डेरा चुनावों पर हमेशा मौन रहा। इस डेरे का राजनीतिक विंग काफी मजबूत है। खुले तौर पर किसी की मदद की घोषणा नहीं की जाती लेकिन डेरे का जमीनी स्तर पर संगठन है, वहां तक संदेशा पहुंचता है कि किस उम्मीदवार की मदद करनी है। कांग्रेस के पूर्व प्रधान मोहिंदर सिंह केपी भी इस डेरे के समर्थक हैं। सीएम चन्नी पदभार लेने के बाद दो बार डेरे पर जाकर आशीर्वाद ले चुके हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया का भी डेरे में प्रभाव है।

जालंधर के पास बल्लां स्थित डेरा सचखंड रविदास बिरदारी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। बिरादरी के सभी फैसले यहीं से होते हैं। डेरे ने वाराणसी में गुरु रविदास जी के जन्मस्थान पर धार्मिक स्थल का निर्माण कराया है। हर साल रविदास जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं को वाराणसी ले जाया जाता है। डेरे का दोआबा में खासा प्रभाव है। रविदासिया समाज ही दोआबा में जीत-हार का फैसला करता है। यहां हाल ही में सुखबीर बादल माथा टेककर गए। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी भी नतमस्तक हो चुके हैं। चन्नी रविदासिया समाज से हैं, इसलिए डेरे के प्रति उनकी आपार श्रद्धा है।
जालंधर के पास नूरमहल स्थित संस्थान का प्रभाव पंजाब ही नहीं, देश के कई हिस्सों में है। विदेश में भी इसकी शाखाएं हैं। संस्थान समाजसेवा के कार्य करता है। जेलों में कैदियों के लिए भी संस्थान की ओर से प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। कई सामाजिक कार्य नूरमहल संस्थान द्वारा किये जा रहे हैं। यह संस्थान और इसके प्रमुख आशुतोष महाराज हमेशा से कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। आशुतोष महाराज गहन समाधि में हैं लेकिन संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तमाम नेतागण हाजिरी लगाते हैं। अंकुर नरूला, रंजीत सिंह खोजेवाल की ओपन चर्च जालंधर व कपूरथला में चलती है, जहां पर रविवार को लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस चर्च में बीमारियों को ठीक करने के लिए समागम किये जाते हैं। पंजाब के बड़े-बड़े नेता इस चर्च में हाजिरी लगाने लगे हैं।