प्रस्तुत कर्ता : हरप्रकाश मुंजाल, अलवर ।

कहते है ना पूत के पाव पालने में ही नजर आ जाते हैं । यह बात शत प्रतिशत अलवर के वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश रवि जी पर सही बैठती है। इन्हें बाल अवस्था मे ही लिखने पढ़ने का शोक लग गया । अभी मिडिल क्लास में ही थे कि अलवर के दैनिक अखबारों में सम्पादक के नाम चिट्‌ठी लिखने लग गए । और कॉलेज शिक्षा के आते आते अपनी पत्रकारिता में पैठ जमा ली । इन्होंने बचपन से ही ठान ली थी कि इन्हे सरकारी नोकरी में नही जाना है बल्कि रचनात्मक कार्यो में हिस्सा लेना है । हालांकि इनके पिता जी सरकारी शिक्षक थे तथा बड़े भाई साब भी बैंक की नौकरी में आ गए थे । इसके बावजूद इन्होने सरकारी नौकरी में जाना उचित नही समझा ।
इन्होंने अपनी शालीनता से लोगो का दिल जीता और सबसे मधुर व्यवहार रखा । इनकी विनम्रता के सब कायल है । जहां तक खबरों की बात है उसमें किसी तरह का कोई पक्षपात नहीं किया ।

इनकी पत्रकारिता की कैसे शुरुआत हुई वो भी बहुत रोचक किस्सा है । बात 1986 की है जब एक दिन इनके घर पर हॉकर अरूणप्रभा के स्थान पर अरानाद डाल गया। उस अखबार में एक वेकेंसी थी नगर संवाददाता चाहिए। तब ये प्रथम वर्ष के छात्र थे , और भविष्य को लेकर कोई खास प्लान नहीं बनाया था । पर सामाजिक कार्यों और कॉलेज के कार्यक्रमों में निरन्तर भाग लेने के कारण अखबार में रूचि थी। उस वेकेंसी को देखकर शाम को ये अरानाद ऑफिस पहुंचे, जहां इन्हें संपादक प्रहलाद मंगलानी जी मिले। उसी दिन एक और युवा भी इसी पद के लिए वहां पर आया हुआ था , मंगलानी जी ने इन दोनों को रेलवे स्टेशन पुलिस थाने से लेकर सदर थाना, अस्पताल व कोतवाली से खबर लाने के लिए कहा। तीन चार दिन तक दो जने साइकिल से सभी स्थानों पर जाकर खबरें लाते रहे। उसमें राजेश रवि का चयन हुआ। उस समय मानदेय के नाम पर 150 रुपए प्रतिमाह देना तय हुआ। उस दिन के बाद ये पत्रकारिता में इस कदर रम गए कि वापिस मुड़कर नहीं देखा। और आगे बढ़ते चले गए। जीवन में कभी भी सरकारी सेवा का एक भी फार्म तक नहीं भरा। कुछ समय बाद अरानाद बंद हो गया और वहीं से सांध्य ज्योति दर्पण का प्रकाशन शुरू हुआ तो उसके प्रभारी बन गए।

1989- में बलवंत तक्षक रोहतक में जनसत्ता के स्टाफर बन गए तो तक्षक जी के प्रयासों से राजेश जी अलवर के संवाददाता के तौर पर जनसत्ता भी ज्वाइन कर लिया।

वर्ष 2000 में भरतपुर में दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ के पद पर ज्वाइन किया। 2003 में अलवर ब्यूरो चीफ रहे। 2005 में दैनिक भास्कर जयपुर में रीजनल इंचार्ज बने, जुलाई 2006 में भीलवाड़ा के संपादक बनें जहां पर जून 2012 तक रहे। इसके बाद अलवर स्थानांतरण हो गया। वर्तमान में अलवर के कार्यकारी संपादक है। पत्रकारिता के दौरान अलवर में बाल दीक्षा का विरोध, सरिस्का में अवैध खनन के खिलाफ लड़ाई,अलवर का सीमा शर्मा , शालिनी शर्मा कांड जिसमें नामी अधिकारी और नेता शामिल थे, को खोलने सहित भीलवाड़ा, भरतपुर के अनेक मामले है जिनके लिए आज भी राजेश रवि का नाम लिया जाता है। सन 94 में भिवाड़ी में हरपाली कांड हुआ था जहाँ इस महिला को सरेआम निर्वस्त्र घुमाया गया था। जिसके विरोध में भिवाड़ी में विभिन्न सामाजिक संगठनो ने दोषी लोगो गिरफ्तारी की मांग पर एक बड़ी बैठक आयोजित की थी । उस समय संचार के साधन सीमित हुआ करते थे । खबरे तो जैसे तैसे अखबार के दफ्तर पहुंच जाया करती वो भी देर सवेर लेकिन फोटो का पहुचना एक जंग लड़ने जैसा होता था । क्योंकि पहले फोटोग्राफर का इंतजाम करो फिर उसे तैयार करने में घंटो लग जाया करते थे । आज की तरह नहीं था कि मोबाइल पर क्लिक करते ही फोटो फुर्रहो जाती है ।

सेकंडों में डेस्क पर पहुंच जाती है लेकिन उस दिन की खबर फोटो सहित जनसत्ता की सेकिंड लीड बनकर छपी और यहां सब सकते में आ गए । आखिर ये कैसे हो गया । बाद में राजेश जी ने बताया कि उस दिन वे दिल्ली जा रहे थे और भिवाड़ी रुक गए और फिर सीधे जनसत्ता ऑफिस पहुचे और खबर फ़ोटो सहित डेस्क पर दी ।इसी तरह 88 में कठूमर के पास मसारी कांड हुआ जहां दलित दूल्हे की घोड़ी पर निकासी नही होने दी जा रही थी । गांव तनाव व्याप्त था । तत्कालीन जिला कलेक्टर सुनील अरोड़ा और तत्कालीन एसपी मनोज भट्ट को वही दो दिन डेरा डालना पड़ा । उस घटना की भी जीवंत कवरेज की । जो यादगार बनी ।
राजेश रवि जी सकारात्मक पत्रकारिता के भी पक्षधर है। जो लोग बेहतर काम करते है उनके पक्ष में भी उतनी ही ताकत के साथ लिखते है जो अवांछित गतिविधियों में लिप्त होते हैं उनके खिलाफ लिखने में भी नहीं चूकते हैं ।

– पत्रकारिता में लेखन- भास्कर से पहले देश भर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं धर्मयुग, चौथी दुनिया,क्रांतिधर्मी संपादक स्वामी अग्निवेश में लेखन का कार्य किया। भास्कर की पत्रिका अहा जिंदगी व सप्लीमेंट नवरंग में भी आर्टिकल प्रकाशित हुए। लिखने की आदत के कारण वर्ष 1996 से 2000 तक तरुण भारत संघ के कार्यों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार जिनेश जैन के साथ कई पुस्तकें ग्राम स्वराज की राह पर भांवता कोल्याला , पहाड़ पर पानी , साझा श्रम आदि लिखी। इनके अलावा बाढ़ व मुक्ति इन्होंने अकेले ने लिखी। एक पुस्तक भांवता कोल्याला ब्रिट्रेन के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स काे भी भेट की गई।

1996 में एक टीवी सीरियल दिग्भ्रमित बनाया जिसमें भगवत शर्मा के नेतृत्व में जिनेश जैन, श्याम शर्मा व राजेश रवि भी डायरेक्टर थे। यह सीरियल जयपुर दूरदर्शन से 15 एपिसोड में दिखाया गया।

– राजेश जैन से राजेश रवि कैसे बनें-
राजेश रवि के बारे में बहुत सारे लोगों के मन में सवाल उठता है कि वे रवि क्यों लिखते है। सबसे पहले मैं उनका पुराना दोस्त होने के नाते इस राज को आज खोलना चाहता हूं। बात उन दिनों की है जब वे जब अपने गांव मुबारिकपुर में पढ़ते थे तभी लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित संगठन छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के वीरेंद्र विद्रोही वर्तमान में नामी सामाजिक कार्यकर्ता व लोकेश वर्तमान में एक सरकारी विभाग के बड़े अधिकारी

के संपर्क में आए। यह संगठन संपूर्ण क्रांति के नारे के साथ काम करता था। इस संगठन की सबसे पहली शर्त यह थी कि जो इसका सदस्य होगा उसे अपने नाम व व्यवहार से जाति को हटाना होगा। उसी समय से इन्होंने पहले अपना नाम राजेश कुमार और उसके बाद राजेश रवि कर दिया। तब से आज तक इन्हें लोग रवि के नाम से ही जानते है।

बारहवीं कक्षा तक गांव में पढ़ाई करने के बाद अलवर आ गए तो यहां पर कॉलेज आंदोलनों सहित कई सामाजिक कार्यों , रंगकर्म आदि में जुटे रहे। उस समय अलवर में युवाओं की एक टीम को वेद दीदी का साथ मिली। वेद दीदी यानि जीडी कॉलेज की तत्कालीन व्याख्याता डा. वेदकुमारी। जिन युवाओं ने उनसे बहुत कुछ सीखा उनमें राजेश रवि का भी नाम शामिल है।

रंगकर्म और सामाजिक कार्य – अलवर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान व संघर्ष वाहिनी के साथियों के साथ बैंक कर्मी देवदीप जो आजकल कलकत्ता में है, के निर्देशन में रंगकर्म से भी जुड़ें। संकेत नाम के संगठन के साथ मिलकर कई नाटकों का मंचन भी किया। एक बार मई दिवस के दिन कंपनी बाग में कुछ श्रमिकों ने गलतफहमी के कारण नाटक कर रहे लोगों पर हमला कर दिया उनमें राजेश रवि भी शामिल थे। सरकारी सिस्टम के खिलाफ अनेक नुक्कड़ नाटकों का भी इन्होंने मंचन किया। अरानाद में कार्य करते हुए राजू माथुर से इनकी गहरी मित्रता हुई जो आज भी जारी है । श्री माथुर सरकारी सेवा में हैं । इनके सहयोगी के रूप में राजगढ़ निवासी कैलाश टोंक का भी विशेष सहयोग रहा ।

अलवर में इन्होंने पत्रकारों के प्रशिक्षण और अन्य लोगों से चर्चा के लिए अनेक सेमिनार भी करवाई जिनमें देश के ख्यातनाम पत्रकार प्रभाष जोशी व राजेंद्र माथुर भी शामिल हुए । अब भी विभिन्न रचनात्मक कार्यो में भाग लेते रहे हैं ।

– पारिवारिक पृष्ठभूमि

राजेश रवि जी का पुश्तेनी गांव रामगढ़ उपखण्ड के आखरी छोर पर स्थित मुबारिकपुर है। इनके माता पिता अब भी गांव ही रहते हैं । ये चार भाई हैं और ये सभी अलवर रहते हैं । सभी ने अच्छा मुकाम हासिल कर रखा है ।

मैं सम्भवतः पहला पत्रकार हूं जिसे इन सब चारों भाइयों की शादी में जाने का अवसर मिला । दिसम्बर87 में इनके बड़े भाई की शादी हुई । जिनकी बरात नोगावां कस्बे में आई । हम अलवर से तत्कालीन जिला जनसम्पर्क अधिकारी डॉ देवदत्त शर्मा, बलवंत तक्षक, सुनील बिज्जू, प्रह्लाद मंगलानी जी दुपहिया वाहनों से नोगावां गये और रात को ही वापस आये । इस दौरान बलवंत तक्षक इतने मशगूल हो गए कि उन्हें पता ही नही चला कि कोनसी शादी में जाना है वे पड़ोस में हो रही अन्य शादी में चले गए और खाना भी जीम आये । बाद में देखा कि यहाँ तो कोई परिचित ही नहीं है फिर पूछते पूछते हमारे पास पहुँचे । इस तरह यह शादी यादगार बन गई ।

राजेश जी का विवाह अलवर में ही हुआ , जबकि डॉक्टर सुशील जेन जी का आगरा हुआ । और महेश जी का भी अलवर ही हुआ ।इन सब भाइयों की मैं बारात में जाने का मौका मिला । ये सभी लम्हे यादगार बन गए हैं ।
राजेश भाई स्वास्थ्य , चुस्त दुरुस्त रहे । इसी तरह की इनमे फुर्ती बनी रहे । प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर होते रहे । यही ईश्वर से कामना है ।

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