बीकानेर/ मुक्ति संस्था बीकानेर के तत्वावधान में पाँचवी राजस्थानी राष्ट्रीय काव्य -गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन रविवार को झूम एप पर किया गया। काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रख्यात रंगधर्मी एवं राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा थे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की।
कार्यक्रम संयोजक जयपुर की युवा साहित्यकार कविता मुखर एवं कार्यक्रम समन्वयक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी में राजस्थानी भाषा के युवा कवि और जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, बीकानेर के प्रतिष्ठित गीतकार राजेन्द्र स्वर्णकार, शाहपुरा भीलवाड़ा के मंचीय कवि कैलाश मण्डेला और ऋषभदेव उदयपुर के भविष्य दत्त भविष्य ने राजस्थानी भाषा में काव्य पाठ किया।
राजस्थानी काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रख्यात रंगधर्मी एवं राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा ने कहा कि राजस्थानी भाषा दुनिया की समृद्ध भाषाओं में अपना प्रमुख स्थान रखती है और इसके बोलने वाले लगभग सभी देशों में मौजूद हैं,लेकिन दुर्भाग्य से इसे संवैधानिक मान्यता नहीं है । उन्होंने कहा कि लगभग दस करोड़ से भी अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा को अविलम्ब संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जानी चाहिए । बोराणा ने कहा कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता हेतु राज्य सरकार द्वारा 2003 में ही सर्वसम्मति से आवश्यक संकल्प पारित करके भेजने के लंबे समय बाद भी केंद्र सरकार प्रभावी निर्णय नहीं कर रही है । बोराणा ने केंद्र सरकार से राजस्थानी भाषा के साथ भेदभाव का रवैया छोड़ कर उसका वाजिब हक देने की मांग की है।
बोराणा ने कहा कि हजार वर्ष से अधिक पुराना इतिहास रखने वाली राजस्थानी भाषा के पास उसका अपना विशाल शब्दकोश, व्याकरण एवं विपुल मात्रा में प्राचीन व नव साहित्य मौजूद है । इसे देश विदेश के अनेक विश्व विद्यालयों में पढ़ाया और शोध किया जा रहा है ।
उन्होंने संसद में राजस्थान से निर्वाचित व चयनित सांसदो से आह्वान किया कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जन भावनाओं व मायड़ भाषा के गौरव हेतु केंद्र सरकार के सम्मुख पुरजोर तरीके से बात उठाये और कोशिश करें कि संसद के इसी सत्र में राजस्थानी को चिर अपेक्षित मान्यता मिल जाय ।
बोराणा ने आज पढ़ी गई कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थानी की रचनाएँ अन्य भारतीय भाषाओं के बराबर ही नहीं, अनेक दृष्टी से उनके आगे खड़ी है, ये रचनाएं जहां एक ओर राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का दिग्दर्शन कराती हैं वहीं दूसरी ओर यथार्थ दर्शन और शिल्प की दृष्टि से वे अनुपम चित्रण खड़ा करती है । उन्होंने सभी कवियों को और आयोजक संस्था मुक्ति को भी अच्छे आयोजन के लिए बधाई दी ।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि राजस्थानी भाषा के इस कार्यक्रम को राजस्थान और पूरे देश के लोगों का सर्मथन मिल रहा है, उन्होंने कहा कि लोगों का प्यार और जुड़ाव ही राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। जोशी ने कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं के लोग भी अधिक से अधिक जुड़ाव रखने लगे हैं। राजस्थानी भाषा हमारी सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने का उल्लेखनीय काम करती है।
वही राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित गीतकार बीकानेर के राजेन्द्र स्वर्णकार ने अनेक गीत , गज़ल, मुक्तक, एवं राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए भी रचनाएँ प्रस्तुत की , स्वर्णकार ने विविध छंदों पर आधारित रचनाएँ इस बोल में गीत “दीवटिया ! मत डरजे नैना था’री बांवड़ल्या अर नैनी-सी औकात रे” तथा सूरज रे भाठा बाणद्’यो आंधां में काणा राव हुवै, गज़ल के बोल रहे। एक और शानदार गज़ल हुयो म्हैं बावळो,थारै ई जादू रौ असर लागै सहित अनेक मीठे-मीठे शब्दों के गीत सुनाये।
शाहपुरा भीलवाड़ा के मंचीय कवि कैलाश मण्डेला ने अपने अलायादा अंदाज में राजस्थानी गीत-कविताएं और गजलें सुनाकर वाहवाही लूटी उन्होंने लड़ोकण्या,पिछाण,यादां , म्हा भाषा राजस्थानी शीर्षक से शानदार रचना सुनाई , उनकी रचनाओं में जीवन को मैळा मानकर अनेक रंग भरने की कोशिश करती रचनाएँ प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का शानदार संचालन करते हुए प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत किया तथा सभी कवियों का परिचय जयपुर की युवा साहित्यकार कविता मुखर ने दिया।
कार्यक्रम के अन्त में कार्यक्रम समन्वयक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया।