– गहलोत ने किया शक्ति प्रदर्शन 108 विधायकों के साथ होने का दावा लेकिन बाड़ेबंदी में 84 विधायक ही पहुंचे

– सरकार पर संकट के बादल, खतरा अभी टला नहीं, सदन में बहुमत के लिए देनी पड़ सकती है अग्नि परीक्षा
● तिलक माथुर केकड़ी – राजस्थान

जयपुर।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच चल रही वर्चस्व की जंग के चलते राजस्थान में सियासी घमासान जारी है। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पायलट के बगावती तेवर के बावजूद गहलोत सरकार पर कोई संकट नहीं है, मगर जानकारों का कहना है कि खतरे के बादल अब भी छंटे नहीं हैं। कांग्रेस के नेता संख्या बल के आधार पर गहलोत सरकार बचाने का दावा करते नजर आ रहे हैं।

पिछले दिनों से राज्य में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर पूरे प्रदेश व देश के लोगों की निगाह टिकी हुई हैं, लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हैं कोई कह रहा है सरकार बच जाएगी तो कोई कह रहा है सरकार गिर जाएगी। राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के अचानक सख्त बगावती तेवर ने गहलोत सरकार को हिलाकर रख दिया है, जिसकी वजह से मुख्यमंत्री गहलोत को अपनी सरकार बचाने की मशक्कत करनी पड़ रही है। मुख्यमंत्री निवास पर आज गहलोत के शक्ति प्रदर्शन में 108 विधायकों के साथ होने का दावा किया जा रहा है जबकि बाड़ेबंदी में यह संख्या 84 बताई जा रही है। उधर बगावत कर दिल्ली में रूठकर बैठे सचिन पायलट का दावा है कि उनके पास 30 विधायकों का समर्थन हैं जिससे गहलोत सरकार अल्पमत में आ गई है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि पायलट भले ही 30 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं मगर मौजूदा हालात को देखते हुए उनके खेमे में 17 विधायक ही नजर आ रहे हैं। हालांकि अभी पायलट ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं वे भाजपा में शामिल होंगे या तीसरे मोर्चे का गठन करेंगे। आज जिस प्रकार नाटकीय ढंग से पीसीसी ऑफिस से पायलट की फ़ोटो लगे पोस्टर हटाने तथा दो घण्टे बाद ही पोस्टर वापस लगाने का जो घटनाक्रम चला उसे लेकर भी कई तरह की चर्चाएं हैं। पायलट को मनाने के भी प्रयास तेजी से शुरु किये गए हैं। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर नींद से जागी कांग्रेस ने व्यापक स्तर पर पायलट को मनाने के प्रयास शुरू किए हैं। जानकारी के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गांधी व प्रियंका गांधी सहित पांच दिग्गज नेता पायलट से सम्पर्क कर उन्हें मनाने के प्रयास कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सचिन पायलट अब उस मोड पर चले गए हैं जहां से लौटना सम्भव नहीं लगता, मगर फिर भी राजनीति में हर चीज सम्भव है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अशोक गहलोत पायलट से किसी प्रकार का समझौता करने के मूड में नहीं हैं इस बारे में वे आलाकमान को भी कह चुके हैं। उधर पायलट भी अपनी उपेक्षा से इस कदर विचलित हो चुके हैं कि वे वापस लौटने के मूड में नहीं हैं। हालांकि इस घटनाक्रम के अंतिम समय में मध्यस्था के लिए प्रियंका गांधी की एंट्री क्या गुल खिलाती है वह देखने वाली बात है। राजनीतिक जानकारों व भाजपा नेताओं का कहना है कि जब सरकार सुरक्षित है तो फिर विधायकों की बाड़ेबंदी का क्या तुक है, गहलोत को अब भी लगता है कि उनकी सरकार पर खतरे के बादल अभी छंटे नहीं है। यही वजह है कि पायलट को मनाने के लिए दिग्गज नेता मैदान में उतर आए हैं। आलाकमान अगर यही प्रयास पहले करता तो शायद यह नोबत नहीं आती। ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के चलते गहलोत संख्या बल के आधार पर भले ही अपनी सरकार के मजबूत होने का दावा कर रहे हों, मगर अंदर ही अंदर क्या पक रहा है कुछ कहा नहीं जा सकता। कहा जा रहा है कि गहलोत सरकार की सदन में बहुमत साबित करते समय ही असल में अग्नि परीक्षा होगी। इस मामले में भाजपा की भूमिका भी स्पष्ट नजर नहीं आ रही, भाजपा नेता यही कह रहे हैं कि यह कांग्रेस की अंदरूनी कलह है। भाजपा नेताओं का कहना है कि बड़ी विचित्र बात है कि मुख्यमंत्री को अपनी ही पार्टी के विधायकों को पुलिस की कड़ी सुरक्षा में सीएमओ बुलवाना पड़ा, आखिर उन्हें खतरा किससे है विधायकों की बाड़ाबंदी करने की नोबत क्यों आई।

राजनीतिक पंडितों के कहना है कि गहलोत व पायलट की लड़ाई का सीधा फायदा भाजपा को मिलता नजर आ रहा है, वह मौके की तलाश में है। माना जा रहा है कि ज्योहीं मौका मिला तो मध्यप्रदेश की तर्ज पर भाजपा यहां भी सरकार बनाने का दावा कर सकती है। जबकि जानकारों की माने तो भाजपा के कुछ लोग इस मामले में अहम भूमिका निभा रहे हैं जिनमें मुख्यतः पायलट के मित्र हाल ही में भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की अहम भूमिका बताई जा रही है। खैर कुछ भी हो मगर फिलहाल पायलट का रुख स्पष्ट न होने तक गहलोत सरकार पर संकट मंडराता दिख रहा है।