– चौथ वसूली का. खेल यानलहॉस्पिटल का गोरखधंधा साधी चुप्पी

— हॉस्पिटल संचालक ने पत्रकार के साथ मारपीट कर थाने में दर्ज कराया मुकदमा

आगरा।आगरा विगत दिनो एक पत्रकार साथी पर एक हॉस्पिटल संचालक द्वारा थाना कमला नगर मे दर्ज कराये गये चौथ वसूली के मामले से आक्रोशित पत्रकार साथियो द्वारा पीड़ित पत्रकार को लेकर एडीजी पुलिस आगरा से मुलाकात कर निष्पक्ष जांच कराते हुए पुलिसिया कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए दोषियो पर कार्यवाही करने की मांग की गई थी। मगर एक दिन बाद ही बंद कमरे मे महापौर की मध्यस्थता के चलते हॉस्पिटल संचालक और पीड़ित पत्रकार का आपस मे समझौता हो गया।बड़े गर्म जोशी से हुई शुरुआत पत्रकार उत्पीड़न कहानी की उठती आवाज का एक दिन बाद ही बंद कमरे मे नाटकीय अंदाज मे पटाक्षेप हो गया-!

इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश संयुक्त पत्रकार समिति के संस्थापक-अध्यक्ष पं0कृष्ण गोपाल शर्मा”वत्स”ने कहा कि बड़े ही संवेदना का विषय है कि सूत्रो के मुताबिक पीड़ित पत्रकार के साथ एक हॉस्पीटल संचालक द्वारा अभद्रता और मारपीट करने के बाद थाना कमला नगर मे चौथ वसूली का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज करा दिया गया।संबंधित थाने की पुलिस ने भी बिना जांच-पड़ताल किये ही मुकद्दमा दर्ज कर लिया और पीड़ित पत्रकार की धर पकड़ मे लग गई।
पहले तो यही पर प्रश्न उठता है कि आखिर पुलिस ने आनन-फानन मे एक पत्रकार के ऊपर बिना जांच-पड़ताल किये किन परिस्थितियो मे मुकद्दमा दर्ज किया ? क्या गठबंधन रहा हॉस्पिटल संचालक और थाना कमला नगर पुलिस का-? वही दूसरा सवाल यह भी उठता है कि ऐसे गंभीर मामले का समझौता एक बंद कमरे मे शहर के महापौर की मध्यस्थता के चलते पीड़ित पत्रकार और हास्पिटल संचालक मे किन परिस्थितियो मे कराया गया और क्यों-? यह अपने आप मे गंभीर चिंतन का विषय तो है ही साथ ही अपार दर्शिता के चलते इस प्रकरण मे संघर्ष रत रहे पत्रकारो को व्यथित करने वाला तो है ही साथ ही साथ इस समझौते पर सवालिया निशान लगाने वाला भी है-?

इधर इस सवाल को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है कि यह मामला वास्तव मे चौथ वसूली का था या नही-?अगर था तो ऐसा आपत्तिजनक क्या गोरखधंधा चल रहा था हास्पिटल मे जो पत्रकार वहा अपनी जेब गरम करने पहुंच गया-?अगर यह सवाल निर्मूल साबित होता है तो हास्पिटल संचालक को किन परिस्थितियो मे पत्रकार के साथ अभद्रता और मारपीट करने के साथ चौथ वसूली का मुकदमा दर्ज कराने की आवश्यकता पडी-?मान लीजिये यह सारे तर्क वेबुनियाद है तो क्या पत्रकार और हॉस्पिटल संचालक का कोई पहले से अंदरूनी मामला था जिसके चलते यह मामला प्रकाश मे आया और बंद कमरे मे बैठकर महापौर को मध्यस्थता करके इस मामले को रफा-दफा कराना पड़ा-? कुछ तो है जो पर्दे के पीछे है जिसे सभी पत्रकार साथियो से महफूज रखने का प्रयास किया गया है-?
आखिर क्या है महापौर हास्पिटल संचालक और पीड़ित पत्रकार का गठबंधन -? साथियो आज नही तो कल सच सामने अवश्य आएगा।
बहुत ही मशहूर शायर ने लिखा है और फिल्माया गया भी है—-
लाख छुपाओ छुप न सकेगा-राज हो कितना गहरा,दिल की बात बता देता है-असली-नकली चेहरा-!

You missed