

नई दिल्ली, (दिनेश शर्मा “अधिकारी “)। जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने माना है कि भविष्य निधि, बीमा, सावधि जमा, बैंक बैलेंस आदि का मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के रूप में प्राप्य राशि से कोई संबंध नहीं है। इस मामले में, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, कुपवाड़ा ने बीमा कंपनी को मृतक परिवार को 7.5% के साथ 32,43,212 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। बीमा कंपनी ने इस आधार पर अधिनिर्णय को चुनौती दी कि वह वन प्रभाग, कुपवाड़ा में कनिष्ठ सहायक के रूप में कार्यरत एक सरकारी कर्मचारी था और इस वजह से उसके वारिस सात साल के लिए पूर्ण वेतन के हकदार हैं और ट्रिब्यूनल ने मुआवजे के भुगतान का आकलन करते समय इस तथ्य की अनदेखी की। हालांकि, न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल की खंडपीठ ने कहा कि बीमा या पेंशन लाभ के कारण मुआवजे से कटौती की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि पेंशन और ग्रेच्युटी मृतक की संपत्ति है और वे आस्थगित मजदूरी की प्रकृति में हैं।
कोर्ट ने हेलेन सी रेबेलो और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम मामले में कोर्ट ने हेलेन सी रेबेलो पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण वारिसों द्वारा प्राप्त होने वाले किसी भी धन का आकस्मिक मृत्यु के कारण हुई एक क़ानून के तहत प्राप्य राशि से कोई संबंध नहीं है। पीठ ने अन्य उदाहरणों का भी उल्लेख कर अपील को खारिज कर कहा कि अनुकंपा नियुक्ति को वारिसों द्वारा प्राप्य लाभ के रूप में नहीं कहा जा सकता है और इसका आकस्मिक मृत्यु के कारण हुई एक क़ानून के तहत प्राप्य राशि से कोई संबंध नहीं है। कोर्ट के अनुसार, ट्रिब्यूनल ने उचित मुआवजा दिया है।
