

बीदासर। आचार्य महाश्रमण ने आज धर्मसभा में कहा कि यह प्रश्न उठ सकता है कि हम यह जीवन क्यों जीयें ? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, इस संदर्भ में मोक्ष जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य कहा जा सकता है। कोई व्यक्ति भौतिक लक्ष्य निर्धारित करता है पर उससे आगे क्या ! धन, पदार्थ की भौतिकता इस जन्म तक ही साथ रहती है। मृत्यु के साथ ही यह नश्वर पदार्थ यहीं रह जाते हैं, मोक्ष एक बार मिल जाये तो फिर नष्ट नहीं होता है। इसलिए हमारे जीवन का यह लक्ष्य होना चाहिए कि हम मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़े। कई जन्मों की साधना से मोक्ष प्राप्त होता है। कम से कम इस जन्म में साधना कर उसके निकट तो पहुंचे। शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा कि साध्य, साधन, साधना, साधु, सिद्धी और सिद्ध यह छः साधना के बिन्दु है। मोक्ष साध्य है और सम्यक दर्शन, ज्ञान व चरित्र इसके साधन है। इनकी साधना कर साधु सिद्धि मोक्षत्व को प्राप्त कर सकता है। मोक्ष साधना का बंधक तत्व है - आक्रोश गुस्सा। हमारे व्यवहार में भी व्यक्ति को गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। कभी कोई कुछ कह भी दे तो भी प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। जिसके व्यक्तित्व में शान्ति, समता रहती है वह व्यक्ति साधना में आगे बढ़ सकता है। स्वयं पर स्वयं का अनुशासन रहे। स्वयं अनुशासित रहकर व्यक्ति मोक्ष की साधना की दिशा में आगे बढ़ सकता है। धर्मसभा में नचिकेता मुनि आदित्य कुमारजी, साध्वी श्री संगीतप्रभा जी ने भी विचारों की अभिव्यक्ति दी।