राजस्थान की राजनीति में उठा पटक का दौर चल रहा है
– ओम दैया
जयपुर।पूरे घटनाक्रम में केंद्र सरकार का भी पूरा दखल होना गहलोत के करीबियों पर इनकम टैक्स के छापे पड़ने से साबित हो रहा है।

केंद्र सरकार राजस्थान में कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसा घटनाक्रम करने के पूरे मन के साथ काम तो कर रही है पर दोनों जगह से राजस्थान बहुत अलग इसलिए हो जाता है क्यूंकि कर्नाटक में येदयुरप्पा व मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के रूप में ऐसे लोग भाजपा के पास थे जिनके इर्द गिर्द सारे खेल को रचा जा सकता था वहीँ राजस्थान में भाजपा की सबसे कद्दावर और लोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे को कमान नहीं सौंपी जा रही है।

इस बात के साक्ष्य उपलब्ध है कि भाजपा की शह पर राज्य सभा चुनावों से पहले राजेश पायलट की बरसी के बहाने से विधायकों को दिल्ली जाने की योजना बन चुकी थी पर वह भी भाजपा की नेतृत्व हीनता के कारण सिरे नहीं चढ़ पायी।

नेतृत्व के अभाव में दिशाहीन भाजपा अशोक गहलोत के हर दाव के आगे चित हो रही है. अशोक गहलोत राजनीति के पुराने खिलाडी हैं वे व्यक्ति से तो लड़ सकते हैं पर वर्त्तमान में उनका सामना पूरे सिस्टम से है जिस से लड़ पाना एक बड़ी चुनौती है।

राज्यसभा चुनाव से लेकर अभी तक भाजपा द्वारा प्रदेश मे गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, ओम माथुर जैसे नेताओं के बल पर सत्ता पलटने की कोशिशें की गयी. केंद्र के हर सहयोग के बाद भी ये नेता फिस्सडी साबित हुए।

सबसे बड़ा सवाल उठता है कि इन सभी नेताओं की विफलता के बाद भी वसुंधरा राजे को आगे क्यों नहीं किया जा रहा है?

इस सवाल का जवाब 2014 से चले आ रहे कुछ घटनाक्रमों में छुपे हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जहाँ पूरे देश के भाजपा नेता, यहाँ तक की पार्टी को बनाने वाले लाल कृष्ण अडवाणी तक मोदी के आगे नतमस्तक थे, ऐसे समय में भी वसुंधरा राजे ने राजस्थान के 25 सांसदों को तब तक शपथग्रहण में नहीं जाने दिया जब तक उन्हें संतुष्ट नहीं किया गया।

निहाल चंद मेघवाल को केंद्रीय मंत्री बनाये जाने पर प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार होने के बाद भी बलात्कार का मुकदमा उठा. जानकार बताते हैं कि वसुंधरा राजे को नाराज़ करके निहाल चंद को मंत्री बनाया गया था और उनकी सरकार में मुक़दमे के माध्यम से निहाल चंद को मंत्रिपद से बेदखल करवा कर मोदी की सत्ता को चुनौती दी तथा शिकस्त भी दी।

पूरे भारत में जहाँ भाजपा का हर बड़े से छोटा नेता मोदी के गुणगान गा रहा था, केवल एक वसुंधरा राजे खुल्ले मंच से ये कहने की हिम्मत जुटा पायी कि कोई इस वहम में न रहें कि एक आदमी के कारण सत्ता प्राप्त हुई।

अमित शाह द्वारा नामित प्रदेशाध्यक्ष गजेंद्र सिंह शेखावत को वसुंधरा राजे ने नकारा भी तथा बदलवाया भी. पूरे भारत में अमित शह के किये गए फैसले को पलटवाने का दम भाजपा की केवल एक ही नेता दिखा पायी।

बाद में विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में भी वसुंधरा राजे ने अमित शह को दरकिनार किया।

इसी कारण मोदी-शाह जो कर्नाटक में येदयुरप्पा और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को आगे करके भाजपा की सरकार बनवा सकते हैं, वे राजस्थान में बीस से ज्यादा विधायकों के कांग्रेस के खिलाफ होने के बाद भी वसुंधरा राजे को आगे करके सरकार नहीं बनवाना चाहते।

वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनवाने की बजाये मोदी-शाह अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बने रहना ज्यादा पसंद करेंगे।

मोदी वसुंधरा राजे के रूप में एक ऐसी नेता को देखते हैं जो उन्हें चुनौती देने का दम रखती हैं इसलिए वे हर हाल में राजे को सत्ता से दूर रखना चाहते हैं और अक्षम लोगो के दम पर सारी लड़ाई लड़ रहें हैं।

वसुंधरा राजे का जहाँ तक सवाल है उन्होंने हमेशा अपनी शर्तो पर राजनीति की है. केंद्रीय नेतृत्व को सम्मान तो दिया है पर अपने मुद्दों पर दखल को कभी बर्दाश्त नहीं किया।

वसुंधरा राजे की माँ विजयाराजे सिंधिया ने भाजपा को खड़ा करने में एहम भूमिका निभाई थी. आज के दौर में हम भाजपा की सबसे बड़ी पूंजी संघ को मानते हैं पर संघ एक वैचारिक संघठन है वह भाजपा को वैचारिक ढृढ़ता तो प्रदान कर सकता है पर व्यावहारिक राजनीति के लिए भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर तैयार करने में सबसे एहम भूमिका निभाने वाले लोगो में से विजयाराजे सिंधिया एक रही. संघ के विचार को राजनैतिक पार्टी के रूप में व्यावहारिक रूप से पूरे देश में परिवर्तित करने में निसंदेह विजयाराजे सिंधिया की एहम भूमिका रही ये संघ के स्वयंसेवको के बस की बात नहीं थी।

इसलिए वसुंधरा राजे भाजपा को अपना मानती भी है तथा पार्टी पर अपना हक़ समझती है जो कि है भी परन्तु वर्त्तमान में मोदी-शाह की पालिसी में वे खटकती है इसलिए वे वसुंधरा की कोई भूमिका नहीं बनाना चाहते, चाहे अनुकूल परिस्थितियों में सरकार बनने का मौका चूक भी जाए।

इस खेल में सबसे बड़ा दांव ही वसुंधरा राजे द्वारा तब चला जायेगा जब उनको नज़रअंदाज़ करने पर सचिन पायलट और उनके बीस विधायकों को अपने पाले में करने, बीटीपी व निर्दलीय विधायकों को अपनी तरफ करने, कोर्ट से सचिन पायलट गुट के विधायकों की सदस्यता बचवाने, जोगेंद्र अवाना या और किसी बसपा के विधायक को तोड़कर विलय को ख़ारिज करवाने, इनकम टैक्स से गहलोत के करीबियों पर छपा पड़वा मनोबल कमज़ोर करने तथा अन्य सभी हथकंडे अपना कर अंत में इसलिए मुँह की खानी पड़ेगी क्यूंकि भाजपा में वसुंधरा राजे समर्थक विधायक क्रॉस वोट कर सरकार को इसलिए बचाएंगे के कहीं सरकार गिरने से उनकी नेता के अलावा कोई मुख्यमंत्री न बन जाए।

मोदी-शाह इस बात से वाकिफ हैं कि तीन संभावनाएं हो सकती है, एक – सरकार न गिरे और गहलोत मुख्यमंत्री बने रहें, दूसरी – सरकार गिरे और भाजपा का मुख्यमंत्री बने, तीसरी – राष्ट्रपति शासन लगे।

मोदी-शाह वसुंधरा के अलावा भाजपा के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने पर भी सहज हैं और राष्ट्रपति शासन पर भी पर इस सारे घटनाक्रम का नतीजा अंत में इस बात पर ही निर्भर करेगा कि वसुंधरा बनाम मोदी शह की जंग में कौन जीतकर उभरता है न कि गहलोत बनाम पायलट।

भाजपा की बिछाई हुई सारी बिसात तथा लगभग सरकार का गिरना तय होना मोदी-शाह की इस जिद की वजह से बच सकता है कि उन्हें भाजपा की सरकार में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री देखने के बजाये अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री देखना ज्यादा भायेगा. इस पूरे घटनाक्रम में निर्णायक भूमिका वसुंधरा राजे की रहेगी न कि पायलट गहलोत की जैसे मीडिया द्वारा प्रचारित किया जा रहा है।