

आज के हालात में यह आकलन करना मुश्किल है कि अगले राजस्थान विधानसभा चुनाव में किसकी सरकार आएगी और कोन मुख्यमंत्री होगा। अशोक गहलोत सरकार अच्छा काम कर रही है। यह बात तो उनके धुर विरोधी भी मान रहे हैं। जनता को लोक लुभावने योजनाओं की सौगात की भी कमी नहीं रखी है। फिर भी राजस्थान में अगले विधानसभा चुनावों को लेकर आज तस्वीर धुधली है। किस पार्टी की सरकार होगी, कोनसी पार्टी का कोन मुख्यमंत्री होगा। सचिन की नाराजगी कितनी दूर तल्ख जाएगी? कांग्रेस की गुटबंदी क्या गुल खिलाएगी ? वसुंधरा राजे को लेकर प्रदेश भाजपा में क्या समीकरण बनेंगे। आप और अन्य दल क्या फंडा लेकर आते हैं ये सब अभी राजनीति के भविष्य के गर्भ में हैं। यह तय हैं कि कांग्रेस राजस्थान से अपना वजूद बरकरार रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाली है। पार्टी में आपसी तकरार अभी तक गई नहीं है। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व अभी तक तो कुछ कर पाने में समर्थ नहीं दिख पा रहा है। दारोमदार अशोक गहलोत पर ही है। जो पार्टी में अपने विरोधियों के निशाने पर हैं। यही हालत प्रदेश भाजपा की है। भाजपा में प्रदेश स्तर पर कोई जादू करने वाला सर्वमान्य नेता उभरा नहीं है। प्रदेश भाजपा केंद्र की शह पर कई खेमों में बंटी है। बेशक प्रदेश में भाजपा का वसुंधरा राजे से लोहा लेने का किसी नेता में मादा नहीं है। अगर किसी में मादा होते तो उपचुनावों में भाजपा की इतनी बुरी गत नहीं होती। राजस्थान की राजनीति में बेशक केंद्र की राजे के प्रति तिरछी नजरें हैं। पर किसी भी राजे विरोधी नेताओं की नजरें तो नीचे ही हैं। हालांकि राजे का उभरना या बाहर होना नेतृत्व के समक्ष जटिल मुद्दा है। इसका समाधान भी समय के गर्भ में ही छिपा है। राजस्थान की राजनीति में क्षेत्रीय दल, जाट राजनीति, बसपा, गुर्जर, मीणा, अजा जजा और उभरती आप पार्टी भी प्रदेश में अगले चुनाव की राजनीति तस्वीर को धुंधला ही बना रही है। यह धुंधलका बामुश्किल ही छंटेगा।