

जयपुर(हरीश गुप्ता)। राजा खुद को फकीर कह दे, तो उस राज्य की प्रजा क्या कहलाएगी? यह यक्ष प्रश्न ऐसा है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। उधर राजनैतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि अशोक गहलोत ने ऐसा जुबानी तीर छोड़ा है, जो कईयों को घायल करके मानेगा।
सूत्रों ने बताया कि दिनभर अशोक गहलोत के उस बयान की चर्चा चारों तरफ रही, जिसमें उन्होंने खुद को फकीर बताया है। यहां उनके खुद को फकीर बताने का मतलब क्या निकाले, यह किसी के समझ नहीं आ रहा। उसका कारण है कि एक नेता और मध्यमवर्गीय व्यक्ति कभी खुद को फकीर नहीं कह सकता। फकीर तो वह होता है जिसके आगे पीछे कोई नहीं होता। इनके पीछे तो हुजूम है।
सूत्रों की मानें तो चर्चाएं जोरों पर है, ‘गहलोत ने खुद को फकीर कहा है तो राजा किसे व्यंग्य में मान रहे हैं।’ ‘…क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को या वसुंधरा राजे को या फिर आलाकमान को? आलाकमान को इसलिए भी नहीं मान सकते क्योंकि अलवर की धापू देवी का नाम लेकर इशारों ही इशारों में जोर का झटका धीरे से दे दिया। शायद इसीलिए उन्हें राजनीति क्या जादूगर भी कहते हैं।
सूत्रों की मानें तो उन्होंने मोदी को सूट-बूट वाला पीएम भी बता दिया, तो खुद को फकीर। ऐसा माना जा रहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में राज्य के सीएम का कोई चेहरा पार्टी घोषित नहीं करने का विचार बना चुकी, बल्कि मोदी का ही चेहरा सामने रखेगी। शायद इसलिए भी खुद को फकीर बताया हो? वसुंधरा राजे राज परिवार से है। मान सकते हैं, इसलिए भी कहा हो? अगर सूत्रों की मानें तो राजे दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। हालात यह हैं कि उनके गुट के, उनके विश्वासपात्र भी अब उनसे दूरी बनाने में लगे हुए हैं। भाजपा प्रदेश मुख्यालय में चर्चाएं जोरों पर है, ‘राजे का जिसने नाम भी ले लिया, उसका पत्ता साफ है।’ ‘…यही कारण है कि प्रदेश से दिल्ली जाने वाला भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं। जिस काम दिल्ली गए, काम करके वापस चुपचाप लौट जाता है।’ अब देखना है गहलोत ने खुद को फकीर बताया है तो क्या नया खेल करेंगे? समुद्र मंथन से अमृत निकला, ऐसे ही राजनीति के मंथन से गहलोत ने फकीर शब्द निकाला।यह कैसे और क्या काम करेगा?