रचनाकार :मोहन लाल भन्साली “कलाकार”
इक्कीसवीं सदी में संभावित सबसे बड़ी विनाशकारी महामारी से आज सर्वव्यापी मानव त्राहि त्राहि कर रहा है।
संभवतः दुनिया में पहली बार एक साथ चक्का जाम हुआ और आदमी अपने घरों में क़ैद हुआ, देश के कर्णधार भी सटीक निर्णय लेने में असमंजस हुए। सबकुछ असाधारण!सबकुछ अकल्पनीय!
चहूंओंर भयभीत पीड़ितों की सेवाओं में “कोरोना वाॅरियर्स “ने भगवान के प्रतिनिधि का दायित्व निभाया,सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने भी सेवाओं के द्वारा अविस्मरणीय संस्मरण लिख दिया मानवीयता की सारणा वारणा में संसार के दिग्गज शहंशाहों ने भी कोरोना रोकथाम हेतु अविरल प्रयास किया, मानवता के मसीहा माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्रीमान मोदीजी 20 सौ घंटे धारा प्रवाह मानवीय सेवाओं में लोह पुरुष की भांति डटे रहे,और राज्यों के मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन शतत् जागरूकता से क्षेत्रीय सेवाऐं दी।
वर्तमान के परिदृश्यों में भविष्य के प्रति चिंतन करना अपेक्षित है,विश्व की महाशक्तियां भारत के साथ खड़े होकर भारत का मनोबल बढ़ाया तो दूसरी तरफ भारत के पड़ोसी देश चीन की और आकर्षित हो रहे हैं, और स्वचालित लेबोरेटरियों में “जीवाणु वायरस ” के प्रशिक्षण कार्यों से निर्मित वायरस भी मानवता के लिए चिंता का कारण बन सकता है?
वर्तमान में सबसे अच्छी बात यह रही कि सृष्टि रचित प्रकृति की सौन्दर्यता के अनुपम नजारें को देखा गया।
वर्ल्ड में शोधकर्ताओं ने पाया कि परमाणु बमों से ज्यादा खतरा जलवायु परिवर्तन से हैं, जिसका कारण अपरिग्रह,लालच आदि10 बिन्दुओं पर ध्यान आकर्षित किया । प्रसंगवंश हम यदि शास्त्रों पर दृष्टिपात करें तो ये सिद्धांत भगवान महावीर के शास्त्र समत हैं, आचार्य श्री तुलसी ने मानवमात्र के लिए भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त अणुव्रत के सिद्धांतों को आधुनिक परिवेश में “अणुव्रत आचार संहिता” के माध्यम से प्रस्तुत किया!वतर्मान दृष्टिकोण से ये सिद्धांत मार्गदर्शन का प्रकल्प बन सकता हैं।
आगे शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनिया की लगभग 780 करोड़ जनसंख्या में से मात्र 40 करोड़ लोगों की बदौलत प्रदुषण का90%भाग प्रदुषित हो रहा है, क्योंकि वे समृद्धि की चकाचौंध के लालच में दुनिया के नंबर1पूंजीपति बनना चाहते हैं और शेष प्रदुषण का 10%भाग 400 करोड़ लोगों की देन हैं।
दुनिया के अर्थ शास्त्रियों का मानना है कि वर्तमान दौर में 50% यानि लगभग 350 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की संभावना हैं।
समय के पारखी एवं उदारमना महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविंद आदि देश-प्रेमीयों ने महामारी काल में अपने वेतनमान का कुछ भाग कम लेने की पहल की है।
जो कि भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों द्वारा बताये गए विसर्जन मंत्र का सराहनीय उदाहरण हैं।
वहीं दूसरी ओर चरमराई हुई आर्थिक स्थिति के बावजूद सरकारें अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति हेतु होटल आदि में जनप्रतिनिधियों की बाड़ेबंदी पर जनता के रुपयों को उड़ेले जा रही हैं। हाल ही में जाना कि कोर्ट में एक पेरवी हेतु वकील की फीस 40-50 लाख रुपए है,जबकि यह तो शुरुआत है।ऐसी विषम घड़ियों में ऐसे अनेकों प्रसंगों पर जनप्रतिनिधि गण अपनी सुझबुझ से अनेक क्षेत्रों से पैसे बचा सकते हैंऔर देश में उजड़ने के कगार पर पहुंच चुके छोटे-मोटे दुकानदारों व उधमियों को पुनः उभारने में सहयोग करके बहुत से परिवारों का भविष्य संवार सकते हैं,जिससे देशहित में संभावित नई बेरोजगारी को बढ़ने से रोककर जिम्मेवार जनप्रतिनिधि का दायित्व निभाने में भी सक्षम बन सकते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में सरकारों को संवेदनशीलता पूर्वक चिंतन मनन करना चाहिए और ढांचागत नितियों में बदलाव करके बैंकिंग व फाइनेंसियल प्रणालीयों से NPA खातों को सरलीकरण से चलायमान करके प्रति वर्ष बैंकिंग इंडस्ट्रीज के डुबने वाले लाखों करोड़ों रुपए को बचाने की दिशा में कारगर रणनीति बनानी चाहिए, और छोटे दुकानदारों व उधमियों को 31 मार्च 2021 के वित्त वर्ष तक लोन की किस्तों को ब्याज व पेनैल्टी मुक्त करना चाहिए और टैक्स प्रणाली की प्रक्रिया को होलसेल व्यापारियों तक सीमित रखना चाहिए, ताकि खुदरा बाजार पटरी पर आ सकें।
” आत्मनिर्भर भारत ” के सोपान को साकार करने के लिए विदेश नीति में भी संशोधन करना चाहिए और विश्वस्तरीय नवनीत तकनीकीकरण को अपनाकर चीन की जगह भारत को ” मैन्युफैक्चरिंग हब ” बनाना चाहिए।
दुनिया में भारत की विश्वसनियता का पताका फहराने हेतु हिन्दू ,मुस्लिम,सिख,ईसाई ,जैन आदि जनों को धर्म, जाति व सम्प्रदाय से ऊपर उठकर युवाओं की शौर्यता व वृद्धजनों के अनुभवी योग्यताओं के आधार पर137करोड़ भारतीयों में एकत्वशक्ति की विचारधारा का संचार एवं ” राष्ट्रीयता को समर्पित संकल्प ” की भावनाओं का विकास होना चाहिए।