अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तुविद)
अपनी-अपनी ड्यूटी पर बहुत से ईमानदार भी है पर कई भ्रष्टाचारी भी है। कुछ थोड़े बहुत ऐसे भी हैं जो सुस्त हैं। कुछ ऐसे भी हैं कि काम में अड़ंगा डालो फिर पैसा लेकर काम करो आदमी को इतना परेशान करो कि वह पैसा देने को राजी हो जाए। कई दिनों तक फाइल अटकी रहेगी चक्कर लगाते रहेंगे रटा रटाया जवाब आज साहब नहीं है, साहब मीटिंग में है, मैंने तो फाइल बढ़ा दी आगे वाले से पूछो, ऐसे कई रटे हुए जवाब है। जो अक्सर सुनने को आते हैं दुख इस बात का है इनकी शिकायत करने के लिए जिन बड़े साहब से मिलना हो वह भी अपने आप में पहाड़ जितने के बराबर काम है। खैर बुराई करने से कुछ नहीं होगा, अच्छाई का मार्ग ढूंढ रहे हैं तो ऐसा लगता है कि एक बार पुनः सभी को अपनी अपनी शपथ याद दिलाना पड़ेगी। हो सकता है उसमें से कुछ चुनिंदा लोगों का जमीर जाग जाए और वह देश व समाज की सेवा ईमानदारी से करें। वैसे तो शपथ हमेशा निरंतर कई बार याद दिलाना पड़ेगी, ताकि वह जेहन में रटा जाए। और उन्हें शपथ याद दिलाने की प्रक्रिया में उनके परिवार व समाज सभी का सहयोग लगेगा। मुझे याद है पहले के जमाने में भ्रष्टाचारी आदमी का सामाजिक बाय काट होता था। वही स्थिति पुनः जागृत होना चाहीये। कोई मुश्किल काम नहीं है, बनिस्बत शिकवे शिकायत करने के हम स्थिति सुधारने का सोचें।