-अद्वितीय समता-क्षमता व प्रेरणादायी स्वाध्याय-तप भरा जीवन रहा शासनश्री चाँदकुमारीजी का

बीकानेर। तेरापंथ धर्म संघ की शासनश्री साध्वी चाँदकुमारीजी का 9 नवम्बर 2023 को चौविहार संथारे के साथ अरिहंतशरण हो गया है।
तेरापंथी सभा बीकानेर के अध्यक्ष पदम बोथरा ने बताया कि करीब 20 मिनट के चौविहार संथारे के बाद आचार्यश्री महाश्रमणजी की आज्ञानुवर्ती शासनश्री साध्वी चाँदकुमारीजी का रामपुरिया मोहल्ला स्थित तुलसी साधना केन्द्र में निधन हो गया।
श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री हेमलताजी ने कहा कि शासनश्री साध्वी चाँदकुमारीजी यथानाम तथागुण थीं। वास्तव में वे चाँद जैसी शीतल थीं। वे हमेशा करुणावान रहीं तथा कभी उन्हें तेजी में आते नहीं देखा। साध्वीश्री हेमलताजी ने कहा कि साध्वीश्री हमेशा सावधान करती कि मुझे संथारे बिना जाने मत देना और इसी प्रबल भावना के चलते उन्होंने लगभग 20 मिनट चौविहार संथारा लिया।
साध्वीश्री ललितकलाजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि शासनश्री चाँदकुमारीजी ने तीन आचार्यों के वरतारे को देखा तथा तीनों ही आचार्यो की कृपा पात्र रहीं। आगम स्वाध्याय-जप में साध्वीश्री की तल्लीनता प्रेरणादायी रहीं। साध्वीश्रीजी की समता-क्षमता अद्वितीय रही, समझाने की कला व्यवहारिकता सबके लिए आदर्श रही। इस दौरान साध्वी अर्चनाश्रीजी, साध्वी शीतलयशाजी, साध्वी तितिक्षाश्रीजी, मल्लीकाश्रीजी एवं सात्विकप्रभाजी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथी सभा गंगाशहर के अध्यक्ष अमरचंद सोनी ने बताया कि शुक्रवार को तुलसी साधना केन्द्र में स्मृति सभा आयोजित कर साध्वीश्री को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान गणेश बोथरा, सुरपत बोथरा लूणकरन छाजेड़, विनोद बाफना, पारस जैन, पदम बोथरा, जेठमल बोथरा, दीपिका बोथरा एवं संजू लालाणी आदि ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

शासन की साध्वी चाँदकुमारी जी का जीवन परिचय”
शासनश्री साध्वी चाँदकुमारीजी का जन्म वि.स. 1989 पौष शुक्ला अष्टमी को लाडनूं में श्रद्धानिष्ठ गोळच्छा परिवार में हुआ। माता-पिता गणेशीदेवी व दूलीचंद गोलच्छा की पुत्री रत्न के रूप में जन्मी कंचन बाई (साध्वीश्रीजी का सांसारिक नाम) को शुरू से ही धार्मिक माहौल मिला। मात्र सात वर्ष की आयु में वैराग्य का बीज प्रस्फुटित हो गया। फिर साधु-साध्वियों के सतत संपर्क से बालिका का बैराग्य पुष्ट होता गया। इस दौरान आपने करीबन 11 हजार पद्य परिमाण गाथा कण्ठस्थ कर लिया। वि. सं. 2005 चैत्र शुक्ला एकादशी को आचार्यश्री तुलसी द्वारा संयम-रत्न प्राप्त किया। उस दिन आठ दीक्षाएं हुई उसमें सात दीक्षाएं लाडनूं की थी। गोलच्छा परिवार से 13 दीक्षाएं हुई। दीक्षा के बाद लगभग नौ वर्ष गुरुकुल में रहकर माजी महाराज वदनाजी की सेवा का अवसर मिला। उस समय प्राय: नवदीक्षितों को एक वर्ष तक समुच्चय में आहार करवाने की परम्परा थी मगर साध्वी प्रमुखा लाडांजी की विशेष कृपा से इन्हें दो साल तक समुच्चय में रहने का अवसर मिला। शासनश्री को कंठस्थ आगम में दसवेंकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, बृहद् कल्प- व्यवहार, नंदी और व्यवहार संस्कृत- अभिद्यान चिन्तामणि, कालु कौमुदी -उत्तरार्द्ध पूर्वाद्र्ध, शान्त सुधारस भावना, सिंदूर प्रकरण, सभी अष्टकम कई स्तोत्र करीब १5,000 पद्य परमाण कण्ठस्थ थे। तत्त्वज्ञान में- जैनतत्व-प्रवेश- भाग-1-2, 5 प्रकार के पच्चीस बोल आदि 40 थोकड़े। आगम वाचन- बत्तीसी दो बार, भगवती की जोड़, पन्नवणा की जोड़, आचारांग भाष्य, भगवती भाष्य, कई आगमों की टीकाएं व भाष्य। जैन तत्व विद्या, न्याय दर्शन और योग विषयक ग्रन्थों का विशेष अध्ययन-अध्यापन का कार्य किया। संघीय पाठ्यक्रम की स्नात्तकोत्तर (योग्य योग्यतर योग्यतम परीक्षाएं) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। साध्वीश्री लिपि कला में दक्ष थी तथा लगभग 500 से अधिक पत्र लिखे। सिलाई- रंगाई- लेखन रजोहरण आदि कार्य में विशेष दक्षता प्राप्त की। करीब 7-8 व्याख्यान, मुक्तक व सैकड़ों गीतिकाएं बहीर्विहार – वि. सं. 2013 सरदार शहर मर्यादा महोत्सव पर संघ समर्पिता साध्वीश्री मनसुखांजी के साथ वंदना करवाई- उनके साथ 18 वर्ष तक तन की पछेवड़ी बन कर रहीं। वि.सं. 2031 माघशुक्ल 7 मर्यादा-महोत्सव के कार्यक्रम के बीच अग्रगणी की व सुदूर प्रान्त दक्षिणभारत की यात्रा की वंदना करवाई। दो बार दक्षिणांचल, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, यूपी, बिहार, बंगाल, नेपाल, गुजरात, कच्छ-सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडू, पांडेचेरी आदि प्रदेशों की लगभग 60,000 किमी यात्रा की। पूज्य प्रवर ने गुरुसन्निधि में साध्वीश्रीजी की हीरक जयंती खूब उत्साह के साथ मनाई। आपने असाता वंदनीय को समभाव से सहा, समता अनूठी थी।