श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर नगर परिषद मेँ लंबे समय तक कांग्रेस का ही बोर्ड रहा। कांग्रेस के सभापति ने ही कार्यकाल पूरा किया। 1989 से 2014 तक की अवधि की चर्चा करते हैं। इस अवधि मेँ गैर कांग्रेस का बोर्ड तो बना, परंतु वह अधिक दिन तक चला नहीं। पिछली बार बीजेपी का बोर्ड बना तो बाद मेँ सभापति को बीजेपी से निकाल दिया गया।


ऐसा लगता है जैसे यह नगर परिषद गैर कांग्रेस के लिये फिट नहीं है। कांग्रेस की दाल ही है जो ठीक से गल पाती है। बीजेपी आती तो है, किन्तु कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती।
वे क्यों चाहेंगे कि मोटा भाई आये-विधानसभा चुनाव को एक साल हो चुका है। पंडित जी और मोटा भाई मेँ से कोई भी एक जुट होने की बात कहे। सबके एक साथ होने के दावे करें, किन्तु सब जानते हैं कि अंदर से एक दूसरे को पटखनी देने की तैयारी है। पंडित जी एंड कंपनी क्यों चाहने लगी कि मोटा भाई का नगर परिषद पर कब्जा हो! नगर परिषद पर मोटा भाई का कब्जा होने का मतलब है कि शहर की सरकार का उनके हाथ मेँ चले जाना। लगभग बराबर का दर्जा हो जायेगा पंडित जी का और सभापति का। सरकार तक सीधी अप्रोच होगी। क्योंकि सभापति कोई छोटा मोटा पद नहीं होता। इसलिये पंडित जी एंड कंपनी मोटा भाई के कदमों को रोकने की कोशिश तो करेगी ही, सफलता मिले, ना मिले।


कांग्रेस मेँ हो सकती है बगावत-परिषद चुनाव मेँ कांग्रेस को अधिक सीट मिल सकती है। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या मेँ निर्दलीय भी होंगे जो सत्ता के साथ चलेंगे। एमएलए बने पंडित जी के कई कट्टर समर्थकों के पार्षद बन जाने की उम्मीद है। इनमें निर्दलीय, कांग्रेसी और भाजपाई शामिल होंगे। संभव है इनमें से कोई बगावत कर सभापति के लिये निर्दलीय मैदान मेँ कूद पड़े। या निर्दलीय बना मैदान मेँ कुदा दिया जाये। ये भी संभव है कि सीएम के कहने पर पंडित जी एंड कंपनी को पीछा हटना पड़े। मगर ये तय है कि पंडित जी बिना कीमत लिये पीछा छोड़ेंगे नहीं। कीमत मेँ उपाध्यक्ष पद भी हो सकता है और सीएम का आग्रह भी। ताकि वे और उनके समर्थक ये कहे सकें कि पंडित जी कारण ही बन सका कांग्रेस का बोर्ड।


