प्रसन्नता का वास्तविक अर्थ है निर्मलता एवं निर्विकार ता जो हृदय निर्मल है निर्विकार है वही प्रसन्न है और जो प्रसन्न है वही सदा सुखी है l अस्तु जीवन में सुख शांति के स्थिरता के लिए मनुष्य को अपने हृदय को सदा निर्मल एवं निर्विकार रखना चाहिए ।
ईर्ष्या छल कपट काम क्रोध आदि विकास कोमल में नहीं लाना चाहिए इनको दूर करने से मनुष्य निर्मल हो जाता है । काम क्रोध लोभ मोह आदि विकारों को दूर करने के लिए विचार बल का सहारा लेना होगा । अपने विचारों को ऊंचा उठाइए उसकी सहायता के लिए स्वाध्याय सत्संग और सत्कर्म का सहयोग लीजिए । कुविचार उत्पन्न करने वाले वातावरण से दूर रहिए ।लोभ आने पर त्याग दीजिए दान दीजिए क्रोध आने पर करुणा जनक प्रसंग पढ़िए ।काम के समय निर्वेद का सहारा लीजिए और मोह से बचने के लिए ईश्वर का चिंतन कीजिए l निरंतर इस प्रकार का कार्यक्रम चलाते रहने से कुछ ही समय में आपका ह्रदय निर्मल होने लगेगा l निर्मल सिंह प्रसंता का आधार है ।परिस्थितियों को सुलझाना और प्रतिकूल परिस्थिति से लड़ने के लिए मनोबल की बहुत बड़ी आवश्यकता होती है । मनोहर का विकास केवल प्रसन्नता से हो सकता है ।