– हेम शर्मा-
जब संस्था – संगठन ( शरीर ) कमजोर हो जाता है तो प्रतिरोधक क्षमता नहीं रहती ऐसे में हर कोई हमला करता है। नेशनल कांग्रेस के ऐसे ही हालात है। राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी का कोई अध्यक्ष नहीं है। गांधी परिवार ही उस पर काबिज है। जी-23 समूह के नेता लगातार कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव व राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग उठाते रहे हैं। विडम्बना यह है कि राष्ट्रीय कांग्रेस पर प्रदेशो की कांग्रेस हावी है। इसका नमूना पंजाब कांग्रेस ने दिखा दिया है। राजस्थान कांग्रेस में भी कमोबेश ऐसे ही हालात बने थे, परन्तु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राष्ट्रीय कांग्रेस से भी ऊपर जाकर पार्टी में सत्ता पाने के लिए फुट डालने, दवाब की राजनीति कर सत्ता हथियाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। लंबे चले इस सत्ता संघर्ष में गहलोत ने विद्रोही गुट को सन्देश दे दिया है कि केवल दवाब की राजनीति से सत्ता नहीं मिलती इसके लिए जनता के बीच तपना पड़ता है। गांधी जयंती पर गहलोत का यह कहना कि उनके प्रति किसी तरह का जनविरोध नहीं है। वे अगली बार फिर सत्ता में आएंगे भले ही जलने वाले जलते रहे । यह कहना गहलोत का सत्ता बदलने, मंत्री मण्डल में फेरदबल की आस लगाए बैठे लोगों को ठेंगा दिखाने जैसा है। यह तब जब नेशनल कांग्रेस कमेटी विपरीत हालातों से निपट नहीं पा रही है। गहलोत ने कांग्रेस में विद्रोही, दबाव की राजनीति और गुटबाजी करने वाले नेताओं को कड़ा संदेश दिया है। नेशनल कांग्रेस कमेटी का सहारा लेकर सब कुछ हथकंडे अपनाने के बावजूद सत्ता परिवर्तन और फेरबदल नहीं होने से राष्ट्रीय कांग्रेस में गहलोत का संदेश मायने रखता है। कांग्रेस इसे कितना मानती है यह अलग बात है।