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भाजपा को आम चुनाव में टक्कर देने के लिए विपक्षी दलों ने अभी से कवायद शुरू कर दी है। 23 को पटना में नीतीश ने अपनी पहल से विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल होगी। मगर क्षेत्रीय दलों ने अपने अपने प्रदेश में अभी से अपने हित सामने रख गठजोड़ के प्रयास अपने स्तर पर भी आरम्भ किये हैं। क्योंकि पिछले दो आम चुनावों में विपक्ष को भाजपा ने करारी शिकस्त दी हुई है।
बंगाल में बड़ी संख्या में बिहारी वोटर है, ये ममता दीदी को पता है। इसीलिए नीतीश के कहने पर वे पटना पहुंच रही है। पहले हर चुनाव में उनका साथ लालू यादव देते रहे हैं। पिछले आम चुनाव में टीएमसी को उम्मीद से बहुत कम सीट मिली थी, नीतीश उस समय भाजपा के साथ थे। इस बार बिहारी वोटर एकतरफा हो, इसलिए ममता एक दिन पहले पटना पहुंच रही है। ताकि नीतीश व लालू से बंगाल के लिए बात कर सके। ये भी अपने स्तर पर टीएमसी का कदम है। ताकि एक पहलू तो उनके साथ रहे।
यूपी में सबसे अधिक लोकसभा की सीट है और पिछले दो चुनाव से इस प्रदेश में भाजपा का वर्चस्व रहा है। उसे तोड़ने की कोशिश अखिलेश व जयंत चौधरी की है। उनको पता है कि पिछले कुछ समय से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान पलटकर कांग्रेस की तरफ हो गया है। इस कारण वे आम चुनाव में कांग्रेस का साथ चाहते हैं। इशारों इशारों में अखिलेश बारबार वोट न बंटने देने का कह कांग्रेस को निमंत्रण दे रहे हैं।
हालांकि सपा ने 34 सीटों के लिए अपने प्रभारी तय कर एक संकेत तो दे दिया, ताकि उसकी सीटों से गठबंधन होने पर छेड़छाड़ न हो। जयंत चौधरी का अखिलेश पर दबाव है कि वे कांग्रेस को साथ ले, तभी फायदा होगा। उस उम्मीद में ही अखिलेश ने सुर बदले हैं। जबकि पहले वे ममता से मिलकर गैर कांग्रेस दलों को साथ रखने की घोषणा भी कर चुके थे। मगर कर्नाटक चुनाव के बाद ये संकेत मिलने लग गया है कि मुस्लिम मतदाता अब कांग्रेस की तरफ झुकाव हो गया है।
कांग्रेस भी इन क्षेत्रीय दलों से पीछे नहीं है। बिहार में महागठबंधन बनने के बाद कांग्रेस को कुछ प्राण वायु मिली है, पहले तो बिहार व यूपी में कांग्रेस नगण्य थी। मौके का फायदा कांग्रेस बिहार में उठा रही है। बिहार में नीतीश की बुलाई बैठक में राहुल भी जा रहे हैं तो कांग्रेस उनका रोड शो कर रही है।
23 जून की पटना बैठक ने राज्यों की चुनावी गणित को बदलने का काम किया है। कांग्रेस इस बहाने अपनी 140 सीटों पर खास फोकस कर रही है ताकि वे तो साथ रहे ही। भाजपा अभी तक असमंजस में है। क्योंकि यदि एमपी, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व राजस्थान में उसे परिणाम आशानुकूल नहीं मिले तो रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा। नीतीश ने 23 की बैठक ने भाजपा की धड़कन जरूर बढ़ा दी है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार