प्रशांत कुमार (ओम एक्सप्रेस ब्यूरों)सुपौल की रिपोर्ट-
सामाजिक कुरीति मिटाओ-देश बचाओ, धार्मिक कुरीति मिटाओ-धर्म बचाओ और हमारा बिहार-प्यारा बिहार अभियान के शुभारंभकर्ता व लोरिक विचार मंच के प्रदेश संयोजक डॉ अमन कुमार ने ओम एक्सप्रेस से विशेष बातचीत करते हुए बताया कि संसार जरूरत के नियमों के अनुसार चलता है। परिवर्तन ही संसार का नियम है। देश मे समय और परिस्थितियों के अनुसार भारतीय संविधान में 127 बार संशोधन हो चुका है। उसी तरह वर्तमान समय मे धार्मिक परम्परा में भी संशोधन करने की जरूरत है। मृत्युभोज प्रतिबंध को लेकर भी भारत सरकार को अतिशीघ्र कानून बनाना चाहिए। अपने परिवार को खोने का दुःख और ऊपर से भारी-भरकम खर्च का कोई औचित्य नहीं है। इसका किसी भी धर्म ग्रंथ में उल्लेख नहीं है। इसके जगह पर जनहित का कार्य करना चाहिए। प्रदेश संयोजक डॉ कुमार ने कहा कि समाज में बड़े बदलाव की जरुरत है। इस बदलाव के लिए गरीब में हिम्मत नहीं है। मध्यम परिवार में फुर्सत का घोर अभाव है और अमीर को इसकी जरुरत नहीं है। जिसके कारण सामाजिक कुरीति, अनावश्यक रीति रिवाज व कुव्यवस्था पर विराम नहीं लग पा रहा है। संसार में माता-पिता और गुरु जीता-जागता देवता है। संतान मृत्युभोज पर खर्च होने वाली राशि को वृद्ध व जीवित अवस्था में माता-पिता की सेवा, भोजन, सुख सुविधा और ईलाज में खर्च करे।
जिससे जीता-जागता देवता की दुआ मिलेगी। समाज को आईना दिखाने व नई दिशा देने का कार्य करेंगे। फिजूल खर्ची द्वारा धनी बनने का ढोंग कहीं से भी उचित नहीं है। कहा कि अमीर परिवार मृत्युभोज के जगह समाज के लिए एम्बुलेंस, सार्वजनिक पुस्तकालय, धर्मशाला, विवाह भवन, गाँव के बच्चे को पढ़ाने के लिए स्कूल बस और स्वच्छ, सुंदर, खुशहाल समाज बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दें। मध्यम और गरीब परिवार अपने परिजन के स्मृति में पौधे लगाने का कार्य करें। इसी से भारत शिक्षित और विकसित राष्ट्र बनेगा। डॉ कुमार ने कहा कि जब खिलाने वाला एवं खाने वाला का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। जब दोनों दुखित हो तो कदापि भोजन नही करना चाहिए। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी कहा गया है मृत्युभोज खाने से उर्जा नष्ट होती है। श्रेष्ठ मानव अपने साथी, सगे-संबंधी, आस-पड़ोस के लोगों के मृत्यु होने पर विभिन्न प्रकार के पकवान व व्यंजन खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है। समाज को मृतक का मजाक नहीं उड़ना चाहिए। इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरुरत है। प्रदेश संयोजक डॉ. कुमार ने कहा कि राजस्थान सरकार के तर्ज पर मृत्युभोज निषेध अधिनियम पारित कर मृत्युभोज आयोजक व सहयोगी को दंडित करने का प्रावधान बिहार में करना चाहिए। यह भोज कल्याणकारी नहीं बल्कि विनाशकारी है।
इसमें समाज के ठेकेदार शोकाकुल परिजन से इमोशनल ब्लेकमेल करते हैं। इसीलिए इसपर कठोर कानून बनाना चाहिए। कानून का उल्लंघन करने वाले को न्यायालय द्वारा एक वर्ष का सजा और 25000 रूपए का जुर्वाना का प्रावधान होना चाहिए। मृत्युभोज की सूचना देने की जिम्मेदारी त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि को सुनिश्चित करना चाहिए। वे भी सूचना देने में विफल हो तो उन्हें भी तीन माह की सजा मिलनी चाहिए। मृत्युभोज में धन या सामान देने वाले को रकम वसूलने का अधिकार नही होना चाहिए बल्कि उसे अपराधी मान उसके लिए भी सजा का प्रावधान होना चाहिए। सामाजिक कुरीति को मिटाए बिना हिन्दुस्तान स्वर्ग जैसा सुंदर नहीं बन सकता है। बता दें कि मृत्युभोज पूर्ण प्रतिबंध को लेकर बिहार और झारखण्ड में 2008 से डॉ अमन कुमार के नेतृत्व में चरणबद्ध सामाजिक आन्दोलन चल रहा हैं। जिसके कारण बिहार में तक़रीबन 8800 मृत्युभोज पर पूर्णविराम लगी है। 12 हजार से अधिक मृत्युभोज पर आंशिक विराम लगी है। इसका पूरा श्रेय डॉ. अमन को जाता है। दृढ निश्चय के साथ सामाजिक कार्य करने के कारण ही डॉ. अमन कुमार बिहार युवा रत्न, बिहार गौरव सम्मान, बिहार केशरी शिक्षा सम्मान और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिक्षा शिरोमणि सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।