जयपुर। किताबों से वास्ता रखने वाली अंजली समय आने पर कैसे किसान और पशु पालक बन गई यह किसी ने सोचा भी नहीं था। मां बाप गांव लौटे तो उनके मुंह से यही निकला ‘यह बेटी नहीं हमारा बेटा है।’
दरअसल कोरोना काल में हम डॉक्टर, पुलिस, पत्रकार सहित अत्यावश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों को ही वारियर्स के रूप में मान रहे थे। एक अंजली ही नहीं ऐसी कितनी बेटी बेटे होंगे जिन्होंने वॉरियर्स के रूप में काम किया।
मामला मालपुरा तहसील से सटे आंबापुरा गांव का है। यहां रहने वाले बद्री पटेल और उनकी पत्नी बीते माह कोरोना की चपेट में आ गए थे। दोनों के फेफड़ों में संक्रमण फैलने की वजह से जयपुर के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। घर पर बची तो अकेली अंजली। पहले तो वह सोच में पड़ गई कि अब क्या होगा। जिन हाथों का वास्ता आज तक केवल किताब-कॉपी, पेन-पेंसिल और कंप्यूटर-मोबाइल से पड़ा। वे हाथ गांव के काम कैसे करेंगे।

अंजली ने हार नहीं मानी। जो काम मां-बाप किया करते थे। जैसे चारे को पानी डालना, पशुओं के लिए चारा काट कर लाना। फिर मशीन से कटाई करना, गाय-भैंसों को नहाना, गोबर उठाना, दूध निकालना और तो और दूध सप्लाई करके आना। सभी काम बखूबी से किए।
अंजली शर्मा के परिजनों की मानें तो कनोडिया से बीएससी करने के बाद जयपुर में रहकर एमएससी कर रही अंजली दिन में माता-पिता से भी फोन पर बातें कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेती रहती थी और खाना व पूजा का भी पूरा ध्यान रखती थी। आज माता-पिता को गर्व है ‘अंजलि बेटे’ पर।