मनुष्य की प्रकृति आकर्षित होने की रही है कभी मन से, कभी आंखों से, कभी दिमाग से, कभी विचारों से, कभी डर से। मनुष्य गरीबी अमीरी के भाव या छोटे बड़े के भाव से भी आकर्षित हो जाता है। और सबसे ज्यादा वह आकर्षित होता है धर्म गुरुवर से। यह बहुत अच्छी बात है कि धर्म गुरु का आदर करना चाहिए पर जब मनुष्य धर्म गुरु का आदर करने के बजाय वह उनका गुलाम बन जाता है या अंध भक्त बन जाता है तब हो सकता है वह धर्मगुरु को पथभ्रष्ट कर धर्मगुरु अपने आप को भगवान का स्वरूप देना की भावना पैदा कर सकता है। उसकी यह अंधभक्ति का भरपूर फायदा कोई भी उठा सकता है और उसका भरपूर दोहन हो सकता है। जब हम भगवान को मानते हैं तो किसी को भी भगवान का दर्जा नहीं देना चाहिए। हालात यह है कि धर्म के नाम पर भगवान के नाम पर कई दुकान, कई व्यापार, कई लूट, कई जगह तो हवस और वासना का खेल भी हुआ। इन सबके लिए वे कपटी लोग तो जिम्मेदारी है कि जो आपकी अंधभक्ति का फायदा उठाते हैं पर आप भी उतने ही जिम्मेदार हैं कि आप किसी को भी भगवान का दर्जा दे देते हैं। इंसान की यह अंधभक्ति धर्म गुरुओं से ही नहीं वरन नेताओं एवं अभिनेताओं से भी है। कहीं कमजोर दिमाग तो इतने अंधभक्त होते हैं कि वह अपनी जान भी दे देते हैं। इस अंधभक्ति को रोकने का पहला पाठ घर से मित्रों से उस समाज से शुरू होना चाहिए। वरना अंधभक्तों का शोषण होता रहेगा।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)