वैसे तो अकादमी अध्यक्षों की नियुक्त साहित्य, संस्कृति और कला को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से कम वोटों की राजनीति, तुष्टिकरण और राजनीतिक विचारधारा के लोगों को संतुष्ट करने के लिए ही ज्यादा होती है। जिस भावना से अध्यक्ष थोपे जाते हैं उसी पक्षपात और तुष्टिकरण से राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के विभिन्न पुरस्कारों व प्रकाशन सहयोग योजनाओं का लाभ योग्य, अयोग्य लोगों को मिलते रहे हैं। यह खेल कमोबेश सभी अकादमियों में चलता है। जैसे ही अकादमी ने पुरस्कार और प्रकाशन सहायता के आवेदन मांगे वैसे ही ऐसी चाहत और तिकड़म भिड़ाने वालों की सक्रियता बढ़ जाती है। राजनेताओं की सिफारिशों से लेकर पता नहीं क्या क्या खेल शुरू होने वाले है। अकादमी बेशक राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रोत्साहन के उद्देश्य से गठित हुई है, परंतु इससे ज्यादा राजनीति का अखाड़ा बनी हुई है। साहित्यकारों का एक बड़ा गुट तो अध्यक्ष की नियुक्त से भी नाखुश रहा है, परंतु इस राजनीतिक नियुक्ति का वे कुछ बिगाड़ नहीं सकते इसलिए खून का घूंट पीकर चुप है । कमोबेश यह ही हालत अन्य अकादमियों में नियुक्तियों को लेकर प्रतिक्रिया में सामने आई है। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी हैं जिन्होंने चालू वित्तीय वर्ष के अकादमी के विभिन्न योजनाओं में साहित्यकारों को लाभ और पुरस्कार के आवेदन मांगे हैं। वैसे अकादमी को साहित्यकार के कृतित्व पर खुद ही उनकी रचनाओं देखते हुए क्या पुरस्कार की घोषणा नहीं कर देनी चाहिए ? क्या अकादमी अध्यक्ष और सदस्यों के पास अपने प्रदेश के पुरस्कार और प्रकाशन सहायता पाने योग्य साहित्यकारों की सूची नहीं है। अगर नहीं है तो क्या फिर अकादमी के होने की भी कोई सार्थकता है ?
अकादमी का सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (पद्य), शिवचन्द्र भरतिया गद्य पुरस्कार (निबंध, एकांकी, नाटक, यात्रा संस्मरण, रेखाचित्र आदि), गणेशीलाल व्यास ‘उस्ताद‘ पद्य पुरस्कार तथा मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी‘ कथा साहित्य पुरस्कार (कहानी, उपन्यास), रावत सारस्वत साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार, प्रेमजी प्रेम राजस्थानी युवा लेखन पुरस्कार, राजस्थानी महिला लेखन पुरस्कार, बावजी चतुरसिंह जी अनुवाद पुरस्कार, सांवर दईया पैली पोथी पुरस्कार व जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार के साथ भत्तमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार , मनुज देपावत विद्यालय स्तरीय पुरस्कार वास्तव में योग्य लोगों को निष्पक्ष रूप से दिया जाता है तो ही पुरस्कार का सम्मान हैं अन्यथा तो अकादमी पुरस्कारों का अवमूल्यन ही करेगी।
देखना है कि नवगठित अकादमी इन पुरस्कारों का कितना मान बढ़ाती है। कितनी निष्पक्षता से पुरस्कार दिए जाते हैं। कितनी राजनीतिक दखल से मुक्त रह पाती है। अकादमी की साख अध्यक्ष के हाथ में है अगर अध्यक्ष राजनेताओं की कठपुतली नहीं बने तब।