भारत में प्राचीन काल से ही आचार्य सुश्रुत ने शुरू की थी शल्यक्रिया चिकित्सा – डॉ. शर्मा

जयपुर। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय(एनआईए) के चिकित्सकों ने महिला के बच्चेदानी से डेढ़ किलो की गांठ (फाइब्रोइड) निकाली। 39 वर्षीय महिला पिछले एक साल से सामान्य से अधिक महावारी होने की समस्या से परेशान थी। सोनोग्राफी में लगभग 9cmx8cm का फाईब्रोइड (गांठ) पाई गयी, और बच्चेदानी का आकार भी बढ़ा हुआ था।
महिला ने राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर की प्रसूति तंत्र एंव स्त्री रोग विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ.. के. भारती एंव डॉ. सुमन जैन (स्त्री प्रसूति सर्जन) से परामर्श लिया। परिजनों की सहमति के बाद शुक्रवार को आयुर्वेद डॉक्टरों की टीम द्वारा किए गए एक घंटे के जटील ऑपरेशन के बाद सफलतापूर्वक बच्चेदानी सहित गांठ को निकाल दिया गया। ऑपरेशन के बाद महिला की स्थिति सामान्य है एंव वार्ड में उपचार जारी है। डॉक्टरों की टीम में डॉ. सुमन जैन (स्त्री प्रसूति सर्जन), डॉ. स्वराज मेहरवाल (जर्नल सर्जन) प्रोफेसर डॉ. के. भारती (प्रसूति तंत्र एंव स्त्री रोग विभागाध्यक्ष) डॉ. राजेश अरोड़ा (ऐनेस्थेटिक) एंव रेजिडेन्ट डॉक्टर्स उपस्थित रहें।

-आयुर्वेद में प्राचीन काल से होती आयी है शल्य चिकित्सा

वरिष्ठ आयुर्वेदज्ञ डॉ. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि भारत की प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि के शिष्य आचार्य सुश्रुत ने शल्यक्रिया चिकित्सा पद्धति की शुरुआत की थी, यह बात काफी कम लोगों की जानकारी में है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही शल्य चिकित्सा होती आयी है।

विभागाध्यक्ष डॉ. के. भारती ने बताया कि बच्चेदानी में इस तरह की गांठ कब्ज, मोटापे और गरिष्ठ खानपान की वजह से होती है, इसमें महिला के अनियमित माहवारी में जरूरत से ज्यादा खून का श्राव होता रहता है, समय रहते ईलाज करा लिया जाय तो ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती है।