अत्याधिक जनसंख्या वाले हमारे देश में चंद ग्रुप को पूरे देश में सभी कारोबार करने की छूट है और हर कारोबार के लिए जनता से पैसा इकट्ठा करने की छूट भी है। मेरी जानकारी अनुसार रिलायंस नाम से हमारे यहां एक ग्रुप ऐसा भी है जिसने कोई ऐसा कारोबार नहीं छोड़ा जो वह नहीं कर रहे हो चाहे डीजल – पेट्रोल, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, पॉलीथिन ग्रेन्यूल, मोबाइल, सेटेलाइट, इंटरटेनमेंट, हेल्ध, हॉस्पिटल, एजुकेशन, फिल्म, ओटीपी, टीवी चैनल, प्रॉपर्टी, सुपर मार्केट, सब्जी, एविएशन का हो और अब तो वह गेहूं खरीदी का भी करने लगे। यहां आकर ऐसा लगता है एक बिजनेस ग्रुप को तीन या चार कारोबार करने तक सीमित करना चाहिए और जनता से पैसा भी उतना ही इकट्ठा करने की इजाजत होना चाहिए। अन्यथा देश में समानता कैसे बनेगी एक तरफ हम समाजवाद की बात करते हैं लेकिन आर्थिक समानता तो बन ही नहीं सकती। यानी मनी मैक्स मनी। जिसके पास अथाह पैसा होगा वह अपने मन मर्जी अनुसार कुछ भी करेगा। उसे किसी की भी परवाह नहीं हो सकती। उनके पिताजी ने कभी किसी इंटरव्यू में यह भी कहा था की जब सुबह मै टहलने जाता हूं तो हाथ में डंडे के बजाय बिस्किट का पैकेट लेकर चलता हूं एक-एक बिस्किट फेकते जाता हूं तो वह कुत्ते मेरे पीछे दुम हिलाकर चलते हैं। इसका अर्थ मुझे एक व्यापारी ने बताया कि आपको आगे बढ़ना है तो भ्रष्टाचारियो के बीच रिश्वत फेंकते जाओ और आगे बढ़ो। बजाएं उलझने के।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

