ईसीबी में “लाइफ साईकल एनालिसिस फॉर सस्टेनेबिलिटी” विषयक पांच दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला का हुआ समापन।

बीकानेर।अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर के मैकेनिकल विभाग तथा राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वाधान में टैक्युप द्वारा प्रायोजित “लाइफ साईकल एनालिसिस फॉर सस्टेनेबिलिटी” विषय पर पांच दिवसीय ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम का समापन वेबेक्स एप के माध्यम से हुआ । प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान हमीरपुर के डॉ वरुण गोयल ने अपने उद्बोधन में कहा की एक स्थायी तरीके से ऊर्जा उत्पादन की पर्याप्त मात्रा वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य में एक बड़ी चुनौती है।

सभी नवीकरणीय स्रोतों में, छोटे जल विद्युत (एसएचपी) स्थायी जल और ऊर्जा विकास के लिए आशाजनक स्रोतों में से एक है। भारत का भूगोल ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने के लिए छोटी पनबिजली परियोजनाओं के विकास का समर्थन करता है। उन्होंने विभिन्न ऊर्जा स्त्रोतों पर चर्चा करते हुए बताया की दूर दराज के क्षेत्रों के लिए एसएचपी (25 मेगा वाट) बहुत उपयोगी साबित हो सकते है । दूसरे सत्र के मुख्य बकता डॉ सुनील राईकर ने सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग के तथा नये उत्पाद के विकास व् उसके जीवन चक्र के विश्लेषण पर प्रकाश डालते हुए बताया की एक नए उत्पाद के लिए प्रेरणा आम तौर पर एक कथित बाजार के अवसर से या एक नई तकनीक के विकास से आती है। ईसीबी प्राचार्य डॉ जयप्रकाश भामू ने बताया की महान उत्पादों को केवल डिज़ाइन नहीं किया जाता है, बल्कि इसके बजाय वे कई घंटों के अनुसंधान, विश्लेषण, डिज़ाइन अध्ययन, इंजीनियरिंग और प्रोटोटाइप प्रयासों के माध्यम से समय के साथ विकसित होते हैं, और अंत में, परीक्षण, संशोधन, और पुन: परीक्षण करते हैं जब तक कि डिज़ाइन को पूर्ण नहीं किया गया हो। डॉ ओ पी जाखड़ ने बताया की टेक्विप-III के माध्यम से आयोजित की जा रही ट्रेनिंग में देश भर के 300 शोधार्थियों ने लाभ उठाया व् इसमें देश विदेश के विशेषज्ञों ने एलसीए विषय पर सम्बोधित किया व इस तरह अन्य कार्यक्रमों के आयोजन पर ज़ोर दिया जिससे युवा इंजीनियर देश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके।

विभागाध्यक्ष डॉ सी एस राजोरिया ने बताया की विश्व तापमान व ऊर्जा सुरक्षा की बढ़ती जरूरतों से विश्व चिंतित है। ऐसे में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका बढ़ रही है । सतत विकास के लिए देश में ऊर्जा के कई सारे विकल्प मौजूद है, जिनका सही उपयोग करते हुए शहरी व ग्रामीण क्षेत्र की दिशा बदली जा सकती है । कोऑर्डिनेटर डॉ धर्मेंद्र सिंह ने बताया की चौथी औद्योगिक क्रांति (इंडस्ट्री 4.0) का आशय डिजिटल प्रौद्योगिकी के जरिए विनिर्माण से है। इसमें आमतौर पर उत्पादन बढ़ाने के लिए विनिर्माण प्रौद्योगिकियों में स्वचालन (ऑटोमेशन), इंटर-कनेक्टिविटी और मशीनों के बीच कंप्यूटरीकृत आंकड़ों के आदान प्रदान वाली प्रौद्योगिकी अपनाने से है। डॉ रवि कुमार ने ट्रेनिंग में भाग लेने वाले प्रतिभागियों वे विशषज्ञों का आभार व्यक्त किया व पांच दिनों के दौरान की गयी गतिविधियों के बारे में अवगत कराया ।