– कोरोना वायरस के कहर को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सबसे पहले पहल करते हुए अपने राज्य के दिहाड़ी मजदूरों को नियमित मजदूरी उनके खातों में देने का फैसला किया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज रात को 8:00 बजे देश को संबोधित करेंगे, तब कई घोषणाएं होने की संभावना है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तर्क देकर कहा है कि कोरोना वायरस के कारण लाखों व्यक्ति बेरोजगार हो गए हैं, क्योंकि कई बिजनेस जैसे उड्डयन उद्योग बंद हो गए हैं। अत जीवन यापन करने के लिए अमेरिकी सरकार अपने प्रत्येक वयस्क नागरिक को हर माह $1000 की राशि भेज रही है।
ट्रम्प प्रशासन ने कहा है कि कोरोना वायरस के कारण कर्मचारियों को घर में रुके रहने के आदेश दिए गए हैं। उनको आजीविका का सहारा लेने के लिए भी सरकार की जिम्मेदारी है।
मजेदार बात यह है कि जब कांग्रेस ने ऐसी मिनिमम इनकम गारंटी स्कीम की बात कही थी, उसकी खिल्ली उड़ाई गई थी और जब सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने स्कीम के समर्थन में 40 पेज का अनुसंधान पेपर लिखा तो उन्हें पद मुक्त कर दिया गया था।
अमेरिका के राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार एंड्यू यांग ने जब एक स्कीम प्रस्तावित की थी, तो उनकी उदारवादी पार्टी ने भी इसे व्यावहारिक बता कर उड़ा दिया था और यांग को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से हटना पड़ा था।
सन 2019 के आम चुनाव में घोषणा पत्र में जब कांग्रेस ने भारत के हर एक गरीब परिवार के न्यूनतम मजदूरी गारंटी योजना की घोषणा की थी, तब लगभग सभी ने एक व्यावहारिक फेंटेंसी बात करते हुए इसकी आलोचना की थी और इसे वित्तीय रूप से क्रियान्वयन के अयोग्य पाया गया था।
जब अरविंद सुब्रमण्यम ने 2017 में अपने इकोनामिक सर्वे में 40 प्रश्नों के लिखिए थे और भारत में गरीबी समाप्त करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम के फायदे गिनाए थे। तब उनकी भी काल्पनिक आइडिया के लिए खिल्ली उड़ाई गई थी और जल्दी ही मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद से उन्हें हटा दिया गया था।
पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के प्रत्येक किसान को प्रति वर्ष ₹6000 देने का वादा किया था, तब भी देशभर में उनके इस आईडिया की मजाक उड़ाई गई थी। कईयों ने तो यहां तक कह दिया था कि यह सब व्यावहारिक है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार दिव्यांग की आलोचना की गई थी, उन्हें नरमपंथी समाजवादी बताया गया था और जल्द ही वे चुनाव मैदान के बाहर हो गए, लेकिन अब अचानक आये कोरोना वायरस के आर्थिक नतीजों की वजह से कोई भी जरूरी मापदंड अपनाते हुए सीधे नकद राशि देने के लिए आईडिया का मजाक नहीं उड़ाया जा रहा है।
अमेरिकन राष्ट्रपति ने मंगलवार को एक घोषणा कर सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस सन्डाउन की वजह से अमेरिकन लोगों की नौकरी या आए छिन जाने के बारे में वे चिंतित हैं, इसलिए वे जरूरतमंद नागरिकों को मदद के लिए $500 की राशि आवंटित करते हैं, ताकि जिन्हें जरूरत हो उन्हें सीधे नकद राशि दी जा सके।
डोनाल्ड ट्रंप के मंत्रिमंडल के ट्रेजरी सेक्रेट्री ने इस अप्रत्याशित राशि के आवंटन को समझाया और कहा हमारा देश हेल्थ इमरजेंसी का सामना कर रहा है। चिकित्सकीय उपकरणों कारणों से हमारी सरकार अमेरिकन अर्थव्यवस्था कई भागों में को बंद कर रही है।
हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, पर इसमें काम करने वाले लोगों की कोई गलती नहीं है, इनमें कई लोग बेरोजगार हो जाएंगे, बिना किसी गलती के ही उनकी आई छिन जाएगी।
उन्होंने कहा लाखों नागरिक दिवालिया हो जाएंगे, वे जिस घर में रहते हैं उसका किराया नहीं दे पाएंगे, बच्चों के लिए खाना नहीं जुटा पाएंगे, इसलिए अमेरिकन को सब अभी केस की जरूरत है।
राष्ट्रपति उन्हें जरूरत का केस देना चाहते हैं। अभी का मतलब तुरंत था कि अगले दो माह में सभी नागरिकों को हमसे एक चेक मिलेगा। क्योंकि कठोर प्रतिबंधों की वजह से अर्थव्यवस्था पर छिन्न-भिन्न हो गई है।
सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी कंजरवेटिव पूंजीवादी विचारधारा के विपरीत जाकर उदारवादी, यहां तक कि दूसरी नीतियों को अपना रहे हैं, ताकि हालात का सामना किया जा सके। वायरस के खतरे की वजह से रिपब्लिकन पार्टी के कानून निर्माता हजारों छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को बचाने के लिए अर्थव्यवस्था में $1 खरब तक डालने के लिए तैयार हो गए हैं और आजीविका देने वाले लाखों कामगारों की मदद कर रहे हैं।
जब सारा काम पूरी तरह से प्रभावित होने लगेगा, तब यह लोग जिनकी आय बंद हो जाएगी को $1000 का चेक प्राप्त प्रतिमाह देने की बात कही जा रही है। यह आइडिया सबसे पहले एंड्यू यांग ने दिया था, जिसे उनके डेमोक्रेटिक साथियों द्वारा क्रांतिकारी बताकर खारिज कर दिया गया था।
आम तौर पर आम आदमी के लिए इतना बड़ा राहत पैकेज घोषित करने के बारे में सोचना भी कठिन है, खासकर उन लोगों के लिए जो मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था और सबसे योग्य के जीवित रहने के सिद्धांत में भरोसा करते हैं।
अब तक बड़े राहत पैकेज सिर्फ बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों को ही दिया जाता था, क्योंकि ऐसी धारणा होती है कि ये कंपनियां इतनी बड़ी है कि धराशायी नहीं सकती, लेकिन जब बेहद कट्टरपंथी अमेरिकन भी महसूस कर रहे हैं कि उनकी यह मानव निर्मित वित्तीय संकट नहीं है।
यह गलत निर्णय से राहत के लिए भीख मांगने जैसा भी नहीं है। पर्यटन उद्योग होटल बन्द हो रही हैं, इसलिए पीड़ितों को बचाने के लिए सरकार को वह सब करेगी जो आवश्यक होगा। सरकार लोगों से घर में रहने काम पर नहीं जाने, स्कूल नहीं जाने, रेस्टोरेंट और खेल आयोजनों में नहीं जाने के लिए कह रही है।
यह असाधारण स्थिति है, देश के अधिकांश भागों में अर्थव्यवस्था में मंदी का जाने वाली है। हमें लोगों की तकलीफ कम करनी है, जिसके पास खाना, जरूरी सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं बचेगा।
यह भारत के लिए भी और भारत सरकार के लिए भी सबक है। अमेरिका और कई अन्य देशों की तुलना में यहां भी अभी कोरोनावायरस खतरे को स्वीकार करने और यह मानने में अनिच्छा दिख रही है।
हालात बेहद भयावह हैं। प्रधानमंत्री ने यह कहकर लोगों को चकित कर दिया है कि संसद सत्र जारी रहेगा, इससे कहीं न कहीं खंडन तत्व भी है। एक और जनता को भीड़ से बचने के लिए कहा जा रहा है वहीं सैकड़ों सांसदों और साथ ही मीडिया से कहा जा रहे हैं कि वे संसद आएं और भीड़ में एकत्रित हो तथा कर्तव्य पालन करें।
भारत सरकार को सरकार से सबक लेना जरूरी है और करोड़ों नागरिकों की तुरंत ध्यान देने की जरूरत है जो कि पहले ही नोटबंदी के द्वारा प्रभाव से जूझ रहे हैं और अब कोरोनावायरस ने उन पर घातक प्रहार किया है, जिससे उनकी आजीविका भी छिन सकती है।
भारत की आम जनता को तुरंत धन की जरूरत है, ताकि वह अपने बच्चों को एक समय का भोजन दे सके। यह साधारण समय नहीं है। कोरोनावायरस असाधारण संकट है, जिसके लिए असाधारण उपायों की जरूरत है।
छोटे व्यवसायियों के लिए बड़े राहत पैकेज की जरूरत है तो समाज के कमजोर वर्गों को जिंदा रखने के लिए राहत राशि दिए जाने की जरूरत है और वह भी तुरंत।