सफर जिंदगी का सफर गंतव्य तक पहुंचने का। गितकार ने भी बहुत अच्छा लिखा “जिंदगी के सफर में आते वह मुकाम…”। कहते है आधा भारत गांव में बसा है। कई जगह सड़कें हैं कहीं नहीं ऐसे में वहां तक पहुंचने के सिमीत साधन होते हैं इसीलिए
आधे भारत की जिंदगी बस टेंपो ट्रैक्टर के अंदर बैठकर सफर करती है तो आधे भारत की जिंदगी बाहर लटक कर सफर करती दिखती है। कई बार यही हालात रेलों की होती है रेल की छत पर जनता सफर करती हैं। वह तो एरोप्लेन में लिमिटेड ही बिठाते हैं वरना वहां भी लोग खड़े-खड़े जाते। समृद्ध भारत, सबका साथ सबका विकास यह सब साकार करना है तो सबसे पहले ऐसे स्ट्रक्चर बनाना होंगे कि गांव-गांव तक पक्की सड़क और यातायात के साधन मिल जाए। आवागमन के साधन निजी या सार्वजनिक बहुत जरूरी है। किसी भी देश के विकास में टेलीफोन टेलीविजन और ट्रांसपोर्टेशन बहुत आवश्यक होते हैं ट्रांसपोर्टेशन पूरा होगा तो पूरा विकास होगा। हमारे यहां जो आंकड़े देने की आदत है उससे बहुत जनता भ्रमित हो जाती है कहते हैं हम ने इतने किलोमीटर सड़क बनाएं पर यह नहीं बताते कि उसमें से खराब सडके कितने किलोमीटर है। खराब सड़क पर जो लटकते हुए सफर करते हैं उन्हें किस्मत कब तक जीने का मौका देती है कुछ कह नहीं सकते। पर जनता हंसते हंसते सफर पूरा करती है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)