रिपोर्ट – राजेंद्र सोनी
चंडीगढ़।अजनाला (पंजाब) में गुरुद्वारा स्थित कुएं से बरामद 282 सैनिकों के कंकाल के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। शोध में यह बात सामने आई है कि यह सभी सैनिक 1947 के दंगों में नहीं बल्कि 1857 की क्रांति में ही शहीद हुए थे। साथ ही यह भी पता चला है कि यह सभी सैनिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, बंगाल, उड़ीसा, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि राज्यों रहने वाले थे। यह खुलासा पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के शोध में हुआ है। मारे गए सैनिक किस राज्य के थे, इसका पता स्टेबल आइसोटोप तकनीक के जरिए लगाया गया है। सैनिकों की खोपड़ी से मिले दांतों के जरिए यह जांच यूएसए की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में करवाई गई। इसके अलावा माइट्रोकोंड्रियल डीएनएन की जांच बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ फेलियो साइंसेज लखनऊ से करवाई गई। जांच में यह सामने आया है कि 1857 की क्रांति में मारे गए अधिकांश सैनिक शाकाहारी थे। सैनिकों के दांत काफी मजबूत स्थिति में मिले हैं। साथ ही यह पता चला है कि यह सभी निरोगी थे और इनकी आयु 20 साल से 50 साल के मध्य रही है। जांच में यह भी पता चला है कि सैनिक मृत्यु से दस साल पहले कई इलाकों में तैनात रहे हैं। पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जेएस सहरावत इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। यह शोध एक प्रसिद्ध जर्नल में प्रकाशित हो चुका है। उन्होंने ताजा जांच रिपोर्ट के जरिए यह भी सिद्ध किया है कि यह सैनिक 1857 में ही मारे गए थे न कि 1947 के दंगों में। इसके लिए प्रो. सहरावत ने रेडियो कार्बन डेटिंग जांच कराई। हंगरी से यह जांच रिपोर्ट आई, उसके बाद सब साफ हो गया। इसमें सैनिकों के मरने का भी वर्ष दिया गया है। इन सैनिकों के पैदा होने के वर्ष का भी खुलासा शोध में हुआ है। एक महत्वपूर्ण बात इस शोध में सामने आई है कि यह सैनिक फाइबर युक्त खाना लेते थे, जिससे इनका शरीर स्वस्थ था और दांतों में कोई रोग नहीं था।

– ऐसे शुरू हुई सैनिकों के अवशेषों की जांच
1857 में पंजाब के अमृतसर में तैनात रहे ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने अपनी किताब द क्राइसिस ऑफ पंजाब में 1857 में पंजाब में हुए इस नरसंहार का वर्णन लिखा है। पंजाब की एक शोधार्थी जब इंग्लैंड गईं तो उन्होंने इस किताब को पढ़ा। पुस्तक में कई चौंकाने वाली बातें लिखी थीं। उसमें लिखा था कि अमृतसर के अजनाला गांव के एक गुरुद्वारे के नीचे कुआं है, जिसमें 282 सैनिकों को 1857 में मारकर फेंका गया था। साथ ही लिखा था कि इन सैनिकों ने अंग्रेजों से गद्दारी की थी लेकिन यह असली देशभक्त थे जो अंग्रेजों के छक्के छुड़ा रहे थे। इस कुएं को काफी प्रयास के बाद खोजा गया और तमाम सैनिकों के अवशेष मिले। इनकी जांच डॉ. जेएस सहरावत को सौंपी गई। वर्ष 2014 से वह लगातार इन अवशेषों पर जांच कर रहे हैं और चौंकाने वाले खुलासे कर रहे हैं। इन सैनिकों की पहचान करके उनके परिजनों को अवशेष देना उनका उद्देश्य है ताकि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके।_
– मारे गए सैनिकों के पते इंग्लैंड के प्रोफेसर देने को तैयार
1857 की क्रांति में मारे गए सैनिकों के पते निकालना आसान नहीं है। इसके लिए बहुत दिनों तक शोध करना पड़ेगा। साथ ही करोड़ों रुपये जांच पर खर्च होंगे। प्रो. जेएस सहरावत ने इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों से संपर्क साधा और उन्होंने इस पूरे प्रकरण को साझा किया। इसी से जुड़े एक प्रोजेक्ट पर इंग्लैंड में भी काम चल रहा है। इंग्लैंड के प्रोफेसरों से प्रो. सहरावत ने मदद मांगी और कहा कि उन्हें क्रांति में मारे गए सैनिकों के पते मुहैया कराए जाएं क्योंकि अंग्रेजी हुुकूमत इन सैनिकों के पूरे पते अपने साथ लेकर गई थी। सैनिकों का पता मिलते ही उनके परिजन भी आसानी से मिल जाएंगे। हालांकि यह काम भी आसान नहीं है। नेताओं के जरिए सैनिकों के पतों की सूची तो नहीं मिल पाई। इसके लिए दूतावासों में तैनात अधिकारियों की मदद भी ली जा रही है।

– 1857 की क्रांति में मारे गए सैनिकों के अवशेषों की जांच हंगरी व कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से करवाई गई है। जांच में कई खुलासे हुए हैं। यह सैनिक देश के कई हिस्सों के रहने वाले हैं। साथ ही शाकाहारी थे। पूरी तरह यह स्वस्थ थे। मरने से दस साल पहले यह विभिन्न इलाकों में तैनात भी रहे हैं। इस रिसर्च में जल्द ही एक और बड़ी कामयाबी हाथ लगने वाली है। जल्द उसका खुलासा किया जाएगा।
– डॉ. जेएस सहरावत, एंथ्रोपोलॉजी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़