वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 26 मार्च दिन शनिवार को हैं। इस दिन कालाष्टमी के व्रत का विधान है। इसे काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में कालभैरव को शक्तिशाली रुद्र बताया गया है। भगवान शिव की नगरी कही जानेवाली काशी के बाबा भैरवनाथ कोतवाल भी हैं।
औरंगजेब ने किया था हमला –बताया जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के विख्यात बाबा विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था।
पागल हो गए सैनिक – कालभैरव का मंदिर तोडऩे के लिए जब औरंगजेब के सैनिक वहां पहुंचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गए और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया।
बादशाह को भागना पड़ा – बादशाह को भी अपनी जान बचाकर भागने के लिए भागना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिए मरवा दिये की पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खुद उसके पास तक न पहुंच जाए।
भैरव बाबा की थी सेना -शास्त्रों के अनुसार, बाबा भैरव की सवारी कुत्ता है। बताया जाता है ये कुत्ते भैरवजी की सेना ही थी, जिससे मंदिर को कुछ नहीं हुआ। इस घटना के बाद काशी के कोतवाल की महिमा दूर-दूर तक फैल गई। उनकी हर जगह पूजा होने लगी।
इसलिए कहा जाता है काशी का कोतवाल -कथाओं के अनुसार, काल भैरव ने ब्रह्म हत्या के पापा से मुक्ति के लिए काशी में रहकर तप किया था। शिवजी ने काल को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे। जहां बाबा भैरव ने तप किया, वहां वर्तमान में काल भैरव का मंदिर है।
सभी बाधाएं होती हैं दूर- मान्यता है कि बाबा विश्वनाख के दर्शन करने के बाद काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है। अन्यता बाबा विश्वनाथ के दर्शन अधूर माना जाते हैं। कालाष्टमी के दिन काले कुत्ते को दूध पिलने से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्त को मनोवांछित फल की प्राप्ती होती है। उनकी पूजा से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।