बीकानेर,। संभाग के सबसे बड़े राजकीय डूंगर महाविद्यालय बीकानेर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। प्रथम तकनीकी सत्र के चेयर पर्सन डूंगर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. राजेंद्र पुरोहित ने सत्र का शुभारंभ करते हुए कहा कि सभी विश्वविद्यालयों को इस शिक्षा नीति के पाठ्यक्रम को लागू करना है। प्रत्येक व्यक्ति को पाठ्यक्रम के अतिरिक्त व्यवहारिक ज्ञान होना भी अत्यंत आवश्यक है । अपने संविधान, कानून प्रबंधन का भी ज्ञान होना चाहिए । महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के शोध निर्देशक डॉ अभिषेक वशिष्ठ ने एन इ पी 2020 योजना आशाएं और समर्पण विषय पर अपना विस्तृत व्याख्यान दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों की भूमिका पर अपना व्याख्यान देते हुए एम एस कॉलेज के भूतपूर्व प्राचार्य डॉ.शिशिर शर्मा ने कहा कि जब शिक्षक अपने कर्तव्य पालन के प्रति दृढ , ऊर्जावान व सक्षम होंगे तभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रभावी रूप से लागू हो सकती है। शिक्षक का कर्तव्य है कि वह आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करके शिक्षा को रुचिकर व रोजगारपरक बनाएं। पैनल डिस्कशन में गंगा शहर महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. बबिता जैन ने कहा कि एन इ पी के लागू होने में कई बाधाएं हैं जिनमें से प्रमुख है – राजनीतिक प्रशासन का शिक्षण संस्थानों में दखलंदाजी।
महाविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग की विभाग प्रभारी प्रो साधना भंडारी ने बताया कि लोक प्रशासन में अन्य विषयों को समाहित करके ही पढ़ाया जाता है। हमारा विभाग अन्य विभागों के साथ मिलकर अकादमिक कार्यक्रम करता है ताकि अन्य विषयों की खूबियों को भी विद्यार्थी जान सके और लाभान्वित हो सके ।
द्वितीय तकनीकी सत्र के प्रारंभ में रामपुरिया महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ पंकज जैन कहा कि एन इ पी लागू करने से पहले शिक्षकों की व्यापक ट्रेनिंग होनी चाहिए। इसके लिए मूलभूत संसाधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए, उनके अभाव में इसे लागू करना बहुत कठिन है।
इसे और प्रभावी बनाने के लिए शिक्षकों को नई चीजें सीखनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यदि कुछ अच्छे सुझाव प्राप्त होते हैं तो उन्हें भी अपनाना चाहिए। इसके पश्चात् वेटेरिनरी विश्वविद्यालय के वेटेरिनरी सर्जरी एंड रेडियोलॉजी विभाग के डाॅ एस के झीरवाल ने अपने व्याख्यान में कहा कि शिक्षा के मूलभूत सिद्धांतों में चरित्र निर्माण की महती भूमिका है। समग्र और विभिन्न आयामों को समेटे हुए एन इ पी का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण योगदान होगा। द्वितीय सत्र के चेयरपर्सन प्रो एम डी शर्मा रहे।
इन सत्रों में 70 बहुविकल्पी प्रश्न व 15 एफ ए क्यू पर आधारित प्रो नरेंद्र भोजक, प्रो दिव्या जोशी, प्रो राजेश भाकर, डॉ एच एस भंडारी व डॉ रवि परिहार द्वारा रचित पुस्तक में दिए गए प्रश्नों का विमर्श भी हुआ।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि वेटेरिनरी विश्वविद्यालय राजुवास के पूर्व कुलपति प्रो ए के गहलोत ने अपने संबोधन में कहा कि एन इ पी में स्टूडेंट की जगह लर्नर शब्द का प्रयोग किया गया है, हमें अच्छा सीखने वाला व्यक्ति तैयार करना है । विश्वविद्यालयों के संसाधनों का प्रयोग अन्य महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय मिलकर करें तो उन साधनों की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है अन्यथा वह अपनी मूल्यता खो देते हैं। प्रत्येक विषय भी अन्य विषयों से सामंजस्य करके शिक्षा की गुणवत्ता और बढ़ा सकते हैं।एन इ पी में वार्षिक परीक्षा के स्थान पर सेमेस्टर पद्धति का प्रयोग होने से छात्र विषय को आद्यन्त अध्ययन कर पाएगा। सभी विषयों को अपनी क्षेत्रीय भाषा में सीखाने से वह आत्मसात हो जाता है, यही इस शिक्षा नीति का उद्देश्य है। अपने अन्य संकाय के साथ भी विद्यार्थी अपने मनपसंद विषय को पढ़ सकता है और यदि कोई बीच में पढ़ाई छोड़ दे देता है तो भी उसका पूर्व अध्ययन व्यर्थ नहीं जाएगा वह उसके एजुकेशन क्रेडिट बैंक जो की इस नीति की एक बड़े उपलब्धि है राजस्थान राज्य उच्च शिक्षा परिषद के संयुक्त निदेशक प्रो जयभारत सिंह ने एन इ पी के बहुआयामी लाभों का वर्णन करते हुए कहा कि दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बहुत महत्वपूर्ण व्याख्यान हुए, जिनका यह निष्कर्ष निकला कि विद्यार्थी के समग्र विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में सफल होने हेतु लाभदायक है।
उपाचार्य प्रो इन्द्र सिंह राजपुरोहित ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आरएनबी ग्लोबल विश्वविद्यालय से प्रो. बी.एस. राठौड़ (डीन एकेडमिक्स) प्रो अनिल कौशिक (डीन कला एवं विधि संकाय) प्रो एस एसशेखावत एवं प्रो बी डी शर्मा(कृषि संकाय) ने सक्रिय सहभागिता की। राजकीय विधि महाविद्यालय बीकानेर, कोलायत महाविद्यालय, गंगाशहर महाविद्यालय, डूंगर महाविद्यालय तथा अन्य महाविद्यालयों के संकाय सदस्यों ने इसमें भाग लिया।